योगासन! djjs blog

‘योग’ प्राचीन भारतीय संस्कृति की सम्पूर्ण विश्व की अनमोल धरोहर है। पर हजारों साल की इस वैदिक परम्परा को चार साल पूर्व ही वैश्विक मंच मिला। पहली बार 21 जून 2015 को ‘अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस’ मनाया गया। इसी तिथि को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में चुनने के पीछे भी एक विशेष कारण था। इस दिन ग्रीष्म संक्रांति होती है, जो दक्षिणायन के नाम से भी बहु-प्रचलित है। दरअसल इस दिन पृथ्वी की दृष्टि से सूर्य कर्क रेखा से मकर रेखा (उत्तर से दक्षिण) की ओर बढ़ना शुरु करता है। इस दौरान सूर्य की किरणें अधिक समय तक धरती पर पड़ती हैं। इसलिए इस दिन सूर्य न केवल जल्दी उदित होता है, बल्कि देर से ढलता है। यह दिन पूरे वर्ष का सबसे लंबा दिन होता है। दीर्घ दिन पर मानव कैसे दीर्घायु हो, यही 21 जून पर योग-दिवस का खास संदेश है। साथ ही, प्रकृति की सकारात्मक ऊर्जा सक्रिय होने के कारण इस दिन योग द्वारा मानव को प्रकृति का विशेष सहयोग प्राप्त होता है।

अब प्रशन उठता है, भारत में ‘योग’ का आविर्भाव कहाँ से हुआ? कौन है योग का असली जनक? बहुत से लोग महर्षि पतंजलि को योग का जनक मानते हैं। असल में, जिस प्रकार श्री राम कलियुग के नहीं थे_ पर गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरितमानस रचकर हर कलियुगी हृदय तक त्रेता के श्री राम को आसानी से पहुँचा दिया था। ठीक ऐसे ही, सृष्टि के आदिकाल से चले आ रहे योग को जनमानस तक पहुँचाने का उत्तम कार्य किया- महर्षि पतंजलि ने अपने योगशास्त्र के द्वारा।

‘योग’ एक विशुद्ध एवं प्रायोगिक विज्ञान है, जो शरीर और मन के बीच सामंजस्य बनाकर आत्मा को पूर्णता तक पहुँचाता है। प्रसिद्ध व्याकरणाचार्य पाणिनि ने ‘योग’ शब्द की व्युत्पत्ति तीन धातुओं- ‘युजिर् योगे = जोड़’, ‘युज् संयमने = सामंजस्य’ तथा ‘युज् समाधौ = समाधि’ से वर्णित की है। यूँ तो योग वह व्यापक, विशद् प्रक्रिया है जो कई चरणों से गुजारकर व्यक्ति को पूर्णता तक ले जाती है। शास्त्र-ग्रंथों में योग के इन समस्त चरणों का विस्तारपूर्वक विवरण मिलता है। पर इस लेख के माध्यम से, हम योग के शारीरिक पक्ष की चर्चा करेंगे। यानि योगासनों के विस्तृत लाभ जानेंगे। 

योगासनों की संख्या

मान्यता है कि भगवान शिव ने सम्पूर्ण विश्व में पाई जाने वाली 84 लाख योनियों के अनुरूप 84 लाख आसनों की रचना की। इस तथ्य का विवरण प्राचीन ग्रंथों में भी पढ़ने को मिलता है।

आसनानि समस्तानि यावन्तो जीव जन्तवः।

चतुरशीतिलक्षाणि शिवेन कथितानि च।।

(घेरण्ड संहिता, 2/1)

अर्थ- आसनों की कुल संख्या समस्त जगत में जीव-जन्तुओं के बराबर अर्थात् 84 लाख है।

साक्षात् शिव और दीर्घायु, हठी एवं तपस्वी  ऋषियों के लिए बेशक इतने आसनों को सिद्ध करना संभव हो सकता हो। पर समय के साथ, जनमानस की सुगमता को देखते हुए इनमें से कुछ सरल, सहज और अधिकाधिक लाभ प्रदान करने वाले आसनों को चुना गया। इनकी संख्या 84 है। इसलिए गोरक्ष संहिता व शिव संहिता में मुख्यतः 84 आसनों का ही वर्णन मिलता है।

योगासनों का वर्गीकरण

ऋषि-मुनियों ने मानव समेत पशु , पक्षी व प्रकृति का अध्ययन एवं उन पर अनुसंधान कर विभिन्न स्वास्थ्यवर्धक आसनों को वर्गीकृत किया। योगासनों को हम प्रमुखतः 6 भागों में बाँट सकते हैं-

पशु-पक्षी आसन- ये आसन पशु-पक्षियों की आकृति, उनके उठने-बैठने, चलने-फिरने के तरीकों के आधार पर बनाए गए हैं। जैसे- गोमुखासन, भुजंगासन, मयूरासन, सिंहासन, शलभासन, मत्स्यासन, मकरासन, उष्ट्रासन, शशांकासन, गरुड़ासन आदि।

प्रकृति आसन- ये आसन प्रकृति यानि वृक्ष, वनस्पति आदि पर आधारित हैं। जैसे- ताड़ासन, वृक्षासन, पद्मासन, पर्वतासन, अर्धचंद्रासन आदि।

अंग आसन- इन आसनों के नाम अंग विशेष पर आधारित हैं। जैसे शीर्षासन, सर्वांगासन, पादहस्तासन या उत्तानासन, मेरूदंडासन, पाद अँगुष्ठासन, कटिचक्रासन, कर्णपीड़ासन, शवासन, भुजपीड़ासन आदि।

योगी आसन- ये आसन योगियों, अवतारों, महापुरुषों के नामों पर आधारित हैं। जैसे- नटराजासन, सिद्धासन, महावीरासन, ध्रुवासन, मत्स्येंद्रासन, हनुमानासन, भैरवासन, भरद्वाजासन, अष्टावक्रासन, वीरभद्रासन आदि।

वस्तु आसन- इन आसनों की प्रेरणा विशेष वस्तुओं से ली गई है। जैसे तुला से तोलासन, हल से हलासन, नौका से नौकासन, धनुष से धनुरासन, वज्र से वज्रासन आदि।

अन्य आसन- उपरोक्त श्रेणियों के अतिरिक्त शेष सभी आसन इसी वर्ग में आते हैं। जैसे वक्रासन, सुखासन, वीरासन, पश्चिमोत्तानासन, त्रिकोणासन, चमत्कारासन आदि।

 

आसन करने की विधि व लाभ

यूँ तो हर एक आसन के अनेकानेक लाभ हैं, पर सबका विवरण देना यहाँ संभव नहीं है। आइए, हर वर्ग के एक मुख्य आसन को विस्तार से जानते हैं-

गोमुखासन

इस आसन में व्यक्ति के शरीर की आकृति गाय के मुख के समान बनती है। इसलिए इसे गोमुखासन कहते हैं।

विधि-  सर्वप्रथम दण्डासन में बैठ जाएँ यानि दोनों पैरों को सीधे सामने करके एड़ी-पंजों को मिलाकर बैठें। दोनों कूल्हों के पास सटा कर हथेलियों को जमीन पर रखें। बाईं टाँग को घुटने से मोड़ते हुए दाएँ नितम्ब के नीचे रखें। अब दाईं टाँग को मोड़ते हुए बाएँ घुटने के ऊपर से ले जाकर एड़ी को बाएँ नितम्ब के पास जमीन पर इस प्रकार रखें कि घुटने के ऊपर घुटना आ जाए। अब दाएँ हाथ को कोहनी से मोड़ते हुए नीचे की ओर से अपने पीछे कंधों के बीच ले जाएँ। फिर श्वास भरते हुए बाएँ हाथ को उठाकर कोहनी से मोड़ते हुए ऊपर की ओर से गर्दन के पीछे ले जाएँ। दोनों हाथों की अंगुलियों को पीठ के पीछे इस तरह से रखें कि ये एक-दूसरे से पकड़ी जा सकें। कमर व गर्दन सीधी रखें और सामने की ओर देखते हुए लंबा-गहरा श्वास लें। यथासंभव 30 सेकेंड से एक मिनट तक इसी स्थिति में रहें। फिर धीरे-धीरे श्वास छोड़ते हुए हाथों को खोल दें और पुनः दंडासन की स्थिति में आ जाएँ। यह आधा चक्र हुआ। अब दोनों पाँवों और दोनों हाथों की स्थिति बदलते हुए इस आसन को दोहराएँ। इससे एक चक्र पूरा होगा। इस आसन के चक्र को आप दो से तीन बार दोहरा सकते हैं।

सावधानी- आसन करते हुए पीठ के पीछे दोनों हाथों को एक-दूसरे से पकड़ने का जबरदस्ती प्रयास न करें। हाथों, पैरों, घुटनों और रीढ़ की हड्डी में गंभीर रोग हो या खूनी बवासीर हो तो यह आसन न करें।

लाभ-

यह आसन महिलाओं के लिए बेहद लाभकारी है। कमर दर्द, गठिया, साइटिका, अपच, कब्ज, धातु रोग, बवासीर, मधुमेह, सर्वाइकल, अस्थमा, बहुमूत्र, हर्निया, यकृत व गुर्दे के रोगों में यह आसन बहुत ही फायदेमंद है।

ताड़ासन

इस आसन में शरीर की स्थिति ताड़ के पेड़ के समान हो जाती है, इसलिए इसे ताड़ासन कहते हैं।

विधि- दोनों पैरों को आपस में मिला कर व भुजाएँ बगल में रखकर सीधे खडे़ हो जाएँ। फिर दोनों हाथों की अँगुलियों को आपस में फँसाएँ। धीरे-धीरे लंबा व गहरा श्वास भरते हुए हाथों को इस प्रकार ऊपर लेकर जाएँ कि दोनों हथेलियाँ आसमान की तरफ हों। अब पैरों की एड़ियाँ उठाकर शरीर का सारा भार पंजों पर संतुलित करने का प्रयास करें। श्वास को यथा-संभव भीतर रोक कर रखें। दृष्टि को ऊपर हथेलियों पर केन्द्रित करने का प्रयास करें। 1-2 मिनट तक इस स्थिति में रोकने का प्रयास करें। फिर धीरे-धीरे श्वास छोड़ते हुए हाथों को नीचे करते हुए पुनः अपनी पहले वाली स्थिति में आ जाएँ। इस आसन को आप अपनी क्षमता के अनुसार 5 से 10 बार कर सकते हैं।

सावधानी- यह आसन उच्च या कम रक्तचाप के मरीजों को, घुटनों में दर्द की शिकायत वालों को व गर्भवती महिलाओं को नहीं करना चाहिए।

लाभ-

                कद की वृद्धि के लिए यह आसन सर्वोत्तम है।

                यह आसन एकाग्रता बढ़ाता है।

                इस आसन को करने से पेट की चर्बी और अतिरिक्त वसा कम होती है।

पैरों में झनझनाहट हो या सुन्न पड़ते हों, दर्द हो या सूजन- यह आसन पैरों की हर समस्या में कारगार साबित होता है।

पीठ दर्द, माँसपेशियों के दर्द, तलवों व ऐड़ियों के दर्द में ताड़ासन राहत देता है।

थकान दूर करने में और आलस्य भगाने में भी यह आसन बेहद मददगार है।

शीर्षासन

शीर्षासन को 84 लाख आसनों का राजा कहा जाता है। इस आसन को सिर के बल किए जाने के कारण शीर्षासन कहते हैं। यह आसन करना सहज नहीं है। पर यदि इसको सही तरीके से किया जाए, तो इसके अनेक लाभ हैं। ध्यान रहे, इसको गलत ढंग से करने पर लाभ की जगह कई गुणा ज्यादा हानि हो सकती है। इसलिए इसे योगाचार्य के प्रशिक्षण में ही करें।

विधि- सर्वप्रथम वज्रासन में बैठें। (इसमें एड़ियों के बीच में इस तरह बैठते हैं कि पाँव के दोनों अंगूठे एक-दूसरे पर हों। इस तरह बैठने पर पैरों के तलवों पर आपके कूल्हे होंगे।) अब आगे की ओर झुककर दोनों बाजुओं की कोहनियों को जमीन पर टिकाएँ। फिर दोनों हाथों की अंगुलियों को आपस में मिलाकर पकड़ बनाएँ। अब सिर को दोनों हथेलियों के बीच धीरे-धीरे रखें। इस समय श्वास सामान्य रखें। फिर धीरे-

धीरे सिर को भूमि पर टिकाकर अपने पूरे शरीर का वजन सिर पर छोड़ते हुए पैरों को ऊपर की ओर उठाएँ। पूर्णतः सिर के बल खड़े हो जाएँ। इस अवस्था में यथासंभव रुकने का प्रयास करें। फिर धीरे-धीरे पुनः पैरों के घुटनों को मोड़ते हुए पेट की ओर लाकर पंजों को भूमि पर टिका दें। कुछ देर फिर वज्रासन में बैठकर अपनी सामान्य स्थिति में आ जाएँ। इस आसन के शुरुआती अभ्यास में आप दीवार का सहारा ले सकते हैं।

सावधानी- यह आसन गर्दन या आँखों से जुड़ी समस्या वालों को और रक्तचाप से सम्बन्धित परेशानी महसूस करने वालों को नहीं करना चाहिए।

लाभ-

                शीर्षासन से हमारा पाचन तंत्र मजबूत रहता है।

                इससे असमय बालों का झड़ना व सफेद होना रुकता है। इसके नियमित अभ्यास से सफेद बाल काले होने लगते हैं।

                इस आसन में सिर के बल उल्टा होने से रक्त संचार सुचारू रहता है। खून साफ होता है। साथ ही, स्मरण शक्ति में वृद्धि होती है।

                यह आसन शारीरिक बल प्रदान करता है।

                इस आसन को करने से अवसाद और हर प्रकार का डर खत्म होता है।

 

नटराजासन

भगवान शिव नृत्य के देव माने जाने से नटराज भी कहलाते हैं। उन्हीं की एक मुद्रा पर आधारित है- नटराज आसन।

विधि- सर्वप्रथम सीधे खड़े हो जाएँ। फिर साँस भरते हुए अपने दाएँ घुटने को मोड़ें और दाहिने हाथ से दाएँ पाँव के पंजे को पकड़ें। जितना संभव हो, इसे पीठ के पीछे ऊपर की ओर ले जाएँ। अपने बाएँ हाथ को सामने से 45 डिग्री पर ऊपर उठाएँ और सीधा खीचें। ध्यान रहे, आपका सिर स्थिर और नजरें सामने केन्द्रित हों। इस दौरान शरीर का सारा वजन बाईं टाँग पर ही संतुलित करने का प्रयास करें। यथासंभव इस अवस्था में 15-30 सेकेंड तक रहें। अभ्यास के दौरान गहरी साँस लेते रहें। फिर पहले बाएँ हाथ को वापिस और दाएँ पंजे को छोड़ते हुए भूमि पर रखें। यह आधा चक्र हुआ। अब इसी आसन को बाएँ पैर से दोहराएँ जिससे सम्पूर्ण चक्र हो जाए। इस आसन को आप शुरुआत में 3-5 बार कर सकते हैं।

सावधानी- रीढ़ की हड्डी में कोई परेशानी हो या घुटनों में दर्द, तो इस आसन से दूरी बनाएँ। साइटिका या निम्न रक्तचाप वाले रोगियों को भी यह आसन नहीं करना चाहिए।

लाभ-

                इस आसन से तंत्रिका तंत्र संतुलित रहता है।

                यह आसन दिमाग और कंधों में कैल्शियम के जमाव को रोकता है।

                इससे एकाग्रता में वृद्धि होती है।

                इस आसन से बाँहें और पैर मजबूत होते हैं।

                इस आसन में एक पैर पर शरीर का सारा वजन वहन करना होता है, जिससे शारीरिक संतुलन बढ़ता है।

                यह आसन जाँघों की अतिरिक्त चर्बी को कम करता है।

 

तोलासन

इस आसन में शरीर की रचना तुला (तराजू) के समान हो जाती है। इसलिए इसे तोलासन या तुलासन भी कहते हैं।

विधि- सर्वप्रथम पद्मासन में बैठ जाएँ। (दाएँ पाँव को घुटने से मोड़कर अपनी बाँयी जाँघ पर रखें। फिर इसी तरह बाएँ पाँव को घुटने से मोड़कर दायी जाँघ पर रखें।) अपने दोनों हाथों को कूल्हों की बगल में रखें। एक लम्बी श्वास लेकर अपनी हथेलियाँ भूमि पर टिका दें। फिर हाथों के सहारे अपने कूल्हों को ऊपर उठाने का प्रयास करें। इसे झटके में करने के बजाय धीरे-धीरे करें। इस आसन में पूरा शरीर हाथों पर संतुलित करना है। मात्र हथेलियाँ जमीन को छुएँगी। इस अवस्था में श्वास सामान्य रखें। इस स्थिति में 10-30 सेकेंड तक रहें और फिर साँस छोड़ते हुए प्रारंभिक अवस्था में आएँ। इस क्रिया को 3-5 बार दोहराएँ।

सावधानी- यदि कूल्हों या जाँघों में जकड़न महसूस होती हो, तो इस आसन को न करें। एड़ी या घुटनों में दर्द होने पर भी इस आसन से दूरी बनाएँ। इस आसन को कंधे या कलाई में चोट होने पर तो बिल्कुल न करें।

लाभ-

                इस आसन में हाथों पर शरीर का संतुलन बनाने से हाथ बेहद मजबूत होते हैं।

                यह आसन भुजाएँ, कलाई, कंधों और पेट को मजबूत बनाता है।

                इसे करने से माँसपेशियों का तनाव दूर और दिमाग शांत होता है।

                यह आसन पाचन शक्ति में भी वृद्धि करता है।

                यह पेट की एसिडिटी को भी दूर करने में सहायक होता है।

 

वक्रासन

संस्कृत में ‘वक्र’ शब्द का अर्थ टेढ़ा होता है। इस आसन से शरीर की स्थिति टेढ़ी हो जाती है, इसलिए इसे वक्रासन कहते हैं। इसे करने से शरीर बेशक टेढ़ा हो जाता है, पर मेरूदंड बिल्कुल सीधा हो जाता है। इसलिए रीढ़ की हड्डी की मजबूती के लिए यह योगाभ्यास रामबाण है।

विधि- सर्वप्रथम दण्डासन में बैठ जाएँ। बाएँ पाँव को घुटने से मोड़ें और उसके पंजे को उठाकर दाएँ घुटने के बगल में जमीन पर रखें। अब दाएँ हाथ की कोहनी से बाएँ पैर के घुटने को दबाते हुए बाएँ पैर के अंगूठे को अपनी ओर खींचें। बाएँ हाथ को कमर के पीछे ले जाएँ और हथेली को भूमि पर रखें, जब तक कि पीठ लंबवत् न हो जाए। साँस छोड़ते हुए सिर को बाईं ओर मोड़कर देखें। इस स्थिति में 10-30 सेकेंड तक रहें और फिर साँस लेते हुए प्रारंभिक अवस्था में आएँ। यही क्रिया दूसरी ओर से दोहराएँ। यह एक चक्र हुआ। इस आसन को आप अपनी क्षमता के अनुसार 3-5 बार कर सकते हैं।

सावधानी- इस आसन को हमेशा खाली पेट ही करें। कमर, गर्दन, कोहनी, घुटनों व पेट के दर्द में यह आसन नहीं करना चाहिए।

लाभ-

                यह आसन अवसाद, मधुमेह, हर्निया और मोटापे के रोग में लाभदायक है।

                इस आसन के नियमित अभ्यास से तंत्रिका तंत्र मजबूत होता है।

नोट- कोई भी आसन करने से पूर्व शरीर को कुछ हल्के व्यायामों से गर्म जरूर कर लें।

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