समाज में भौतिकवादी सफलता की दौड़ ने हमें आत्म-केंद्रित, संकीर्ण सोच व इच्छाओं से प्रेरित पशुवत प्राणी बना दिया है। आज अस्थायी भौतिकवादी अभिलाषा की लालसा चिरस्थायी आत्मिक शांति से अधिक हो गई है। केवल एक सच्चे आध्यात्मिक गुरु ही व्यक्ति को ईश्वरीय ज्ञान, ब्रह्मज्ञान द्वारा श्रेष्ठ बनाकर अमानवीय व्यवहार से मुक्त कर सकते हैं। ब्रह्मज्ञान की ध्यान-साधना मन को श्रेष्ठता की ओर अग्रसर करते हुए, हमें आंतरिक अराजकता से भी मुक्त करती है। आध्यात्मिकता एक जीवन-शैली है जिसकी सिद्धि हेतु सेवा और साधना महत्वपूर्ण कुंजी हैं।
शिष्य के जीवन में सेवा और साधना के महत्व और आवश्यकता को समझाने हेतु, सर्व श्री आशुतोष महाराज जी के मार्गदर्शन में दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान ने 15 सितंबर को उत्तराखंड के पिथौरागढ़ में एक दिव्य मासिक आध्यात्मिक सम्मेलन का आयोजन किया। शहर भर के भक्त दुनिया की अराजकता और नकारात्मकताओं से स्वयं को बचाए रखने के लिए एकत्रित हुए। गुरु के पावन चरणों में प्रार्थना के साथ आध्यात्मिक कार्यक्रम की शुरुआत हुई, इसके बाद भक्तिमय भजनों ने हर एक श्रोता के मन को मंत्रमुग्ध कर दिया।
संस्थान प्रचारकों ने ध्यान (साधना) के संदर्भ में अपने विचारों को रखते हुए समझाया कि ध्यान प्रक्रिया द्वारा ही मन की दुर्बलताओं पर नियंत्रण किया जा सकता है। एक भक्त को निस्वार्थ, भाव से अपने गुरु के समक्ष आत्मसमर्पण करना चाहिए और भक्ति मार्ग पर आने वाली किसी भी चुनौती को स्वीकार करने के लिए तैयार रहना चाहिए। सेवा के किसी भी संभावित अवसर को एक सेवक द्वारा खुशी से स्वीकार करना चाहिए व गुरु के महान लक्ष्य में अपना भरपूर सहयोग देना चाहिए। ध्यान और सेवा मन और आत्मा के लिए ऊर्जा का एकमात्र स्रोत हैं, जो हमारे जीवन को सच्ची शांति से भर सकते हैं। समापन में दिव्य भोज (प्रसादम) द्वारा इस आध्यात्मिक सभा का अंत किया गय। यह अवसर शिष्यों के जीवन में दिव्य उपहार के समान था जिससे उनमें नए उत्साह का संचार किया।