आज जहाँ सुविधाओं व माडर्नाइज़ेशन के संबंध में हमारा ग्राफ प्रगति दर्शाता है, ऊर्ध्वगामी है; वहीं स्वास्थ्य के संबंध में यह ट्रेंड एकदम उलट है। कहने का मतलब कि मनुष्य की सेहत, शक्ति, ऊर्जा व कार्य करने की क्षमता में निरन्तर गिरावट पाई जा रही है। इस गिरावट की एक मुख्य जड़ है-हमारी गड़बड़ाती दिनचर्या। इस गड़बड़ी को समाप्त करने तथा अपने आर्य-पूर्वजों जैसा स्वास्थ्य व पुष्ट शरीर पाने के लिए हम आपको उन्हीं की एक वैदिक शाला में लेकर चलते हैं। यह एक वैदिक कालीन गुरुकुल है, जहाँ छात्रगण अपने आचार्य के निर्देशानुसार स्वस्थ जीवन व्यतीत कर रहे हैं। आइए, हम भी उनके साथ स्वास्थ्य संबंधी महत्त्वपूर्ण सूत्र सीखते हैं-
समय- ब्रह्ममुहूर्त काल!
आश्रम में प्रखर शंखनाद गूँज उठा।
आचार्य (छात्रों को सम्बोधित करते हुए)- छात्रों! ब्रह्ममुहूर्त हो गया। अपनी-अपनी शैया त्यागो और बाहर खुली हवा में आ जाओ। इस ब्रह्म-बेल में प्रकृति अमृत-तुल्य प्राणवायु, स्वास्थ्य, प्रसन्नता व मेधा का प्रसाद बाँट रही है। यह समय सत्व-तत्त्व प्रधान है। इसलिए उठो! शीघ्र ही प्रकृति के इस आँचल में आ जाओ तथा अनेक लाभों को प्राप्त करो।
सभी छात्र, आश्रम की तुलसी-वाड़ी में एकत्रित हो गए। परन्तु बालक अभिज्ञात अभी तक नहीं आया था। इसलिए आचार्य ने उसके मित्र सार्थक से उसके विषय में पूछा।
सार्थक- आचार्य! वह हमारे साथ ही था, परन्तु पता नहीं कहाँ रह गया?
इतने में अभिज्ञात आता हुआ दिखाई दिया।
आचार्य (प्रश्नवाचक दृष्टि से)- कहाँ रह गए थे तुम, अभिज्ञात?
अभिज्ञात- आचार्य! मैं मंजन करने लग गया था।
आचार्य- अरे! तुम्हें मंजन तो क्या, कुल्ला भी नहीं करना चाहिए था। बल्कि सीधा यहाँ आकर बासी मुँह से ही ३-४ प्याले जल पीना चाहिए था। चलो बच्चों, अब सभी उकड़ूँ बैठकर पानी पीओ।
देवेन्द्र- …
आचार्य- …
देवेन्द्र- बिना कुल्ला किए बासी मुँह जल पीने से तो मुँह के कीटाणु भी भीतर ही चले जाते होंगे?
आचार्य ने देवेन्द्र को क्या उत्तर दिया? ब्रह्ममुहूर्त, सूर्योदय से पूर्व, दोपहर, और रात्रिकाल सभी समय में गुरुकल के शिष्यों की दिनचर्या कैसे व्यतीत होती है? कैसे हम उस पढ़ती को जान आज भी स्वास्थ्य संबंधी सूत्रों को अपने जीवन में लागू कर सकते है, जानने के लिए पढ़िए पूर्णतः लेख जून माह की हिन्दी अखण्ड ज्ञान मासिक पत्रिका में !