श्री राम धर्म, निर्विकार, सत्य और पौरुष के साकार स्वरूप है, वे सभी राजाओं के महाराज व सम्पूर्ण जगत के स्वामी है।
श्री राम मानवता के आदर्श व सर्वोच्च उदाहरण हैं, वे धर्म के मूर्त रूप हैं तथा उनका आचरण सदैव अनुकरणीय है।
श्री राम के जीवन चरित्र व लीलाओं के आध्यात्मिक पहलुओं को पुनः उजागर करने हेतु दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान ने रोहिणी, दिल्ली में 17 नवम्बर से 23 नवम्बर 2018 तक श्री राम कथा का आयोजन किया। अनेक गणमान्य अतिथि आदि कार्यक्रम में उपस्थित रहें। कार्यक्रम का प्रसारण 19 नवम्बर से 25 नवम्बर 2018 तक आस्था चैनल पर किया गया। इस भव्य व विशाल आयोजन को अनेक समाचार पत्रों दैनिक जागरण, वीर अर्जुन, भारत दर्शन, दैनिक जगत क्रांति, Human India, दैनिक खबरें आदि द्वारा भी प्रकाशित किया गया। कथा में संत समाज द्वारा भजनों के गायन ने दिव्य वातावरण निर्मित किया।
कथाव्यास साध्वी दीपिका भारती जी ने सरस ढ़ंग से कथा का वाचन करते हुए श्री राम की लीलाओं के गूढ़ आध्यात्मिक रहस्यों को प्रगट किया। उन्होंने ने बताया कि राम राज्य में आदिदैविक, आदिभौतिक व आध्यात्मिक दुःख नहीं थे, धन-धान्य का आभाव नहीं था, कला का सम्मान था और लोग प्रसन्नतापूर्वक जीवन में श्री राम के आदर्शों का अनुसरण करते थे। राम राज्य में न्याय व्यवस्था इतनी सुदृढ़ थी कि लोगों को सरलता से न्याय प्राप्त होता था। श्री राम ने अयोध्या निवासियों से इतना प्रगाढ़ सम्बन्ध स्थापित किया कि लोग उनसे अथाह प्रेम करते और उन्हें अपने हृदय में स्थान देते।
आगे कथा का विस्तार करते हुए कथाव्यास जी ने समझाया कि श्री राम- मानव के भीतर निहित प्रकाश, सीता- मन में व्याप्त अनंत इच्छाओं, लक्ष्मण- वैराग्य, हनुमान- भक्ति और रावण- मानव के भीतर स्थित अहंकार का प्रतीक है। जब सीता रूपी मन निरंतर इच्छाओं व कामनाओं के पीछे दौड़ता है तो वे अपने वास्तविक स्वरूप श्री राम से विलग हो जाता है। अहंकार बुद्धि का हरण कर लेता है। वैराग्य और भक्ति की सहायता से अहंकार को पराजित कर आत्म स्वरूप की प्राप्ति सम्भव होती है। रामायण प्रतिदिन हर मानव के भीतर घटित होती घटना है। हम निरंतर इच्छाओं की पूर्ति करने हेतु प्रयासरत रहते हुए अपने आत्म स्वरूप को विस्मृत कर अहंकार के विकट बंधन में बंधते जाते है। मानव ब्रह्मज्ञान द्वारा आत्मिक स्तर पर जागरूक हो, दिव्य प्रकाश व विशुद्ध प्रेम के स्रोत्र से जुड़ सकता है।
संतों व शास्त्रों ने विस्तार से इस तथ्य को प्रगट किया है कि अपनी आत्मा के साक्षात्कार द्वारा ही मानव आध्यात्मिकता को जीवन में प्राप्त कर सकता है। परन्तु यह तभी सम्भव है जब पूर्ण गुरु की कृपा द्वारा ब्रह्मज्ञान को प्राप्त करें। पूर्ण सतगुरु द्वारा प्रदत्त मार्ग पर निरंतर चलते हुए मानव के भीतर विवेक शक्ति जागृत होती है जिसके द्वारा वह उचित व अनुचित और सत्य व असत्य का भेद जान पाता है।
श्री राम के दिव्य चरित्रों में निहित आध्यात्मिक पहलुओं को उजागर करते हुए कथा ने अपनी सफलता को चिन्हित किया।