या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥१२॥

(वह देवी जो सभी जीवों में शक्ति रूप में स्थित है,

उसे नमन है, उसे नमन है, उसे नमन है, शत-शत नमन है) - देवी महात्म्यम्
गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी (संस्थापक एवं संचालक, डीजेजेएस) के दिव्य मार्गदर्शन में दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान (डीजेजेएस) द्वारा 15 अक्तूबर 2023 को बाल भवन, मॉडल टाउन, रेवड़ी, हरियाणा और 19 अक्तूबर 2023 को गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश में ‘शक्ति आराधन’ कार्यक्रम का आयोजन किया गया। उत्साहपूर्वक प्रवचनों व भावपूर्ण भजनों के माध्यम से ‘ईश्वर को देखा जा सकता है’ के शाश्वत संदेश को श्रवण करने असंख्य श्रद्धालुगण पहुँचे।
गुरुदेव की प्रचारक शिष्या, साध्वी श्वेता भारती जी ने श्रद्धालुओं को मानव जीवन में आध्यात्मिक जागरण द्वारा माँ शक्ति से जुड़े रहने की शाश्वत विधि पर विस्तारपूर्वक व्याख्यान प्रस्तुत किया। उन्होंने समझाया कि सृष्टि की रक्षक, पालनहार व दुःख भंजनी माँ दुर्गा, परब्रह्म की ही शक्ति स्वरूपा हैं। दृढ़ संकल्प, इच्छा-शक्ति, व निर्भयता के द्योतक सिंह की सवारी करने वाली माँ दुर्गा को ‘ब्रह्मज्ञान’ की शाश्वत विधि द्वारा ही जाना जा सकता है। अतः ‘ब्रह्मज्ञान’ आधारित आत्म-विश्लेषण द्वारा ही माँ का सच्चा आराधन संभव है।
उन्होंने समझाया कि भक्ति पथ का आरंभ अन्तर्जगत से होता है और समस्त बाह्य पद्धतियाँ मानव को अंतस की गहराइयों में उतरकर माँ शक्ति को प्राप्त करने का संकेत देती हैं। ईश्वर प्राप्ति का मार्गदर्शन प्रदान करते हमारे वेदों-ग्रंथों में स्पष्ट वर्णित है कि अनेकों योनियों में भटकने के बाद ही मानव तन की प्राप्ति होती है। यह मानव तन भक्ति द्वारा ईश्वर को प्राप्त करने का एक स्वर्णिम अवसर है। परंतु भक्ति पथ का प्रारंभ समय के पूर्ण सतगुरु से ब्रह्मज्ञान की शाश्वत विधि प्राप्त करने के बाद ही होता है। इसके अतिरिक्त अन्य कोई मार्ग नहीं। जब भगवान श्री राम व श्री कृष्ण रूप में धरा पर अवतरित हुए तो उन्होंने भी इसी मार्ग को अपनाते हुए समय के पूर्ण सतगुरु की शरण प्राप्त की। अतः केवल पूर्ण सतगुरु ही एक भक्त को भक्ति पथ के सच्चे मार्ग पर अग्रसर करने में सक्षम होते हैं। परंतु आज असंख्य गुरुओं के होते हुए भी लोगों की श्रद्धा ठगे जाने के समाचार सुनने को मिलते रहते हैं। क्या आपने विचार किया कि ऐसा क्यों हो रहा है? क्योंकि हम स्वयं को गुरु/संत बतलाने वाले लोगों के चमत्कार, भविष्यवाणी, वाक्पटुता, रूप-रंग, भगवा चोला इत्यादि बाह्य चिन्हों को देखकर प्रभावित हो जाते हैं। परंतु हमारे वेद-ग्रंथ पूर्ण गुरु की यह परिभाषा नहीं देते। उनके अनुसार पूर्ण सतगुरु वह हैं जिसने स्वयं भी ईश्वर का दर्शन किया है और जो दूसरों को भी ब्रह्मज्ञान द्वारा अंतर्घट में ही ईश्वर दर्शन करवाने का सामर्थ्य रखते हैं। ब्रह्मज्ञान की शाश्वत विधि में दीक्षित होने पर एक व्यक्ति वास्तविक रूप से अपने अंतर्घट में ईश्वर के प्रकाश रूप का दर्शन करने में सक्षम हो जाता है। तत्स्वरुप उसका मानसिक स्तर पर पूर्ण रूपांतरण होता है।
श्री आशुतोष महाराज जी विश्व-मंच पर एक ऐसे पूर्ण सतगुरु हैं जो आत्म-साक्षात्कार के शाश्वत विज्ञान ‘ब्रह्मज्ञान’ में पारंगत हैं और क्षत-विक्षत मानवता को शांतिपूर्ण ‘वैश्विक परिवार’ में परिवर्तित करने हेतु इस ज्ञान को जन-जन के लिए सुलभ करवा रहे हैं। अतः डीजेजेएस के द्वार भक्ति-पथ के जिज्ञासुओं के लिए सदैव खुले हैं और खुले रहेंगे।
कार्यक्रम में उपस्थित श्रोतागण भक्ति-रस में विभोर दिखे| उन्होंने वर्तमान समाज में प्रचलित भक्ति-पथ से जुड़ी मिथ्या मान्यताओं का खंडन करने व जन-जन को अध्यात्म के वास्तविक विज्ञान से परिचित करवाने के लिए डीजेजेएस का आभार प्रकट किया।