दिव्य ज्योति वेद मन्दिर द्वारा "संस्कृत दिवस" वैश्विक स्तर पर ऑनलाइन माध्यम से ३१ अगस्त २०२३ को आयोजित किया गया, जिसमे देश विदेश के संस्कृत प्रेमियों ने उत्साह पूर्वक भाग लिया। सम्पूर्ण कार्यक्रम का सञ्चालन और प्रस्तुति मुख्यतः दिव्य ज्योति वेद मन्दिर के शिक्षकों व विद्यार्थियों द्वारा संस्कृत भाषा में किया गया । कार्यक्रम का आरम्भ चाकन, महाराष्ट्र के ब्रह्मज्ञानी वेदपाठियों द्वारा " श्री गुरु अष्टकम" से किया गया। इसके उपरान्त दैनिक जीवन से संबंधित, सरल संस्कृत भाषा को सिखाती, DJVM की श्रृङ्खला 'दिनचर्यावली ' और 'शब्दावली ' पर निर्धारित रोचक प्रश्नोत्तरी प्रस्तुत की गई जिसमें सभी ने बढ़ चढ़ कर भाग लिया। तदोपरान्त एक मनभावन भरतनाट्यम् प्रस्तुति को सभी के समक्ष प्रस्तुत किया गया।
![Divya Jyoti Ved Mandir Celebrated Sanskrit Diwas 2023 on Global Scale](https://www.djjs.org/uploads/news/im_6503df081e5b6.jpg)
संस्कृत और संस्कृति के प्रचार प्रसार और आध्यात्मिक धर्म ग्रन्थों मे निहित ज्ञान की खोज में संलग्न दिव्य ज्योति वेद मन्दिर की भारत यात्रा की झलक भी कार्यक्रम में देखने को मिली, जिसे विभिन्न राज्यों के वैदिक अनुरक्त और विद्वानों द्वारा सराहा व सम्मानित किया गया है। दक्षिण भारत में आयोजित वैदिक सङ्गोष्ठी में दिव्य ज्योति वेद मन्दिर की सहभागिता और प्रतिष्ठित मठों के विद्वानों से भेंट के अनुभव साध्वी ऋतु भारती जी द्वारा साञ्झा किए गए।
आचार्य डॉ. विजय कुमार सिंह ने दिव्य गुरु श्री आशुतोष महाराज जी का कोटि कोटि धन्यवाद करते हुए कहा कि महाराज जी की निश्चित ही दिव्य गुरु की कृपा से सम्पूर्ण जगत ब्रह्मज्ञानमय और संस्कृतमय होगा।
![Divya Jyoti Ved Mandir Celebrated Sanskrit Diwas 2023 on Global Scale](https://www.djjs.org/uploads/news/im_6503df04005e8.jpg)
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रोफेसर सी उपेंद्र राव, जवाहर नेहरू विश्वविद्यालय ने कार्यक्रम की प्रशंसा करते हुए कहा कि देश का विकास संस्कृत और संस्कृति द्वारा ही सम्भव है। डॉ. देवकीनंदन शर्मा जी, संस्कृत भारती, दिल्ली प्रांत मंत्री ने भी कार्यक्रम की भूरी-भूरी प्रशंसा की।
कार्यक्रम के अन्त में दिव्य ज्योति वेद मंदिर की वैश्विक कार्यकारिणी अध्यक्षा साध्वी दीपा भारती जी ने उपस्थित सभी अतिथियों का उनके उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद व अभिन्दन किया। उन्होंने कहा की संस्कृत दिवस के अवसर पर हम ये सङ्कल्प लेते है की मातृ भाषा 'संस्कृत भाषा' का पूरी निष्ठा और समर्पण के साथ प्रचार प्रसार करेंगे, संस्कृत भाषा को विश्व की भाषा बनाएँगे व अपनी संस्कृति को विजयी संस्कृति बनाएंगे।
"संस्कृत भाषां वैश्विक भाषां करिष्यति"