दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी के दिव्य मार्गदर्शन में 7 दिवसीय श्रीमद भागवत कथा का 24 से 30 दिसंबर 2023 तक उदयपुर, राजस्थान में आयोजन किया गया। कार्यक्रम ने शास्त्रों के ज्ञान को जन-जन तक पहुंचाने और आत्म साक्षात्कार के शाश्वत विज्ञान ‘ब्रह्मज्ञान’ के माध्यम से प्रत्येक व्यक्ति को सच्ची आध्यात्मिकता के प्रति जागृत करने के अपने प्रयास को जारी रखा। कथा के प्रवाह से शहर और उसके आसपास से बड़ी संख्या में जिज्ञासु भक्त पहुँचें। अत्यधिक भक्ति के साथ रचित मधुर भजनों ने उपस्थित लोगों के हृदयों को गहरी भावनाओं और भगवान के प्रति श्रद्धा को भर दिया।
साध्वी वैष्णवी भारती जी ने भक्तों को भगवान श्री कृष्ण की महाकाव्य गाथा के विभिन्न श्लोकों से जीवन बदलने वाले उपदेशों से अवगत कराया। मानव जीवन और मोक्ष को नियंत्रित करने वाले सर्वोच्च नियमों को उजागर करने के लिए अन्य सभी शास्त्रों की अवधारणाओं को भी समाहित किया। साध्वी जी ने भगवान श्री कृष्ण के जीवन से विभिन्न घटनाओं तथा धर्म की स्थापना में उनके कार्यों की तथ्यात्मक दावों व उदाहरणों के साथ पुष्टि की।
उन्होंने कहा कि हम चाहे किसी भी युग में रहें, मनुष्यों के बुरे कार्यों को क्षमा किए जाने की हमेशा से एक सीमा होती है। अधर्म सृष्टिकर्ता की रचना में हमेशा के लिए नहीं रह सकता है। उन्होंने नरकासुर और शिशुपाल का उदाहरण देते हुए दुनिया की वर्तमान स्थिति को अधर्म के चरम पर बताया। हालांकि नरकासुर भू-देवी का पुत्र था, किन्तु जब उसके बुरे कार्य एक शिखर पर पहुंचे जहां उसने 16000 निर्दोष महिलाओं का अपहरण कर लिया, तो भगवान विष्णु द्वारा दिया गया सुरक्षा का वरदान भी उसे विनाश से नहीं बचा सका। शिशुपाल का भी कुछ ऐसा ही उदहारण आता है। उसके 100 अपराध शमा किये गए थे। किन्तु, अपनी वृत्तियों को सुधारने के बजाय, उसने ९९ अपराध बिना सोचे समझे खुल कर किये। और अधर्म के मार्ग पर चलने की उसकी इसी आदत ने उससे १००वां अपराध भी जल्द ही करा लिया जिसके परिणामस्वरूप उनका अंत हो गया।
इसी तरह, वर्तमान समय में भी, कई लोग पाप कर रहे हैं, विकारों के मार्ग का अनुसरण कर रहे हैं, किन्तु उन्हें भी असीमित पाप करने की अनुमति नहीं है। जिस क्षण उनकी गिनती खत्म हो जाएगी, भाग्य शिशुपाल या नरकासुर के समान होगा। इसलिए, रसातल से उठने और अर्जुन या हनुमान जी की तरह जीवन जीने के लिए सत्य, तपस्या और सच्चे ज्ञान की शरण लें। क्यूंकि भगवन श्री कृष्ण ने गीता में कहा है – ‘यदि तुम पापियों में सबसे निकृष्ट भी हो, तो भी तुम दिव्य ज्ञान की नाव द्वारा सभी पापों और दुखों के सागर को पार करने में सक्षम हो’। ज्ञान की अग्नि अर्थात ब्रह्मज्ञान सभी कर्मों को जलाकर राख कर देती है।
यह आयोजन सच्चे ज्ञान और इस मानव जीवन के उद्देश्य के संदेश को संप्रेषित करने में सफल रहा। साध्वी जी ने कहा की हमें पूर्ण सतगुरु की शरण को ग्रहन करना चाहिए जो प्रत्येक आत्मा को भगवान की प्रत्यक्ष अनुभूति करा उसे भीतर से जागृत करते हैं और सत्य व धर्म से परिपूर्ण स्वर्णिम युग को लाने का कार्य करते हैं।