तस्मादसक्तः सततं कार्यं कर्म समाचर।
असक्तो ह्याचरन्कर्म परमाप्नोति पूरुषः॥
इसलिए तुम निरन्तर आसक्ति से रहित होकर सदा कर्तव्य-कर्म को भलीभाँति करो क्योंकि आसक्ति से रहित होकर कर्म करता हुआ मनुष्य परमात्मा को प्राप्त हो जाता है॥ भगवद्गीता 3-19
जगद्गुरु श्रीकृष्ण को नमन है- जो सर्वव्यापक, सर्वज्ञ और पूर्ण आनंदस्वरूप है; वे मानव जाति के लाभ हेतु, दुष्टता को नष्ट करने और धार्मिकता स्थापित करने के लिए मानव रूप में अवतरित हुए।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर भगवान कृष्ण के जन्मोत्सव को उत्साह से मनाया जाता हैं। भारतीय कैलेंडर के अनुसार यह उत्सव श्रवण माह शुक्ल पक्ष की अष्टमी को होता है। 2 सितंबर, 2018 को दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान ने नई दिल्ली के दिव्य धाम आश्रम में श्री कृष्ण जन्माष्टमी महोत्सव को पुरे उत्साह से मनाया। इस आयोजन के द्वारा संस्थान ने समाज को श्री कृष्ण के बहुआयामी व्यक्तित्व से परिचित करवाते हुए उनके संस्कृति उत्थान व धर्म संस्थापना के प्रयासों को प्रभावशाली ढ़ंग से प्रस्तुत किया।
प्रचारकों द्वारा श्री कृष्ण की लीलाओं पर आधारित प्रवचनों की श्रृंखला ने शिष्यों को आध्यात्मिक लक्ष्य को सफलतापूर्वक प्राप्त करने के लिए भक्ति पथ पर तीव्र वेग से बढ़ने हेतु प्रोत्साहित किया। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान के संस्थापक व संचालक सर्व श्री आशुतोष महाराज जी द्वारा ब्रह्मज्ञान से दीक्षित कॉलेज व स्कूलों के छात्रों ने श्रीकृष्ण के जीवन और शिक्षाओं के आधार पर नृत्य बैले प्रदर्शन में भाग लिया।
श्री आशुतोष महाराज जी के प्रचारक शिष्यों ने गहन व्याख्याओं के माध्यम से भगवान कृष्ण की दिव्य लीलाओं में निहित गूढ़ आध्यात्मिक अर्थों को प्रकट किया। श्री कृष्ण ने हमें सिखाया कि हमें समाज सुधार की दिशा में पहल करनी चाहिए। उन्होंने रुढ़िवादी व अर्थहीन हो चुकी रीतियों व मान्यताओं को समाप्त कर भक्ति के सच्चे अर्थ को स्पष्ट किया। पूतना, अघासुर, बकासुर और धेनुकासुर जैसे राक्षसों का अंत समझाता है कि हमें लालच, वासना, क्रोध और ईर्ष्या आदि आंतरिक राक्षसों पर विजय प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए।
श्री कृष्ण लीलाओं द्वारा प्राप्त व्यावहारिक उदाहरण दैनिक जीवन में आध्यात्मिकता के महत्व को प्रदर्शित करते हैं। लोग व्यक्तिगत और सामाजिक समस्याओं को दूर करने के लिए जगद्गुरु श्री कृष्ण की शिक्षाओं से समाधान प्राप्त करते हैं। श्री कृष्ण द्वारा महाभारत के धर्म युद्ध में उनका वह योगदान अविस्मरणीय है जब उन्होंने अर्जुन को "ब्रह्मज्ञान" प्रदान कर कर्मयोग की ओर प्रेरित किया। एक पूर्ण सतगुरु ब्रह्मज्ञान द्वारा अपने शिष्य के भीतर दैवीय प्रकाश को जागृत करते है। आज के समय में, मानव जाति को एक दिव्य आध्यात्मिक स्रोत हेतु 'ब्रह्मज्ञान' की आवश्यकता है। यह एकमात्र ऐसा साधन है जो हमें परम सत्ता से जोड़ आत्म साक्षात्कार करवाने में सक्षम है।
उपस्थित लोग कार्यक्रम द्वारा गहन आध्यात्मिक अर्थों को जान मंत्रमुग्ध व प्रभावित हुए। ब्रह्मज्ञानी साधकों ने कार्यक्रम के दौरान बाहरिय व आंतरिक उत्थान हेतु स्वस्थ शरीर, मन, आत्मा और समाज के योगदान करने हेतु प्रतिज्ञा ली।