वैदिक संस्कृत के प्रसार एवं वेद मंत्रोंच्चारण की मौखिक परम्परा को कायम रखने हेतु दिव्य ज्योति वेद मंदिर की स्थापना की गई । वैदिक संस्कृत की प्राण है संस्कृत भाषा, यह प्राण वायु गतिशील रहे इसलिए गुरुदेव सर्व श्री आशुतोष महाराज जी के पावन मार्गदर्शन में विशिष्ट वेद – जिज्ञासुओं , शिक्षकों व सामान्य जनों के लिए भी समय – समय पर विविध गतिविधियों द्वारा संस्कृत भाषा के प्रचार प्रसार हेतु कार्य किये जा रहे हैं|
इस वर्तमान वैश्विक महामारी COVID – 19 के दौड़ में भी दिव्य ज्योति वेद मंदिर द्वारा शुक्लयजुर्वेदीय रुद्राष्टाध्यायी के शिक्षण हेतु निर्धारित शिक्षकों के लिए द्वितीय चरण में पूरे भारतवर्ष में दस दिवसीय ‘Online प्रशिक्षण’ कार्यक्रम को आयोजित किया गया । यह प्रशिक्षण सत्र जुलाई माह के 10 तारीख से 20 तारीख तक चला । इस सत्र में ३० शिक्षकों को रुद्री पाठ के मंत्रों को पढ़ाने के उत्तम सूत्र सिखाए गए । इन प्रशिक्षण कक्षाओं में शिक्षकों को संस्कृत व्याकरण के मूलभूत नियमों , श्लोक – निर्माण की प्रक्रिया तथा वैदिक ध्वन्यात्मक पद्धति द्वारा सस्वर वाचन की शैली को भी सिखाया गया । इन प्रभावशाली वैदिक मंत्रों के प्रपठन व उच्चारण ने वेदपाठियों व उनके वातावरण को दिव्य व सकारात्मक तरंगों से तरंगित कर उठा जिसकी आज के समय में इस वैश्विक महामारी से जूझ रहे मानव व प्रकृति के लिए नितांत आवश्यकता है । इन मंत्रोंच्चारण के अति विलक्षण प्रभाव द्वारा ही प्रकृति में व्याप्त नकरात्मकता का समूल नाश किया जा सकता है । इसी उद्येश्य को ध्यान में रखकर दिव्य ज्योति वेद मंदिर द्वारा सामान्य जन में वैदिक संस्कृति के प्रसार , वैदिक विद्या , शास्त्रों में निहित रहस्यों के पुर्नोद् घाटन, संस्कृत शोध ,वेद पाठ तथा प्राचीन ज्ञान विज्ञान के पुन: प्रवर्तन हेतु बृहत् स्तर पर शिक्षकों को प्रशिक्षित किया जा रहा है। इन प्रशिक्षण सत्रों में शिक्षकों ने उत्साहपूर्ण सहभागिता दिखायी ।