27 जुलाई 2018 को दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान ने गुरु पूर्णिमा के शुभ अवसर पर नूरमहल में एक विशाल दिव्य सत्संग कार्यक्रम आयोजित किया। देश भर के कई भक्त शिष्य इसे एक साथ मनाने के लिए यहाँ एकत्र हुए।
एक उद्धरण है जिसे हम सभी ने बहुत बार सुना है:
गुरु गोबिंद दौउ खड़े काके लागू पाए।
बलिहारी गुरु आपने जिन गोविंद दीयो मिलाए।।
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, शिष्य जीवन में प्रथम स्थान केवल गुरु के लिए ही आरक्षित है। जिसने अपने सतगुरु को दूसरा स्थान दिया है, उसने वास्तव में जीवन में उन्हें कोई स्थान दिया ही नहीं है। जीवन में एक आध्यात्मिक सतगुरु की भूमिका को तब तक समझा नहीं जा सकता, जब तक हमारे जीवन में उनका आगमन न हो। वे हमें जीवन की कला सिखाते हैं| वे ही हमें सकारात्मकता की ओर निर्देशित करते हैं, वे ही हैं जो हमारे अस्तित्व को अर्थ प्रदान कर हमें ईश्वर से जोड़ते हैं और सबसे महत्वपूर्ण कि वह हमें तब तक पकड़े रखते हैं जब तक कि हम अपने जीवन के अंतिम गंतव्य तक नहीं पहुंच जाते।
इस कार्यक्रम में हजारों शिष्यों की उल्लेखनीय उपस्थिति रही। पूज्य गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी के चरण कमलों में प्रार्थना से कार्यक्रम आरंभ हुआ। कई शिष्यों ने अपना अमूल्य अनुभव साझा किया और गुरुदेव के सामने भक्ति पूर्ण हृदय को प्रस्तुत किया। इस अवसर पर शास्त्रीय संगीतकारों और वादकों ने दिव्य भजनों और भक्ति संगीत को प्रस्तुत करते हुए कार्यक्रम में और अधिक दिव्यता और भक्ति को जोड़ा। भक्तों के मन मंत्र-मुग्ध हो भय, नकारात्मकता, संकट, निराशा, विफलता, भ्रम, निराशा आदि से मुक्त हुए।
कार्यक्रम के अंत में दिव्य विचारों में बताया गया कि “भगवान और आध्यात्मिक सतगुरु को साथ लेकर चलना चाहिए। भगवान हमें आध्यात्मिक गुरु को खोजने में मदद करते हैं और सतगुरु भगवान को समझने में मदद करते हैं। दोनों बराबर हैं। संतों ने उल्लेख भी किया है, “गुरु परमेसर एको जान||”
जीवन में आध्यात्मिक गुरु की प्राप्ति कर और उनके महत्व को समझते हुए कार्यकम के दौरान भक्तों की आंखों में आँसू भी देखे गए। सतगुरु श्री आशुतोष महाराज जी के पावन स्वरुप के सामने भक्तों ने उनके प्रति अपनी कृतज्ञता भी व्यक्त की।
एकता सूत्र में बांधती दिव्य आरती और सामूहिक प्रसाद वितरण द्वारा कार्यक्रम को समाप्ति की ओर ले जाया गया।