साल में एक अवधि ऐसी होती है जिसके अंतर्गत नारीत्व एवं नारी होने के गर्व को उत्साहपूर्वक मनाया जाता है व् नारी द्वारा स्वयं को बिना किसी सामाजिक आपत्ति के परिपोषित किया जाता है। और इस शुभ अवसर को “तीज” कहा जाता हैं जिसमें नारीयां उमंग सहित उत्सव मनाती हैं । परन्तु आज यह पर्व मात्र स्वयं को सुंदर वस्त्रों व् हाथों को हिना से सवारनें और सामाजिक मेलजोल तक ही सीमित रह गया है । वहीँ दूसरी ओर संतुलन का मानना है कि तीज पर्व का अर्थ, समाज की रूड़ीवादिता का प्रतिकार करने हेतु, प्रत्येक नारी के भीतर माँ पारवती जैसी तेजस्विता को जागृत करना है। कभी किसी भी परिस्थिति में हार ना मानने के साथ साथ आत्मिक स्तर से सशक्त हो जाना है । अतः नारी के सम्पूर्ण सशक्तिकरण हेतु तीज पर्व सीमाओं से परे सामूहिक संवेदीकरण का विषय है। तीज के पीछे छिपे इसी महान सन्देश को जन जन तक पहुचने हेतु, संतुलन प्रतिवर्ष पूरे जोश के साथ इस पर्व को मनाता है । और उसी श्रृंखला में इस वर्ष भी संतुलन की निष्ठावान टीमों द्वारा भारत के विभिन्न कोनों में 13 अगस्त 2018 (हरियाली तीज) से 12 सितम्बर, 2018 (हरितालिका तीज) तक “तीज 2018, नारी सम्मलेन” थीम के तहत विलक्षण कार्यशालाओं द्वारा यह पर्व मनाया जा रहा है।
यह कार्यशालाएं विभिन्न गतिविधियों के विविध संग्रह से रूपांकित की गयी हैं जैसे पैनल विचार विमर्श , फोरम थिएटर, प्रज्ञात्मक व्याख्यान, पारंपरिक मनोरंजक झूला आयोजन एवं आकर्षक प्रदर्शनी । इन सभी गतिविधियों द्वारा समाज में तेज़ी से फैलते लिंग सम्बंधित मुद्दों पर चर्चा व् उनका विश्लेषण किया जा रहा है । प्रशंसित गणमान्य नारियों व् समाज के लिए मिसाल बनी महिलाओं को नारियों के प्रति हिंसा के परिणामों पर प्रकाश डालने हेतु पेनलिस्ट के रूप में कार्यक्रमों में आमंत्रित किया जा रहा है । फोरम थिएटर के तहत नारी पर बढ़ते अत्याचार, उसके जीवन में सदमार्ग का अभाव एवं समाज में फैली लिंग असमानता को बहुत प्रभावशाली ढंग से मानव की सोयी चेतना के कारण के रूप में दर्शाया जा रहा है । आज नारी अत्याचारों को सह रही है और सशक्तिकरण के सही मतलब से अनजान है जैसे विषयों को फोरम थिएटर के माध्यम से संतुलन कार्यकर्ताओं द्वारा प्रदर्शित किया जाता है । नाटिका के दौरान उसे एक मुद्दे पर लाकर बीच में ही विराम दे दिया जाता है और दर्शकों को आमंत्रित किया जाता है कि नाटिका को आगे बढ़ाते हुए उस मुद्दे पर वे अपने विचारों एवं प्रतिक्रियाओं को रखें, जिससे कार्यक्रम संवादात्मक एवं आत्मनिरीक्षित रहता है ।गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी की साध्वी शिष्याओं द्वारा नारी शक्ति एवं उसके अधिकारों पर विशेष चिंतन सत्र इस कार्यशाला का महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसके तहत साध्वी जी द्वारा तीज पर्व का सार बताते हुए नारी एकता, एक साथ आगे बढ़ने के भाव और एक दूसरे के संघर्षों के प्रति सम्मान पर प्रकाश डाला जाता है ।माँ पारवती की दृण इच्छा शक्ति और निष्ठां का मुख्य रूप से वर्णन करते हुए एक सशक्त नारी के सामर्थ्य का परिचय दिया जाता है ।
इसके उपरान्त तीज पर्व की मनोरंजक परम्परा -झूले का आयोजन किया जाता है , जो “कन्या बचाओ” की शपत का सांकेतिक रूप है। । साथ ही एक सुंदर प्रदर्शनी भी लगायी जाती है जिसमें उपर्युक्त चर्चित विषयों एवं संतुलन प्रोजेक्ट से सम्बंधित सभी सवालों पर विचार विमर्श किया जाता है और प्रतिभागियों की प्रतिक्रियाओं को जानकर उन्हें संतुलन पम्फ्लैट्स वितरित किये जाते हैं । उपस्थित लोग इस शिक्षाप्रद कार्यशाला के उपरान्त झूला झूलते हैं और शपत बोर्ड पर लिंग सम्बंधित हिंसा के विरुद्ध अपनी अपनी शपत को लिखते हैं । प्रतिभागियों द्वारा अन्य सम्बंधित गतिविधियां जैसे नदी में दिया प्रज्वलित करना, सामूहिक गीत, आदि भी किया जाता है । कार्यशालाओं व् लाभार्थियों की संख्या प्रत्येक बीतते दिवस के साथ असंख्यता को प्राप्त हो रही हैं । वर्तमान में संतुलन, नारी को स्व मूल्यों का बोध कराने के उद्देश्य को प्राप्त करने हेतु, हर छोटे नगर व् शहर में कार्यरत है।