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गुरु-शिष्य संबंध को ओर अधिक पोषित करने, प्रेरित करने एवं दृढ़ करने हेतु, दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा 16 फरवरी, 2020 को नूरमहल, पंजाब में मासिक आध्यात्मिक कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस भक्तिपूर्ण कार्यक्रम में पंजाब के विभिन्न शहरों एवं अन्य राज्यों के हजारों श्रद्धालुओं ने भाग लिया। संत-समाज व विद्वत प्रचारकों द्वारा मधुर भजनों और प्रेरणादायक प्रवचनों ने भक्तों को गुरु भक्ति व अध्यात्म मार्ग पर दृढ़ता से बढ़ने हेतु प्रेरित किया। उपस्थिति साधकों के हृदय श्रद्धेय सतगुरु सर्व श्री आशुतोष महाराज जी के प्रति श्रद्धा एवं समर्पण से सराबोर हुए।

Infinite Love & Grace of Satguru Replete the Hearts of Devotees in Monthly Spiritual Congregation at Nurmahal

मार्ग की खोज करना एक बात है परन्तु वास्तव में अंत तक उस मार्ग पर चलते रहना, एक साधक का लक्ष्य होना चाहिए। पूर्ण गुरु द्वारा सत्य और आध्यात्मिकता के मार्ग को प्राप्त करने के उपरांत साधक को निरंतर गतिमान रहने हेतु सत्संग व प्रेरणादायक विचारों की आवश्यकता होती है। अधिकतर इस मार्ग पर बढ़ते हुए शिष्य जीवन के संघर्ष, माया का प्रभाव और तुच्छ इच्छाओं के अधीन हो अनेक बार उच्चतम लक्ष्य को विस्मृत करने लगता है। सर्वज्ञ सतगुरु, शिष्य के हर कर्म व विचार के ज्ञाता होते हैं इसलिए सतगुरु विभिन्न तरीकों से शिष्य को अध्यात्म पथ पर अग्रसर करते हैं। अपनी सर्वोच्च ऊर्जा से शिष्य की निम्न ऊर्जा को ऊर्ध्वगामी बनाते हैं। सतगुरु अपने प्रत्येक शिष्य के कल्याणार्थ कार्यरत रहते हैं, परन्तु  सतगुरु की कृपा प्राप्त करने हेतु गुरु आज्ञा का पालन करना अति आवश्यक है। साधक को सदैव अपने मन, शरीर और आत्मा को गुरु आज्ञाओं के प्रति समर्पण करना चाहिए।

प्रचारकों ने विचारों के माध्यम से समझाया कि जहां दुनिया के प्रति समर्पण, हमारी ऊर्जा को समाप्त कर देता है, वहीँ सतगुरु के प्रति हमारी भक्ति हमें नई शक्ति और ऊर्जा से पोषित कर हमें पुन: जीवित करती है। सतगुरु के प्रति समर्पण ही सर्वोपरि है। जिन भक्तों का मन गुरु के विचारों से भर जाता है और जो अपने मिशन के लिए आत्मसमर्पण कर देते हैं, वे किसी भी संघर्ष या परीक्षाओं को सहजता से पार कर लेते हैं। उपदेशकों ने भगवान शिव के भक्त नंदी का उदाहरण देते हुए समझाया कि जब नंदी को एक राक्षस कष्ट दे रहा था तो उस समय उन्हें इन कष्टों का अहसास ही नहीं हुआ क्योंकि भगवान शिव उस कष्ट को स्वयं पर ले रहे थे। सतगुरु के साथ शाश्वत और दिव्य संबंध स्थापित करने का मार्ग मात्र साधना ही है। साधना मन को नियंत्रित करने में सहयोग करती है, हमें आत्म-मूल्यांकन का सार सीखाती है और हमारे भीतर गुरु के प्रति कृतज्ञता का बीज बोती है। भक्ति मार्ग पर बढ़ रहे निस्वार्थ साधकों के भावों ने यह प्रमाणित किया कि कोई भी जागृत आत्मा साधारण नहीं है अपितु अपार चेतन ऊर्जा का भंडार है।

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