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डबवाली मलको की, पंजाब में मासिक आध्यात्मिक कार्यक्रम अनेक रूपों से विशेष रहा। 7 अक्टूबर, 2018 को आयोजित कार्यक्रम में सैकड़ों भक्त उपस्थित रहे, जो आध्यात्मिकता और ब्रह्मज्ञान आदि विषयों पर अपनी जिज्ञासा को शांत करने हेतु उत्सुक थे। आध्यात्मिक प्रवचन के दौरान ध्यान की प्रक्रिया समझाई गई थी। हमारे ग्रंथों में यह उल्लेख किया गया है कि व्यापक रूप से मानव जागरूकता के दो स्तर हैं- जागना और सोना। अज्ञानी लोग मानते हैं कि जब वे अपनी शारीरिक इंद्रियों के प्रति अवगत होते हैं तो वह जगाना है, परन्तु  जब वे अपनी इंद्रियों के प्रति अनभिज्ञ होते हैं तो वे सो जाते हैं। हालांकि, वास्तविक ज्ञान से परिचित साधक को ज्ञान होता है कि मात्र इन्द्रियों के स्तर तक सीमित रह मानव पूर्णरूपेण  जागृत नहीं होता। वास्तविक सजकता मात्र गहन ध्यान की स्थिति में होती है, जब दिव्यता के साक्षात्कार द्वारा स्वयं की चेतना से सामंजस्य स्थापित होता है।

Unison with the Self Enunciated in Monthly Spiritual Congregation, DMK, Punjab

प्रचारक शिष्या साध्वी जी ने इस तथ्य का विस्तार करते हुए कहा कि महान आत्माएं अपने जीवन के प्रत्येक क्षण इस स्थिति में रह सकती हैं लेकिन साधारण व्यक्ति भी ध्यान में इस स्तर का अनुभव कर सकता है। सद्गुरु सर्व श्री आशुतोष महाराज जी इस दिव्यता के स्तर को किसी भी व्यक्ति में आरम्भ करने में सक्षम हैं। दिव्यता व आत्म साक्षात्कार द्वारा मानव कठिन परिस्थितियों को सहजता से पार कर जाता है। ध्यान की इस वास्तविक पद्धति में एक व्यक्ति के भीतर शांति लाने की क्षमता है। यह वह तकनीक है जिसके द्वारा इंसानों को यह अहसास हो जाता है कि एक ही दिव्य शक्ति सभी प्राणियों के भीतर है, इसलिए सभी प्राणियों के प्रति समदृष्टि रखनी चाहिए।

प्रवचनों के दौरान साध्वी जी ने एक प्रेरणादायक घटना सुनाई, जिसमें परम पूजनीय श्री आशुतोष महाराज जी ने एक प्रश्न का समाधान देते हुए समझाया था। जब एक सर्जन श्री महाराज जी से मिलने आए, तो उन्होंने एक सवाल उठाया- 'महाराज जी, मैं पेशे से एक सर्जन हूं, मैंने बहुत सारी सर्जरी की है और मानव शरीर के सभी हिस्सों को देखा है। आपके व्याख्यान के अनुसार भगवान शरीर के भीतर रहता है, लेकिन मैंने शरीर में भगवान को कभी नहीं देखा’। महाराज जी ने एक उपस्थिति सेवादार से एक मैच बॉक्स लाने का अनुरोध किया। तदुपरांत गुरुदेव ने माचिस की तीली ली और उसे छोटे टुकड़ों में तोड़ना शुरू कर दिया। यह देखकर सर्जन ने अचंभित होकर पूछा- 'महाराज जी, आप क्या कर रहे हैं'? महाराज जी ने कहा कि लोग कहते हैं कि इसमें आग है लेकिन मैंने इसे छोटे टुकड़ों में तोड़ दिया है तो आग क्यों नहीं दिख रही है। महाराज जी ने तब कहा जैसे इससे आग उत्पन्न करने की तकनीक है, उसी प्रकार भगवान के दर्शन की एक अनोखी तकनीक है। आपको एक सच्चे गुरु की तलाश करनी होगी, जो आपको इस तकनीक को प्रदान कर सके।

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मासिक आध्यात्मिक कार्यक्रमों द्वारा भक्त मानव जीवन के सही उद्देश्य के बारे में जान आनंद का अनुभव करते हैं।

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