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हर महीने की तरह, इस बार भी नूरमहल आश्रम, पंजाब में आध्यात्मिक कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस प्रकार के आयोजनों का उद्देश्य सर्व श्री आशुतोष महाराज जी के शिष्यों की भक्ति के आधार को मजबूत करना रहा है। कार्यक्रम का शुभारम्भ सुन्दर भक्ति गीतों के गायन से हुआ। इसके उपरांत गुरु भक्ति की सत्यता को वर्णित करता एक दृष्टान्त रखा गया जिसके माध्यम से बताया गया कि गुरु सदैव अपने शिष्य के अंग-संग सहाई होते है, कोई भी बंधन सच्चे गुरु और शिष्य के सम्बन्ध को प्रभावित नहीं कर सकता। श्री गजानन महाराज ने अपने एक शिष्य के कहे बिना ही उसके मन में उठ रहे संदेहों का निवारण कर दिया।

The Bond between Guru and Disciple Strengthened: Monthly Spiritual Congregation at Nurmahal, Punjab

दृष्टान्त का वर्णन करते हुए साध्वी जी ने कहा कि एक बार पुंडलिक नामक ब्राह्मण श्री गजानन महाराज का शिष्य बन गया। श्री गजानन महाराज उन्नीसवीं शताब्दी के पूर्ण आध्यात्मिक संतों में से एक थे। गुरु गजानन महाराज की कृपा से उन्होंने सनातन ज्ञान (ब्रह्मज्ञान) प्राप्त किया था। पुंडलिक ने पुरे उत्साह से प्रतिदिन ध्यान करने का निश्चय किया। उनका अपने गुरु के प्रति और सम्मान दृढ़ था परन्तु एक परिस्थिति ने उनकी भक्ति का परीक्षण किया। एक दिन पड़ोस से एक वृद्ध स्त्री उनके घर आई और उन्हें ध्यान करते देख कहने लगी- “ऐसा कोई भी मार्ग या पद्धति जो बाहरी स्रोत पर निर्भर न हो वह मोक्ष देने में सक्षम नहीं”। उसने सुझाव दिया कि वह एक ऐसे गुरु की शरण स्वीकार करे जो भगवान को देखने के लिए मंत्र उच्चारण देता है। उस वृद्ध स्त्री में अगली सुबह पास के गांव के कथित संत के पास जाने का सुझाव दिया। 

वृद्ध स्त्री के शब्दों को सुन संशय का बीज अंकुरित हो पुंडलिक के मन में भयंकर कोलाहल कर रहा था। इस दुविधा से बचने के लिए उसके ध्यान करना आरम्भ किया। ध्यान करते हुए वह गहरी नींद में चला गया और स्वप्न में अपने गुरुदेव गजानन महाराज का दर्शन पाया। गजानन महाराज उसे समझाते हुए कह रह थे कि “यदि वह दुसरे गुरु की शरण में जाना चाहता है तो जा सकता है परन्तु ईश्वर का वास्तविक रूप प्रकाश हर मानव के भीतर निहित है तथा उसका साक्षात्कार मात्र ब्रहमज्ञान द्वारा ही सम्भव है। इसके अतिरिक्त ईश्वर को जानने का अन्य मार्ग नहीं है। बाहरिय मार्ग अपूर्ण है”। गुरु की कृपा से अब पुंडलिक का संदेह समाप्त हो चुका था। अगली सुबह जब वह वृद्ध स्त्री आई तो पुंडलिक ने विनम्र परन्तु विश्वासपूरित वाणी में कहा कि मेरा गुरु पूर्ण है क्योंकि वह बिना कुछ कहे ही मेरे मन के भावों को जान उनका निवारण करने वाले है। अब उसे किसी अन्य गुरु के पास जाने की न इच्छा है न ही आवश्यकता।

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साध्वी जी ने कहा कि सर्व श्री आशुतोष महाराज जी ने भी अपने शिष्यों से ऐसा ही अटूट व आत्मिक संबन्ध बांधा है। सच्चे शिष्य को भी इस आध्यात्मिक संबंध को दृढ़ बनाने के लिए सदैव ध्यान करना चाहिए। ध्यान किसी भी परिस्थिति में सत्य को देखने की हमारी क्षमता को बढ़ाकर हमारे आध्यात्मिक संदेहों को हल करता है।

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