भगवान श्री राम सत्यनिष्ठा,श्रेष्ठता और सद्गुणों की प्रतिमूर्त हैं। त्रेता युग में प्रभु श्री राम द्वारा उजागर नैतिक संहिता और उपदेश हमें कर्म और विचार से सत्यवादी, करुण और ईमानदार बनने के लिए प्रभावित करते हैं। रामायण को समाज के नैतिक परिवर्तन का आधार माना जाता है। भगवान श्री राम जी के सिद्धांतों को पुनः ज्ञात कराने हेतु दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा बांसवाड़ा, राजस्थान में 24 से 30 दिसम्बर 2019 तक सात दिवसीय श्री राम कथा का भव्य आयोजन किया गया। सर्व श्री आशुतोष महाराज जी (संस्थापक एवं संचालक) की शिष्या कथा व्यास साध्वी श्रेया भारती जी ने वाग्मिता से भगवान श्री राम द्वारा मनुष्य जनम और आध्यात्मिक जागृति की प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला। दिव्य ऊर्जा से परिपूर्ण वातावरण में श्रद्धालुओं ने रामायण में उद्घोषित जीवन के अमूल्य उपदेशों को ग्रहण किया। मधुर भावपूर्ण भजनों और मंत्रोंउचारण ने श्रद्धालुओं को एक सकारात्मक जीवंतता के साथ श्री राम कथा में भाग लेने के लिए प्रेरित किया।
साध्वी जी ने समझाया कि प्रत्येक व्यक्ति परम आनंद को प्राप्त करना चाहता है परंतु यह नहीं जानता कि किस मार्ग का अनुसरण किया जाए। भगवान श्री राम ने सम्पूर्ण मानवता का मार्गदर्शन करते हुए जीवन के वास्तविक उद्देश्य “शाश्वत ज्ञान” को प्राप्त करने की प्रेरणा दी है। राम-राज्य को पुनः स्थापित करने एवं विश्व में शांति हेतु आत्मा और परमात्मा में एक अद्वितीय और स्थायी संबंध स्थापित करना अति आवश्यक है। यह संबंध बाह्य माध्यम से नहीं अपितु ब्रह्मज्ञान प्राप्त कर अंतःकरण के ध्यान द्वारा संभव है। साध्वी जी ने कहा कि प्रायः माना जाता है कि भगवान के नाम-जाप से मोक्ष, शांति और समृद्धि शीघ्रतापूर्वक प्राप्त की जा सकती है। परंतु इसके लिए सर्व प्रथम भगवान के वास्तविक नाम को जानना जरूरी है। ईश्वर का वह नाम जो शाश्वत है और बाह्य साधनों द्वारा जाना नहीं जा सकता।
साध्वी जी ने अध्यात्म के गूढ़ रहस्यों को उजागर करते हुए समझाया कि आत्मज्ञान आत्म-उत्तेजक है और भीतर सकारात्मकता और आध्यात्मिक जागृति को जन्म देता है। आत्मबोध से प्रसारित आध्यात्मिक ऊर्जा व्यक्ति को जीवन में पूर्णता से जीने के लिए निर्देशित करती है। सर्व श्री आशुतोष महाराज जी इस युग के ब्रह्मनिष्ठ तत्त्ववेता पूर्ण गुरु हैं जिन्होंने अनेकों प्रभु-भक्तों को आत्मज्ञान (ब्रह्मज्ञान) की दीक्षा प्रदान की है। अर्थहीन जीवन जीने योग्य नहीं है इसलिए मनुष्य या तो जीवनपर्यंत भ्रमित रहने का विकल्प चुन सकता है या फिर एक आध्यात्मिक गुरु की शरणागत हो आत्मज्ञान प्राप्त कर सकता है। एक आध्यात्मिक जागृत व्यक्ति ही जीवन और जीवन से जुड़ी सभी कठिनाइयों को सहजता से भोग सकता है। आत्मज्ञान सांसारिक तनाव के प्रति हमारी सहनशीलता को सुदृढ़ करता है और आत्म-चिंतन एवं मन-नियंत्रण का सबसे अच्छा साधन है।
श्रद्धालुओं को रामायण में निहित आध्यात्मिक संदेशों से अभिज्ञ करवाने में यह कार्यक्रम सफल रहा। कथा के अंतिम दिवस हवन यज्ञ और जय श्री राम के जयकारों की प्रतिध्वनि ने सम्पूर्ण वातावरण को दिव्यता से परिपूर्ण किया।