श्री आशुतोष महाराज जी के सर्वोच्च मार्गदर्शन में दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा 17 से 23 सितंबर, 2022 तक जोधपुर, राजस्थान में 7 दिवसीय भगवान शिव की कथा का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ 16 सितंबर, 2022 को जोधपुर क्षेत्र में भव्य "कलश यात्रा" निकाल कर किया गया। सिर पर कलश धारण कर हजारों कि संख्या में श्रद्धालुओं ने भाग लिया। भगवान शिव की कृपा पाने के लिए दूर-दूर से बड़ी संख्या में श्रद्धालु कथा अमृत में शामिल हुए। दिव्य आभा और मधुर आध्यात्मिक भजनों से श्रोता मंत्रमुग्ध हो गए। कथा का 20 से 26 सितंबर, 2022 तक डीजेजेएस के यूट्यूब चैनल पर भी वेबकास्ट किया गया।
कथा वाचक, साध्वी गरिमा भारती जी (शिष्या, श्री आशुतोष महाराज जी) ने भगवान शिव के जीवन और लीलाओं से आध्यात्मिक तथ्यों को उजागर किया। भगवान शिव को बुराई का नाश करने वाला और परिवर्तन लाने वाला "रचनात्मक विध्वंसक" माना जाता है क्योंकि नए जीवन के लिए मृत्यु अनिवार्य है। उन्होंने आगे बताया कि भगवान शिव का बाहरी स्वरूप किसी भी अन्य भगवान से अलग है और इसका आध्यात्मिक महत्व है।
शिव के शरीर पर रमी राख याद दिलाती है कि ब्रह्मांड में सब कुछ नाशवान है और व्यक्ति के पास कुछ भी नहीं रहने वाला है। संदेश यह है कि 'आप इस दुनिया में बिना कुछ लाए आए हैं और बिना किसी चीज के ही वापस चले जाएंगे, फिर चिंता कैसी?' महादेव ने सर्प धारण किये हैं जो दर्शाते हैं की शिव ने अध्यात्म की शक्ति से समय पर विजय प्राप्त की है। सर्प की तीन तहें - भूत, वर्तमान और भविष्य का प्रतीक हैं।
महायोगी शिव ने आत्म-साक्षात्कार के शाश्वत विज्ञान को स्वीकारा और स्वयं भी हमेशा ध्यान की स्थिति में ही रहते हैं जो शांति और उच्च चेतना को इंगित करता है। उन्हें अक्सर त्रयंबकम, त्रिनेत्रधारी आदि कहा जाता है। भगवान शिव के माथे पर तीसरा नेत्र आध्यात्मिक जागरण के माध्यम से अंदर की ओर जाने का प्रतीक है। भगवान शिव द्वारा प्रस्तावित 'दिव्य नेत्र' को प्राप्त करने के बाद ही व्यक्ति शारीरिक स्तर से ऊपर उठ सकता है। इसलिए शास्त्रों में भी कहा गया है कि आंतरिक जागृति के बाद ही व्यक्ति विवेक प्राप्त कर सकता है और वास्तविक रूप से आध्यात्मिक हो सकता है। साध्वी जी ने जोर देकर कहा कि हमारे शास्त्रों की घोषणा है कि प्रत्येक मनुष्य के पास यह 'तीसरा नेत्र' होता है जिसे केवल उस समय के सच्चे आध्यात्मिक गुरु द्वारा सक्रिय किया जा सकता है।
ब्रह्मज्ञान - संतुलित सामाजिक-आध्यात्मिक जीवन के लिए ईश्वरीय ज्ञान की आवश्यकता है जो उस समय के पूर्ण आध्यात्मिक गुरु के आशीर्वाद से ही प्राप्त किया जा सकता है। इस संबंध में साध्वी जी ने कहा कि संस्थान के दरवाजे हर जिज्ञासु के लिए हमेशा खुले हैं और रहेंगे। उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि आध्यात्मिक ज्ञान पर आधारित ध्यान ही आनंद और संतुष्टि का एकमात्र स्रोत है।
कथा संस्थान के सामाजिक प्रकल्प "कामधेनु - भारतीय गौ नस्ल सुधार और संरक्षण कार्यक्रम" को समर्पित थी| इसका मुख्य उद्देश्य किसी भी आदर्श समाज में भारतीय गाय के मूल्य को फिर से स्थापित करने पर केंद्रित था। कई गणमान्य व्यक्तियों ने भी कथा में अपनी उपस्थिति दर्ज की, श्री राघवेंद्र कछवाल (जिला एवं सत्र न्यायाधीश, जोधपुर), श्री अजय कुमार शर्मा (कुलपति, एमबीएम विश्वविद्यालय), श्रीमती वनिता सेठ (महापौर दक्षिण, जोधपुर), श्रीमती रूमा देवी (अंतर्राष्ट्रीय प्रेरक वक्ता और सामाजिक कार्यकर्ता), श्री निर्मल गहलोत (निदेशक उत्कर्ष क्लासेस), श्री विक्रम सिंह यादव (निदेशक, डीपीएस स्कूल), श्री सुमेर सिंह राजपुरोहित (उपाध्यक्ष, गौ सेवा आयोग राजस्थान), श्री एम.एस. चरण (मुख्य अभियंता डिस्कॉम, जोधपुर), श्री ओम सिंह राजपुरोहित (जिला शिक्षा अधिकारी, जोधपुर), श्री पी.पी. रोहिल्ला (प्रधान वैज्ञानिक काजरी, जोधपुर)। प्रमुख प्रिंट मीडिया जैसे दैनिक भास्कर, दैनिक नवज्योति, राजस्थान स्टार, सेवा भारती, राजस्थान पत्रिका आदि ने भी कार्यक्रम को प्रमुख तौर पर कवर किया और पूरे देश में धर्म के प्रसार में बहुत योगदान दिया। कार्यक्रम ने भक्तों को आत्मिक स्तर पर भगवान शिव से सफलतापूर्वक जोड़ा।