देवी दुर्गा, दिव्य शक्तियों व सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक है जो बुराई, दुष्टता और नकारात्मक शक्तियों को समाप्त करती हैं। दैवीय शक्ति, भक्तों को बुरी शक्तियों से बचाती हैं और उनकी रक्षा करती हैं। संसार से पाप को समाप्त करने हेतु माँ दुर्गा, माँ लक्ष्मी और माँ सरस्वती समय-समय पर अपनी शक्तियों को संगठित करती हैं व समाज में धर्म की संस्थापना करती हैं। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान (डीजेजेएस) द्वारा 14 जनवरी, 2020 को पंजाब के रैया, जिला अमृतसर, पंजाब में माँ भगवती जागरण का आयोजन किया गया।
जिस समय माँ ने दुर्गम दैत्य का अंत किया, तब भक्तों में देवी को माँ दुर्गा कह कर सम्बोधित किया। माँ की यह लीला देवी माँ की निर्भयता का प्रतीक है। मानव आध्यात्मिक स्तर पर जितना मजबूत होता है, वह बाहर की विपरीत परिस्थितियों में उतना ही निडर रहता है। आध्यात्मिक दृढ़ता ही जीवन में सम्पूर्ण सफलता को सुनिश्चित करने का मार्ग है। देवी दुर्गा द्वारा बाघ की सवारी भी उनकी निडरता को दर्शाती है।
संस्थान प्रमुख सर्व श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी भावार्चना भारती जी ने बताया कि दुर्गा माँ के आठ हाथ प्रतीक है कि जब मानव की बुद्धि स्थिर होती है तो वह अनेक कार्यों को पूर्ण करने में सफल होता है। वर्तमान समय में मल्टीटास्किंग द्वारा न केवल समय बचाता है, बल्कि यह हमें मानसिक रूप से सक्रिय और चुस्त रखता है, परन्तु इसके लिए बुद्धि का स्थिर होना अनिवार्य है। उन्होंने आगे बताया कि देवी दुर्गा की किसी भी मूर्ति की विशेषता जो हमारा ध्यान आकर्षित करती है, वह है उनकी सुंदर, शांत और निर्मल दृष्टि है। उनके विशाल नेत्र, हमें जीवन में महान लक्ष्य का चयन करने हेतु संकेत देते है।
साध्वी जी ने बताया कि जिस समय सभी शक्तिशाली देवता, दानव महिषासुर को रोकने में असफल रहे, तब दैवीय शक्ति ने देवी दुर्गा के रूप में महिषासुर का अंत किया। वर्तमान में सर्व श्री आशुतोष महाराज जी पूर्ण सतगुरु हैं जो भक्तों को ब्रह्मज्ञान द्वारा आत्म-साक्षात्कार का एक शाश्वत विज्ञान प्रदान कर रहे हैं। ब्रह्मज्ञान आधारित ध्यान प्रक्रिया मानव में दैवीय गुणों को जागृत करते हुए, सशक्त मानव का निर्माण करती है।