हम दीर्घायु कैसे हों? | Akhand Gyan | Eternal Wisdom

हम दीर्घायु कैसे हों?

(अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के उपलक्ष्य में)

21 जून- ‘अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस’। यह दिन पूरे वर्ष का सबसे लंबा दिन होता है। दीर्घ दिन पर मानव कैसे दीर्घायु हो, यही 21 जून पर योग-दिवस का खास संदेश है। ‘योग’ एक विशुद्ध एवं प्रायोगिक विज्ञान है, जो शरीर और मन के बीच सामंजस्य बनाकर आत्मा को पूर्णता तक पहुँचाता है। पर इस लेख के माध्यम से हम योग के शारीरिक पक्ष की ही चर्चा करेंगे।

योगासनों का वर्गीकरण

ऋषि-मुनियों द्वारा योगासनों को प्रमुखतः 6 भागों में बाँटा गया-

पशु-पक्षी आसन- ये आसन पशु-पक्षियों की आकृति, उनके बैठने-चलने के तरीकों के आधार पर बनाए गए हैं। जैसे- गोमुखासन, भुजंगासन, मयूरासन, सिंहासन, शलभासन, मत्स्यासन, मकरासन, उष्ट्रासन, शशांकासन, गरुड़ासन इत्यादि।

प्रकृति आसन- ये आसन प्रकृति यानि वृक्ष, वनस्पति आदि पर आधारित हैं। जैसे- ताड़ासन, वृक्षासन, पद्मासन, पर्वतासन, अर्धचंद्रासन इत्यादि।

अंग आसन- इन आसनों के नाम अंग विशेष पर आधारित हैं। जैसे शीर्षासन, सर्वांगासन, पादहस्तासन या उत्तानासन, मेरूदंडासन, पादांगुष्ठासन, कटिचक्रासन, कर्णपीड़ासन, शवासन, भुजपीड़ासन इत्यादि।

योगी आसन- ये आसन योगियों, अवतारों, महापुरुषों के नामों पर आधारित हैं। जैसे- नटराजासन, सिद्धासन, महावीरासन, ध्रुवासन, मत्स्येंद्रासन, हनुमानासन, भैरवासन, भरद्वाजासन, अष्टावक्रासन, वीरभद्रासन इत्यादि।

वस्तु आसन- इन आसनों की प्रेरणा विशेष वस्तुओं से ली गई है। जैसे तुला से तुलासन, हल से हलासन, नौका से नौकासन, धनुष से धनुरासन, वज्र से वज्रासन इत्यादि।

अन्य आसन- उपरोक्त श्रेणियों के अतिरिक्त शेष सभी आसन इसी वर्ग में आते हैं। जैसे वक्रासन, सुखासन, वीरासन, पश्चिमोत्तानासन, त्रिकोणासन, चमत्कारासन आदि।

आइए, इनमें से कुछेक आसनों को विस्तार से जानते हैं-

गोमुखासन

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इस आसन में व्यक्ति के शरीर की आकृति गाय के मुख के समान बनती है। इसलिए इसे गोमुखासन कहते हैं।

विधि- सर्वप्रथम दण्डासन में बैठ जाएँ यानि दोनों पैरों को सीधे सामने करके एड़ी-पंजों को मिलाकर बैठें। दोनों हथेलियों को कूल्हों के पास सटा कर जमीन पर रखें। बाईं टाँग को घुटने से मोड़ते हुए दाएँ नितम्ब के नीचे रखें। अब दाईं टाँग को मोड़ते हुए बाएँ घुटने के ऊपर से ले जाकर एड़ी को बाएँ नितम्ब के पास जमीन पर इस प्रकार रखें कि घुटने के ऊपर घुटना आ जाए। अब दाएँ हाथ को कोहनी से मोड़ते हुए नीचे की ओर से अपने पीछे कंधों के बीच ले जाएँ। फिर श्वास भरते हुए बाएँ हाथ को उठाकर कोहनी से मोड़ते हुए ऊपर की ओर से गर्दन के पीछे ले जाएँ। दोनों हाथों की अंगुलियों को पीठ के पीछे इस तरह से रखें कि ये एक-दूसरे से पकड़ी जा सकें। कमर व गर्दन सीधी रखें और सामने की ओर देखते हुए लंबा-गहरा श्वास लें। यथासंभव 30 सेकेंड से एक मिनट तक इसी स्थिति में रहें। फिर धीरे-धीरे श्वास छोड़ते हुए हाथों को खोल दें और पुनः दंडासन की स्थिति में आ जाएँ। यह आधा चक्र हुआ। अब दोनों पाँवों और दोनों हाथों की स्थिति बदलते हुए इस आसन को दोहराएँ। इससे एक चक्र पूरा होगा। इस आसन के चक्र को आप दो से तीन बार दोहरा सकते हैं।

सावधानी- आसन करते हुए पीठ के पीछे दोनों हाथों की अंगुलियों को एक-दूसरे से पकड़ने का जबरदस्ती प्रयास न करें। हाथों, पैरों, घुटनों और रीढ़ की हड्डी में गंभीर रोग हो या खूनी बवासीर हो तो यह आसन न करें।

लाभ- यह आसन महिलाओं के लिए बेहद लाभकारी है। कमर दर्द, गठिया, साइटिका, अपच, कब्ज, धातु रोग, बवासीर,

मधुमेह, सर्वाइकल, अस्थमा, बहुमूत्र, हर्निया, यकृत व गुर्दे के रोगों में यह आसन बहुत ही फायदेमंद है।

 

नटराज आसन

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भगवान शिव तांडव नृत्य के देव माने जाने से नटराज भी कहलाते हैं। उन्हीं की एक नृत्य मुद्रा पर आधारित है- नटराज आसन।

विधि- सर्वप्रथम सीधे खड़े हो जाएँ। फिर साँस भरते हुए अपने दाएँ घुटने को मोड़ें और दाहिने हाथ से दाएँ पाँव के पंजे को पकड़ें। जितना संभव हो, इसे पीठ के पीछे ऊपर की ओर ले जाएँ। अपने बाएँ हाथ को सामने से 45 डिग्री तक ऊपर उठाएँ और सीधा खीचें। ध्यान रहे, आपका सिर स्थिर और नजरें सामने केन्द्रित हों। इस दौरान शरीर का सारा वजन बाईं टाँग पर ही संतुलित करने का प्रयास करें। यथासंभव इस अवस्था में 15-30 सेकेंड तक रहें। अभ्यास के दौरान गहरी साँस लेते रहें। फिर पहले बाएँ हाथ को वापिस और दाएँ पंजे को छोड़ते हुए भूमि पर रखें। यह आधा चक्र हुआ। अब इसी आसन को बाएँ पैर से दोहराएँ जिससे सम्पूर्ण चक्र हो जाए। इस आसन को आप शुरुआत में 3-5 बार कर सकते हैं।

सावधानी- रीढ़ की हड्डी में कोई परेशानी हो या घुटनों में दर्द, तो इस आसन से दूरी बनाएँ। गर्भवती महिलाओं व साइटिका और निम्न रक्तचाप वाले रोगियों को भी यह आसन नहीं करना चाहिए।

लाभ- इस आसन से तंत्रिका तंत्र संतुलित रहता है। यह आसन दिमाग और कंधों में कैल्शियम के जमाव को रोकता है। इससे एकाग्रता में वृद्धि होती है। इस आसन से बाँहें और पैर मजबूत होते हैं। इस आसन में एक पैर पर शरीर का सारा वजन वहन करना होता है, जिससे शारीरिक संतुलन बढ़ता है। यह आसन जाँघों की अतिरिक्त चर्बी को कम करता है।

 

तुलासन

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इस आसन में शरीर की रचना तुला (तराजू) के समान हो जाती है। इसलिए इसे तोलासन या तुलासन भी कहते हैं।

विधि- सर्वप्रथम पद्मासन में बैठ जाएँ। (दाएँ पाँव को घुटने से मोड़कर अपनी बाईं जाँघ पर रखें। फिर इसी तरह बाएँ पाँव को घुटने से मोड़कर दायी जाँघ पर रखें।) अपने दोनों हाथों को कूल्हों की बगल में रखें। एक लम्बी श्वास लेकर अपनी हथेलियाँ भूमि पर टिका दें। फिर हाथों के सहारे अपने कूल्हों को ऊपर उठाने का प्रयास करें। इसे झटके में करने की बजाए धीरे-धीरे करें। इस आसन में पूरा शरीर हाथों पर संतुलित करना है। मात्र हथेलियाँ जमीन को छुएँगी। इस अवस्था में श्वास सामान्य रखें। इस स्थिति में 10-30 सेकेंड तक रहें और फिर साँस छोड़ते हुए प्रारंभिक अवस्था में आएँ। इस क्रिया को 3-5 बार दोहराएँ।

सावधानी- यदि कूल्हों या जाँघों में जकड़न महसूस होती हो, तो इस आसन को न करें। एड़ी या घुटनों में दर्द होने पर भी इस आसन से दूरी बनाएँ। इस आसन को कंधे या कलाई में चोट होने पर तो बिल्कुल न करें।

लाभ- इस आसन में हाथों पर शरीर का संतुलन बनाने से हाथ बेहद मजबूत होते हैं। यह आसन भुजाएँ, कलाई, कंधों और पेट को मजबूत बनाता है। इसे करने से माँसपेशियों का तनाव दूर और दिमाग शांत होता है। यह आसन पाचन शक्ति में भी वृद्धि करता है। यह पेट की एसिडिटी को भी दूर करने में सहायक होता है।

 

वक्रासन

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संस्कृत में ‘वक्र’ शब्द का अर्थ टेढ़ा होता है। इस आसन से शरीर की स्थिति टेढ़ी हो जाती है, इसलिए इसे वक्रासन कहते हैं। इसे करने से शरीर बेशक टेढ़ा हो जाता है, पर मेरुदंड बिल्कुल सीधा हो जाता है। इसलिए रीढ़ की हड्डी की मजबूती के लिए यह योगाभ्यास रामबाण है।

विधि- सर्वप्रथम दण्डासन में बैठ जाएँ। बाएँ पाँव को घुटने से मोड़ें और उसके पंजे को उठाकर दाएँ घुटने के बगल में जमीन पर रखें। अब दाएँ हाथ की कोहनी से बाएँ पैर के घुटने को दबाते हुए बाएँ पैर के अंगूठे को अपनी ओर खींचें। बाएँ हाथ को कमर के पीछे ले जाएँ और हथेली को भूमि पर रखें, जब तक कि पीठ लंबवत् न हो जाए। साँस छोड़ते हुए सिर को बाईं ओर मोड़कर देखें। इस स्थिति में 10-30 सेकेंड तक रहें और फिर साँस लेते हुए प्रारंभिक अवस्था में आएँ। यही क्रिया दूसरी ओर से दोहराएँ। यह एक चक्र हुआ। इस आसन को आप अपनी क्षमता के अनुसार 3-5 बार कर सकते हैं।

सावधानी- इस आसन को हमेशा खाली पेट ही करें। कमर, गर्दन, कोहनी, घुटनों व पेट के दर्द में यह आसन नहीं करना चाहिए। गर्भवती महिलाएँ भी इस आसन को न करें।

लाभ- यह आसन अवसाद, मधुमेह, हर्निया और मोटापे के रोग में लाभदायक है। इस आसन के नियमित अभ्यास से तंत्रिका तंत्र मजबूत होता है।

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