‘गीता जयंती’ भारतियों के पवित्र धार्मिक ग्रंथ ‘श्रीमद्भागवद्गीता’ के प्राकट्य रूप मनाई जाती है। यह भारतीय कैलेंडर/पंचांग के अनुसार, मार्गशीष महीने के 11वे दिन शुक्ल एकादशी को मनाई जाती है। गीता का उपदेश भगवान श्री कृष्ण ने मोहग्रस्त अर्जुन को दुविधा से मुक्त करने हेतु कुरुक्षेत्र की भूमि में प्रदान किया। यह विश्व का सर्वाधिक पढ़ा जाने वाला धार्मिक ग्रंथ है।
दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान को हरियाणा सरकार द्वारा 6 से 8 दिसंबर 2019 तक देवी लाल विश्वविद्यालय, सिरसा (हरियाणा) में आयोजित गीता जयंती मोहत्सव, 2019 में आमंत्रित किया गया।
इस अवसर पर सर्व श्री आशुतोष महाराज जी के शिष्य स्वामी विज्ञानानंद जी ने अपने विचारों को रखते हुए समझाया कि श्रीमद्भागवद्गीता कर्म की वास्तविक अवधारणा को अभिव्यक्त करती है। यह महान ग्रंथ एक व्यक्ति के स्वयं, समाज और ईश्वर के प्रति कर्तव्यों का बोध कराती है। कुरुक्षेत्र के युद्ध मैदान में भगवान कृष्ण के उपदेशों को प्राप्त कर अर्जुन उस परम ज्ञान को प्राप्त करते हैं, जो उनकी समस्त शंकाओं को दूर कर उन्हें कर्म की ओर अग्रसर करने में सहायक होता हैं। गीता के दिव्य विचार मानव समाज को उचित बोध प्रदान कर, उनका का मार्ग प्रशस्त्र करते हैं। श्रीमद्भागवद्गीता मात्र एक प्राचीन धार्मिक ग्रंथ ही नहीं हैं, बल्कि आधुनिक समाज में आध्यात्मिक जाग्रति के संचार हेतु वह आचारसहिंता है जो मानव समाज को श्रेष्ठता तक पहुंचा सकती है। श्रीमद्भागवद्गीता के नियमों का अनुपालन करते हुए एक व्यक्ति कठिन से कठिन व विपरीत से विपरीत परिस्थिति में भी उचित निर्णय लेने में सक्षम बन सकता है।
भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को जीवन के विषय में समझाते हैं कि योग द्वारा ही मनुष्य द्वेष और कष्टों से मुक्त हो सकता है। मात्र ब्रह्मज्ञान के अभ्यास द्वारा ही मानव कर्म बंधनों से मुक्त हो पाता है। आध्यात्मिक जागृति तथा ब्रह्मज्ञान का नियमित अभ्यास ही सभी कष्टों से मुक्ति का मार्ग प्रदान करता है।