कोरोना महामारी के इस काल खंड ने सोचने पर विवश कर दिया है कि इतने वर्षों के अथक प्रयास के बाद मनुष्य ने विकास की जिस सीढ़ी को छुआ है, वह एक झटके में ही एक सूक्ष्म जीव द्वारा खंड-खंड हो गया। किन्तु मनन करने योग्य बात है कि इस सूक्ष्म जीव को, जिसे इन बाहरी आँखों से देखना असंभव है, बाहरी अथवा स्थूल साधनों से परास्त कैसे किया जा सकता है? निःसंदेह इसके लिए सूक्ष्म-अतिसूक्ष्म साधनों का आधार लेना होगा। और यह असंभव भी नहीं। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान (DJJS) के संचालक एवं संस्थापक सर्व श्री आशुतोष महाराज जी के अनुसार प्रकृति हमारे बाहरी और आंतरिक, दोनों स्तरों पर विद्यमान और क्रियाशील रहती है। मानव समाज की जैसी आंतरिक प्रकृति होगी, बाहरी प्रकृति में भी वही प्रतिबिम्ब होगा। अर्थात उपाय सरल है। मनुष्य अपनी आंतरिक प्रवृति को स्वच्छ एवं निष्पाप कर ले तो बाहरी प्रकृति स्वयं ही लाभान्वित हो जायेगी। और इसके लिए हम सभी को भारतीय संस्कृति के सांस्कृतिक कोष अर्थात वेद, जो समस्त ज्ञान का भण्डार हैं और जिसके माध्यम से नकारात्मकता को सकारात्मकता में परिणित किया जा सकता है, की ओर रुख करना होगा।
इस कोरोना काल में जहाँ पर व्यक्ति शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य से भी इस Covid-19 वायरस की चपेट से दूर नहीं है I वातावरण में फैली नकारात्मकता ने, व्यक्ति के दिलों- दिमाग पर एक भयावह डर बनाया हुआ है I ऐसे में अपने चित्त को सकारात्मक तथा पवित्र तरंगों से मन को ओत-प्रोत रखना, अत्यंत दुष्कर हो गया है I इसी तनाव ग्रस्त माहौल को देखते हुए दिव्य ज्योति वेद मंदिर न केवल संस्कार एवम् संस्कृति युक्त मानव का निर्माण करने में संलग्न है, अपितु इस विश्व को दिव्य शांतमयी वैदिकी तरंगों से गुंजायमान करने की ओर भी क्रियाशील है|
भारतीय संस्कृति के अनुसार मानव समाज के पास चार वेद धरोहर रूप में है - ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद तथा अथर्ववेद| यह चार वेद अपने भीतर सृष्टि के प्रत्येक रहस्य को गर्भित किये हुए है I यजुर्वेद के रुद्राष्टाध्यायी की ऋचाओं का शुद्ध भावों से युक्त, ब्रह्मज्ञानी साधकों द्वारा, ब्रह्मनिष्ठ गुरु के सानिध्य में , शुद्ध उच्चारण करने से पूरे विश्व को ओजस्वी स्पंदन से स्पंदित किया जा सकता है तथा जिसके माध्यम से एक-एक इकाई के मन में व्याप्त नकारात्मकता को सकारात्मकता में परिणित किया जा सकता है, जिससे यह आज का आधुनिक मानव भी भर्गो ज्योति के प्रकाश की ओर अग्रसर हो सकता है I
अतः दिव्य ज्योति वेद मंदिर द्वारा रुद्राष्टाध्यायी पाठन के सत्रों को समय-समय पर आयोजित किया जाता रहा है I इसी कड़ी में एक और कड़ी जोड़ते हुए कोरोना के इस भयावय समय में 7 अप्रैल 2020 से 30 अप्रैल 2020 तक रुद्री पाठ की ऑनलाइन कक्षा के प्रथम सत्र का आयोजन किया गया जिसमे दिल्ली के विभिन्न स्थानों के 25 वेद पाठी शिक्षार्थियों को न केवल त्रुटिरहित शुद्धउच्चारण सिखाया गया अपितु सभी वेदपाठियों को बतौर शिक्षक के रूप में भी प्रशिक्षण दिया गया I वेद पाठी शिक्षार्थियों का चयन दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा किता गया|
जैसा कि हम जानते है कि इस कोरोना महामारी के कारण , सामाजिक दूरी का पालन करना अति आवश्यक है, तो ऐसे में घर में ही रह कर आधुनिक युग की तकनीक का सदुपयोग करते हुए सभी वेदपाठियों ने रुद्री पाठ की online कक्षा का पूर्णतया लाभ उठाया I परिणामतः सभी वेदपाठी जो दिल्ली के अलग-अलग क्षेत्र से है वह पूर्ण रूप से रुद्राष्टाध्यायी का उच्चारण सिखाने में भी सक्षम हुए है I अतः यह पूरे भारतवर्ष तथा सम्पूर्ण विश्व को अपनी पुरातन संस्कृति की ऋचाओं की मंगलध्वनि से गुंजित करने की ओर सशक्त पहल है I
तदोपरांत, दिव्य ज्योति वेद मंदिर, जो भारतीय वैदिक संस्कृति के पुनरुथान एवं संस्कृत भाषा के प्रचार-प्रसार कार्यों में संलग्न है, के द्वारा 15 मई 2020 को रुद्री पाठ कक्षाओं के दुसरे बैच का आरम्भ हुआ जिसमे वेड पाठी शिक्षार्थियों का चयन दिव्या ज्त्योती जाग्रति संस्थान द्वारा पूरे भारतवर्ष की विभिन्न शाखाओं द्वारा किया गया| इस कक्षा में 120 नामांकन आये और यह कक्षा अभी चलायमान है|
इसी के साथ 15 जून 2020 से वेद पाठ के अखिल भारतीय तीसरे बैच का भी आरम्भ हो चूका है | इसमें 2650 से अधिक नामांकन देश के विभिन्न राज्यों से व दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान के 44 केन्द्रों से आये हैं| इन सभी नामांकनों को सूचीबद्ध कर 24 समूहों में बांटा गया है जिन्हें उपरोक्त तैयार किये गए 12 वेद पाठी शिक्षक online कक्षा के माध्यम से वेद पाठ सिखा रहे हैं| ब्रह्मज्ञानी वेद पाठी साधकों द्वारा वेद मन्त्रों के निस्वार्थ एवं विशुद्ध उच्चारण से उत्पन्न सूक्ष्म स्पंदन से निस्संदेह ही अखिल विश्व को लाभ होगा तथा मानव अपनी मानवता को और वसुंधरा अपनी दिव्यता को पुनः प्राप्त कर सकेगी।