श्रीमद्भागवत महापुराण भगवान के अनेक अवतारों व प्रभु भक्तों की गाथा द्वारा जीवन के विभिन्न आयामों को स्पष्ट रूप से समाज के समक्ष रखता है। द्वापर युग में भगवान विष्णु ने श्री कृष्ण रूप में अधर्म रूपी अंधकार का अंत कर, समाज में धर्म को स्थापित किया। श्री कृष्ण ने समाज की सभी समस्याओं के मूल को समाप्त करने का सशक्त मार्ग प्रदान किया। श्री कृष्ण द्वारा प्रदत्त शिक्षाओं से समाज को पुनः परिचित करवाने हेतु सर्व श्री आशुतोष महाराज जी के मार्गदर्शन में दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान ने दिल्ली के प्रहलादपुर में भव्य व विशाल श्रीमद्भागवत कथा का आयोजन किया। 20 मई से 26 मई 2019 तक आयोजित इस सात दिवसीय आध्यात्मिक समारोह में अनेक भक्त और गणमान्य जन उपस्थित रहे। कथावाचक साध्वी कालिंदी भारती जी ने अपनी सरस वाणी द्वारा भावपूर्ण कथा का वर्णन किया। सुमधुर व प्रेरणादायक भजनों की श्रृंखला ने उपस्थित भक्तों को मंत्रमुग्ध कर दिया।
साध्वी जी ने बताया कि श्री कृष्ण सर्वोच्च उत्कृष्टता के प्रतीक हैं। उनका बहुआयामी व्यक्तित्व अद्वितीय उद्धरण है। उन्होंने हर विभिन्न भूमिका को चाहे वह चरवाहे के रूप में गौपालक, गुरु सांदीपनि के आज्ञाकारी शिष्य, द्वारका के महान राजा, द्रौपदी के दिव्य रक्षक, सुदामा के सहयोगी मित्र, गूढ़ दार्शनिक, निपुण बांसुरी वादक या ब्रह्मज्ञान प्रदाता जगद्गुरु आदि को पूर्णता से निभाया है।
साध्वी जी ने भगवान कृष्ण द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतों व उपदेशों में निहित आध्यात्मिकता को स्पष्ट रूप से प्रकट किया। जगद्गुरु की भूमिका में श्री कृष्ण ने भक्तियोग, ज्ञानयोग और कर्मयोग के सर्वोच्च सत्य को धनुर्धारी अर्जुन, ब्रज के गोप-गोपियों व अनेक भक्तों को प्रदान किया। महाकाव्य महाभारत के अंतर्गत कुरुक्षेत्र के युद्धक्षेत्र में भगवान कृष्ण द्वारा अर्जुन को ब्रह्मज्ञान प्रदान करने का उल्लेख मिलता है। श्री कृष्ण ने सतगुरु की भूमिका में धैर्यपूर्वक अर्जुन के तर्कों, संदेहों और भ्रमों को सुना व निवारण का मार्ग प्रदान किया।
कथाव्यास जी ने समझाया कि सांसारिक कामों और सामाजिक बंधनों से घिरे हुए व्यक्ति की बुद्धि भावनाओं, वासनाओं, लोभों और भौतिकवादी सुखों के आधीन रहती है। आज ध्यान सम्पूर्ण विश्व में चर्चा का विषय है परन्तु विडम्बना यह है कि समाज ध्यान की वास्तविक तकनीक से अनभिज्ञ है। ध्यान का आरम्भ तभी सम्भव है जब एक सतगुरु, ब्रह्मज्ञान के माध्यम से दिव्य नेत्र को प्रगट कर देते हैं।
साध्वी जी ने कथा के अंत में कहा कि हमें भगवान कृष्ण के पद चिन्हों का अनुसरण करते हुए एक पूर्ण सतगुरु की खोज करनी चाहिए। आध्यात्मिक रूप से जागृत सतगुरु ही ब्रह्मज्ञान द्वारा हमारी वास्तविकता से हमें परिचित करवाने में सक्षम होते है। सर्व श्री आशुतोष महाराज जी वर्तमान युग में आत्म-साक्षात्कार के शाश्वत विज्ञान “ब्रह्मज्ञान” के माध्यम से विश्व शांति के महान व बृहद लक्ष्य को साकार कर रहे हैं। ब्रह्मज्ञान का विज्ञान ही व्यक्तिगत और सामाजिक उत्थान द्वारा आध्यात्मिक, सामाजिक और नैतिक मूल्यों को समृद्ध करने का सशक्त मार्ग है।