भगवान विष्णु के10 अवतारों में से 8 वें अवतार थे भगवान श्री कृष्ण, जो 16 ललित कलाओं से युक्त सर्वज्ञ, एवं सर्वव्यापी सत्ता है । अनादिकाल से भगवान श्री कृष्ण की प्रत्येक लीला सम्पूर्ण मानव जाति के लिए जिज्ञासा एवं प्रेरणा का विषय रही है। भगवान श्री कृष्ण का जन्म भाद्रपद माह के आठवें दिन, मध्य रात्रि में हुआ था जिसे जन्माष्टमी के रूप में पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। विगत कई वर्षों से डीजेजेएस द्वारा श्री कृष्ण जन्माष्टमी का कार्यक्रम वृहद् स्तर पर मनाया जाता है। प्रत्येक वर्ष की ही भांति, इस वर्ष भी गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी की दिव्य अनुकम्पा से यह पर्व धूमधाम से मनाया गया जिसका उद्देश्य भारतीय प्राचीन धरोहर एवं उनके सांस्कृतिक मूल्यों को जन जन तक प्रसारित करना था।
भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं एवं उनके पीछे निहित दिव्य संदेशों को नृत्य नाटिका, एवं प्रेरणा दायी विचारों द्वारा सबके समक्ष रखा गया । गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी के दीक्षित शिष्य एवं शिष्याओं द्वारा इस आयोजन की तैयारी महीनों पूर्व आरम्भ कर दी जाती है। मनोहर एवं कर्णप्रिय संगीत एवं नाटकीय प्रस्तुति ने सभी को मोहित कर दिया। इस कार्यक्रम में श्री गुरुदेव के समर्पित शिष्य एवं शिष्याओं द्वारा श्री कृष्ण की दिव्य लीलाओं के पीछे छिपे रहस्यों एवं दिव्य संदेशों को उद्घाटित किया गया। भगवान श्री कृष्ण के द्वारा दिए सन्देश न केवल उस युग में अपितु इस युग में भी समान महत्त्व रखते हैं। भगवान श्री कृष्ण ने ब्रह्मज्ञान का सन्देश दिया जो कि वर्तमान युग की पुकार है। ब्रह्मज्ञान के माध्यम से ही मनुष्य आत्मिक उन्नति को प्राप्त कर सकता है, एवं एक श्रेष्ठ समाज की नींव रख सकता है। गहन आध्यात्मिक विचारों, मनोहारी भजन संगीत एवं नृत्य नाटिकाओं ने सभी के हृदयों को झंकृत कर डाला। उपस्ठित भक्त श्रद्धालुगणों ने स्वयं को बदलने एवं एक श्रेष्ठ समाज के निर्माण में अग्रणी भूमिका अदा करने का प्रण लिया।