ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार जनवरी के पहले दिन को नववर्ष के रूप में मनाया जाता है परन्तु भारतीय संस्कृति के अनुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, नववर्ष का आरम्भ है। भारतीय गणना के अनुरूप चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को नववर्ष के रूप में स्वीकार करना तर्कसंगत है क्योंकि जहाँ जनवरी का आरम्भ सर्दियों में होता है, वहीँ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा में वसंत ऋतु की शुरुआत होती है। सर्दियों में पूरी प्रकृति बर्फ में ढकी निष्प्राण लगती है। लेकिन वसंत ऋतू के दौरान सम्पूर्ण प्रकृति में नवजीवन का संचार होता है, मानों वृक्षों की नई पत्तियां और फूल नववर्ष का स्वागत कर रहे हो। अनेक वर्षों से लोग चैत्र शुक्ल प्रतिपदा दिवस को भूलकर मात्र ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार नए साल का जश्न मनाते हैं। परन्तु वर्तमान पीढ़ी को भारतीय नववर्ष के महत्व से परिचित करवाने के लिए, परम पूजनीय पावन आशुतोष महाराज जी के मार्गदर्शन में दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान ने विक्रम संवत् 2076 को नववर्ष के रूप में मानते हुए 6 अप्रैल 2019 को अपनी विभिन्न शाखाओं- जोधपुर, देहरादून, पिथौरागढ़ आदि में अनेक आध्यात्मिक रैलियों और कार्यक्रमों का आयोजन किया।
रैलियों और आयोजनों के माध्यम से चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को मनाने के महत्वपूर्ण कारणों को रखा गया। पुराण में वर्णित है कि भगवान ब्रह्मा ने इस दिन से लेकर नौवें दिवस की रात्रि तक सृष्टि का निर्माण किया था। ऐसा भी प्रचलित है कि उन्होंने देवी शक्ति के नौ रूपों के सहयोग से इस निर्माण को पूर्ण किया। इसलिए इन नौ दिनों को नवरात्रि के रूप में मनाया जाता है। प्राचीन भारतीय परंपरा के अनुरूप इसी दिन को नए साल के पहले दिन के रूप में मनाया जाता है।
भारतीय नववर्ष के इस दिन हर ओर सकारात्मक ऊर्जा प्रवाहित होती है जो मानव जाति की आध्यात्मिक उन्नति के लिए भी सहायक है। विशिष्ट दिन पर भारतीय परंपरा में अनेक ऐतिहासिक घटनाएं घटित हुई हैं। उदाहरण के लिए भगवान विष्णु ने सतयुग में मत्स्य अवतार के रूप में पृथ्वी पर अवतार लिया था। त्रेतायुग में श्री राम का व द्वापरयुग में युधिष्ठिर का राज्याभिषेक भी इसी दिन हुआ था। भारतीय संस्कृति में ज्योतिषीय के अनुसार इस दिन ग्रहों की स्थिति शुभ मानी गयी है। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को नए साल के पहले दिन के रूप में मनाने के कारणों को तर्कपूर्ण ढ़ंग व प्रामाणिकता प्रदान करते हुए रखा गया।