नवरात्रों में व्रत करें या न करें? djjs blog

भारत में शक्तिपूजन की कई विद्याएँ हैं, जो श्रद्धालुओं ने अपनी आस्था के आधार पर निर्मित की हैं। इनमें से एक है, आदिशक्ति के पूजन-दिवसों यानी नवरात्रों में किए जाने वाले व्रत! ‘व्रत’ का सामान्य अर्थ है- संकल्प या दृढ़ निश्चय। नवरात्रों के नौ दिनों में व्रत का मतलब है- तामसिक-राजसिक को त्यागकर सात्विक आहार-विहार-व्यवहार अपनाकर आदि-शक्ति की आराधना का संकल्प।

चूँकि शक्तिपूजन का अवसर वर्ष में दो बार आता है, इसलिए यह सोचने का विषय है कि क्यों इन्हीं दिनों में अन्न त्याग कर फलाहार या अन्य सात्विक खाद्य पदार्थों को ग्रहण किया जाता है? पहली नवरात्रि चैत्र मास में तथा दूसरी अश्विन मास में आती है। ये दोनों वे बेलाएँ हैं, जब दो ऋतुओं का संधिकाल होता है। यानी जब एक ऋतु जाती है और दूसरी ऋतु शुरु होती है। ऋतुओं के संधिकाल में बीमारियाँ होने की संभावना काफी बढ़ जाती है। यही कारण है कि संधिकाल के दौरान संयमपूर्वक व्रतों को अपनाया जाए, तो इससे बहुत सी बीमारियों से बचाव होता है। यह स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से बहुत जरूरी है। पर चूँकि भारतीय लोग धर्मिक प्रवृत्ति के हैं, इसलिए इस व्रत को धर्म से जोड़ दिया गया।

आइए, हम नवरात्रों के व्रत से होने वाले स्वास्थ्य लाभों के बारे में जानें। ये लाभ दो प्रकार के हैं-

1. Detoxification यानी विषहरण

2. Beautification यानी सौन्दर्यीकरण

 

विषहरण (Detoxification)

क) शरीर का विषहरण-

आजकल Detox यानी विषहरण का चलन है। बढ़ती बीमारियों व गरिष्ठ खानपान के चलते विषहरण एक जरूरत बन गई है। लोग अब गाहे-बगाहे एक दिन का खाना छोड़कर अन्य स्वस्थ विकल्पों का सेवन करते हैं। ठीक यही सोच नवरात्रों में किए जाने वाले व्रतों में रही होगी। नवरात्रों में निराहार रहने या फलाहार करने से शरीर के विषैले तत्त्व बाहर निकल आते हैं और पाचनतंत्र को आराम मिलता है।

ख) बीमारियों से बचाव-

कई ऐसे रोग हैं, जिनसे व्रतों में सहज ही रक्षा हो जाती है। जैसे मोटापे पर नियंत्राण, दिल की बीमारियों व कैंसर से बचाव, क्योंकि फलाहार, फलों का रस एवं बिना तला-भुना भोजन विष व वसा मुक्त होता है। ऐसा हल्का, सुपाच्य, कॉलेस्ट्रल मुक्त आहार मधुमेह, कैंसर, हृदय-रोग व मोटापे से ग्रस्त रोगियों के लिए अमृत है।

ग) मानसिक तनाव पर नियंत्रण-

नवरात्रों के दिनों में आस्थावान लोगों में कुछ अलग ही उत्साह व उमंग भरी होती है। साथ ही, जब व्रतों द्वारा विषाक्त पदार्थ बाहर निकलते हैं, तो लसिका प्रणाली दुरुस्त होती है। रक्त संचार बेहतर हो जाता है। हृदय की कार्य प्रणाली में सुधार होता है। इससे मानसिक शक्ति बढ़ती है। तनाव कम होने लगता है। माने हल्के भोजन से मन भी हल्का बना रहता है।

घ) री-हाइड्रेशन- आंतरिक अंगों का सिंचन-

व्रत में खाना कम व पानी ज्यादा पीने से शरीर के भीतरी अंगों का सूखापन दूर होता है। अंग-प्रत्यंग व त्वचा री-हाइड्रेट यानी उनकी सिंचाई हो जाती है। पाचन तंत्र भी बलिष्ठ होता है। इसके अलावा मितली, गैस, कब्ज, पेशाब में जलन आदि परेशानियों से भी छुटकारा मिलता है।

सौन्दर्यीकरण (Beautification)

क)     शरीर का सौन्दर्यीकरण-

नौ दिनों के व्रत में दिनचर्या व खानपान में इतना बदलाव आता है कि उसका असर आपकी त्वचा पर भी पड़ता है। विशेषकर फलों व मेवों के सेवन से। इनको अपना आहार बनाने से त्वचा के साथ-साथ बालों की चमक में भी फर्क पड़ता है। नियमित व्रत करने से त्वचा जवान बनी रहती है और बालों का सफेद होना कम हो जाता है। इसका सीधा सम्बन्ध् हमारे शरीर में घटती रासायनिक प्रक्रिया (Biochemical Process) से जुड़ता है। इसके अलावा तरल पदार्थों व पानी की अधिकता से और आँतों के साफ रहने से भी शरीर और त्वचा में सहज ही कांति आती है। जिनको कील-मुहाँसों की दिक्कत रहती है, उन्हें भी व्रतों से बहुत फायदा मिलता है। शरीर की आंतरिक सफाई से न केवल हमारी ऊर्जा-शक्ति बढ़ती है, बल्कि कायाकल्प हो जाता है। साथ ही उम्र भी बढ़ती है।

ख)     मन का सौन्दर्यीकरण-

व्रत के दौरान जब पाचन तंत्र को आराम मिलता है, तब हमारी आंतरिक उर्जा स्वयं शरीर व कोशिकाओं की चिकित्सा एवं मरम्मत में लग जाती है। इस ऊर्जा-शक्ति से हमारे भावनात्मक व मानसिक स्वास्थ्य पर भी स्थायी प्रभाव पड़ते हैं। शरीर के शुद्धिकरण से मन से उत्पन्न विचारों में भी पवित्रता आती है और बुद्धि का भी विकास होता है। व्रत के दौरान विषय-वासनाओं पर नियंत्रण करने से मन में संतुष्टि व व्यक्तित्व में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। इसी प्रक्रिया में आत्मशुद्धि होती है व इच्छाशक्ति भी दृढ़ होती है। नकारात्मक विचारों के घटने से मन शांति महसूस करता है। सात्विक आहार से सात्विक प्रवृत्ति विकसित होती है, जिससे शुभ विचारों व संकल्पों की ओर मन अग्रसर होता है।

व्रत से जुड़ी कुछ सावधानियाँ

1.  कुछ लोग व्रत में भी बहुत गरिष्ठ, भारी व तला-भुना भोजन कर लेते हैं, जिससे चक्कर, सिरदर्द, कमजोरी महसूस होती है। ऐसा भोजन तो व्रत के औचित्य को ही विफल कर देता है। इसलिए ऐसा भोजन न करके हर दो-तीन घंटे में फल, सलाद व जूस आदि लेते रहना चाहिए।

2.  गुर्दे में पथरी से पीड़ित लोग व्रत के दौरान 10-12 गिलास पानी का सेवन अवश्य करें। इससे छोटी पथरी के निकलने की संभावना बढ़ जाती है। क्योंकि पानी कैल्शियम व अन्य खनिज लवणों (minerals) को जमा होने से रोकता है।

3.  मधुमेह, उच्च रक्तचाप व खून की कमी से पीड़ित रोगियों को भी व्रत के दौरान अध्कि लाभ के लिए नारियल पानी, नींबू पानी, अनानास का रस, विटामिन-ए युक्त फल जैसे पपीता का सेवन करना चाहिए।

4.  हृदय या जिगर संबंधी दीर्घकालिक समस्याओं से जूझते रोगियों को अपने चिकित्सक की राय लेकर ही व्रत करने चाहियें।

5. गर्भवती व स्तनपान कराने वाली महिलाओं को अपने चिकित्सक की राय लेकर ही व्रत करना चाहिए।

उपयुक्त विश्लेषण से हमें पता चलता है कि नवरात्रों एवं अन्य पर्वों में व्रत रखना कैसे शारीरिक व मानसिक स्तर पर लाभ प्रदान करता है। संधिकाल के इन दिनों में किए गए फलाहार व जलाहार से विशेष उपलब्ध्यिाँ होती हैं। इसलिए आप भी अपनी सेहत के अनुसार नवरात्रों में व्रत कर सकते हैं। साथ ही, ब्रह्मज्ञान की ध्यान-साध्ना का भी नियम बनाएँ, ताकि महा-शक्ति की इन विशेष रात्रियों में हमारा आत्मिक उत्थान भी हो सके- जो इन पर्वों का मुख्य लक्ष्य है।

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