जिस तरह से भोजन मानव शरीर के लिए पोषण प्रदान करता है, वैसे ही सत्संग मानव आत्मा के लिए पोषण के रूप में कार्य करता है। 15 अप्रैल 2018 को उत्तराखंड के पिथौरागढ़ में आयोजित मासिक आध्यात्मिक कार्यक्रम के अंतर्गत मानव जीवन में सत्संग के इस महत्व को हजारों की संख्या में उपस्थित साधकों के समक्ष रखा गया।
गुरुदेव के श्रीचरणों में प्रार्थना से कार्यक्रम की शुरूआत हुई| कई भक्त संगीतकारों ने भक्तिमय दिव्य संगीत की प्रस्तुति भी की| उपस्थित भक्तों ने भजनों द्वारा निर्मित भक्ति वातावरण का पूरी तरह से आनंद लिया। श्री आशुतोष महाराज जी के अनेक प्रचारकों ने भक्तों के आध्यात्मिक विकास के लिए मूल्यवान शिक्षाएं प्रदान कीं। उन्होंने मानव जीवन में सत्संग के महत्व पर बल दिया। हम शरीर को स्वस्थ रखने के लिए उसे नियमित पोषण प्रदान करते हैं| लेकिन जब हमारी आत्मा की बात आती है तो हम लापरवाह हो जाते हैं। जबकि हमारी प्यासी आत्मा को नियमित सत्संग के अमृत की आवश्यकता होती है। प्रचारकों ने सत्संग के महत्व को उजागर करने वाले कई उपाख्यानों को भी रखा| दैनिक कार्यों में उलझे होने के पश्चात भी हमें उस शाश्वत स्रोत से जुड़ने की परम आवश्यकता है। संसार और भगवान, हमें दोनों के बीच संतुलन बनाने की जरूरत है। हमारे संत कमल के फूल के उदाहरण के साथ इसका वर्णन करते हैं। जिस तरह कमल कीचड़ में रहता है लेकिन फिर भी सम्बन्ध सूर्य के साथ बनाकर रखता है, वैसे ही हमें ईश्वर के साथ ऐसा सम्बन्ध बनाए रखने की ज़रूरत है। सत्संग उस संतुलन को बनाए रखने में एक प्रमुख भूमिका निभाता है।
प्रचारकों और शिष्यों द्वारा प्रसारित भक्ति संगीत व दिव्य आध्यात्मिक विचारों को सुन भक्त अभिभूत हो उठे| सभी भक्तों ने नियमित रूप से सत्संग में भाग लेकर अपनी आत्मा को पोषित करने की शपथ भी ली| कार्यक्रम के अंत में भक्तों के लिए भंडारे की व्यवस्था की गई।
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