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भगवान शिव, आदियोगी और अमरनाथ आदि रूपों में पूजनीय है वास्तव में वे सभी के हृदय मे स्थित हैं। वह निर्गुण, निराकर, परब्रह्म, सर्वज्ञ व सर्वव्यापक है। भगवान शिव का निराकार रूप शिवलिंग मानव के भीतर निहित आंतरिक आकाश का प्रतीक हैं।

The Divine Shiv Saga Decrypts the Journey of Spirit to Supreme in Ludhiana, Punjab

भगवान शिव की प्रत्येक लीला मानव को गहन अर्थ समझाती है जिस प्रकार उनका तन पर भस्म लगाना मानवता को तन की सीमितता से परिचित करवाता है तथा आदियोगी शिव का शारीरिक स्तर के बंधन से मुक्ति का संदेश है। भगवान शिव के आलैकिक जीवन चरित्र में निहित निःस्वार्थता और बलिदान आदि रत्नों को साधारण मानव द्वारा आसानी से समझा नहीं जा सकता है। भगवान् शिव के जीवन चरित्र को समझाने व आत्मा को परमात्मा से मिलाने के मार्ग को प्रदान करने हेतु सर्व श्री आशुतोष महाराज जी के मार्गदर्शन में दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान ने 6 अगस्त से 10 अगस्त, 2018 तक लुधियाना में 5 दिवसीय शिव कथा कार्यक्रम का आयोजन किया।

भौतिकता से आध्यात्मिकता की ओर ले जाते हुए कार्यक्रम का आरम्भ भगवान शिव के चरणों में वंदन और वैदिक मंत्र उच्चारण से हुआ। साध्वी विवेका भारती जी ने कथा का वाचन करते हुए भगवान् शिव के जीवन के विभिन्न पहलुओं पर विचार रखे व गुरु गीता द्वारा उनके आध्यात्मिक पक्ष को स्पष्ट किया। साध्वी जी ने बताया कि भगवान् शिव को मृत्यु के देव या सृष्टि के विध्वंसक रूप में जाना जाता है। भगवान् शिव संसार से अधर्म, विकारों, पापों, दुर्गुणों व अत्याचार आदि का विध्वंस कर सृष्टि में संतुलन स्थापित करते हैं। इसी प्रकार पूर्ण सतगुरु भी शिष्य के जीवन में भगवान् शिव की भूमिका को निभाते हुए उसके जीवन में विद्यमान उन सभी दुर्गुणों का नाश करते है जो उसकी आध्यात्मिक प्रगति में बाधा के रूप में कार्य करते हैं। सतगुरु ही शिष्य को सत्य स्रोत से जोड़ मोक्ष प्राप्ति हेतु अग्रसर करते है। गुरु गीता में कहा गया है:

The Divine Shiv Saga Decrypts the Journey of Spirit to Supreme in Ludhiana, Punjab

ब्रह्मानन्दं परमसुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिं

द्वन्द्वातीतं गगनसदृशं तत्त्वमस्यादिलक्ष्यम्।

एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधीसाक्षिभूतं

भावातीतं त्रिगुणरहितं सद्गुरुं तं नमामि॥

 

जो ब्रह्मानंदस्वरूप हैं, परम सुख देनेवाले हैं जो केवल ज्ञानस्वरूप हैं, सुख, दुःख, शीत-उष्ण आदि द्वन्द्वों से रहित हैं, आकाश के समान सूक्ष्म और सर्वव्यापक हैं, तत्वमसि आदि महावाक्यों के लक्ष्यार्थ हैं।

एक हैं, नित्य हैं, मलरहित हैं, अचल हैं, सर्व बुद्धियों के साक्षी हैं, भावना से परे हैं, सत्व, रज और तम तीनों गुणों से रहित हैं ऐसे श्री सदगुरुदेव को मैं नमस्कार करता हूँ।

साध्वी जी ने उपस्थित श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक यात्रा आरम्भ करने हेतु पूर्ण सतगुरु की शरण स्वीकार करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने बताया कि आज के समय में परम पूजनीय सर्व श्री आशुतोष महाराज जी मानव के भीतर ईश्वरीय दर्शन करवाने में सक्षम हैं। जब साधक आंतरिक रूप से ईश्वर से जुड़ जाता है, तो उसका जीवन सदैव आनंद को प्राप्त करता है। कथा के अंतर्गत श्रद्धालुओं ने संसार की नकरात्मक को त्याग कर ईश्वरीय सकारात्मकता व दिव्यता का अनुभव किया।

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