आने वाली सुबह शक्ति से युक्त हो! | Akhand Gyan | Eternal Wisdom

आने वाली सुबह शक्ति से युक्त हो!

कुछ साल पहले की बात है। नवरात्रों के विशेष दिन चल रहे थे। उन्हीं दिनों दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा' श्री देवी भागवत का' भव्य कार्यक्रम आयोजित किया गया था। मेरे मित्र इस संस्थान से जुड़े हुए हैं। उन्होंने गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी से ब्रह्मज्ञान की दीक्षा ग्रहण की थी। उन्हीं के आग्रह पर मैं भी देवी भागवत कथा सुनने उनके साथ गया। कथा के दौरान मंच से  'महिषासुरमर्दिनी स्तोत्रम' (श्री व्यास विरचितम् भगवती  स्तोत्रम) गाया गया। इसे मधुर लहरियों में गुँथकर पवित्र साध्वी बहनें गा रहीं थीं-
सुरवरवर्षिणि...
(अर्थात् नमन है आपको देवी माँ, जो देवों के लिए वरदानी हैं, जिन्होंने अपनी अनंत शक्ति से दुर्धर ओर दुर्मुख नामक दैत्यों का संहार किया। आपकी जय हो, हे महिषासुरमर्दिनी माँ...आपकी ...)

मधुमधुरे...
(अर्थात् नमन है आपको देवी माँ,...जो रणभेरियों के बीच मधु और कैटभ जैसे राक्षसों के मद का मर्दन करने वाली हैं!...)


निजभुजदण्ड...
(अर्थात् नमन है आपको देवी माँ, जिन्होंने अपने हाथ में दंड धारण कर असुरों को खण्ड- खण्ड किया...)


अयि निजहुङ्...

(अर्थात् नमन है आपको देवी माँ, जिन्होंने मात्र एक हुंकार से दैत्य धूम्रलोचन को भस्म कर राख कर डाला;...)


इस स्तोत्र को सुन कर मेरा मन विचारों का तानाबाना बुनने लगा। इस तानेबाने में एक बड़ा सवाल छिपा था। सवाल इस स्तोत्र की प्रासंगिकता को लेकर था सैंकड़ौं वर्षों पहले मधु-कैटभ, महिषासुर, चण्ड-मुण्ड आदि नाम के दैत्य हुए। उनका संहार करने के लिए दैवी शक्ति को महिषासुरमर्दिनी आदि संहारक रूप में प्रकट होना पड़ा।समर सजे।... दानवों का सर्वनाश हुआ।... बस! कहानी खत्म हुई। फिर आज उन हिंसक वारदातों को मधुर संगीत में सजा कर याद करने से क्या लाभ? इन रक्त-रंजित घटनाओं से हम समाज को क्या शिक्षा देना चाहते हैं? क्या भगवती माँ में मेरी श्रद्धा उनकी रक्त के लिए लपलपाती जीभ देखकर बन पाएगी? उनके क्रोध में धधकते नथुनों और अंगारे बरसाती आँखों से मैं क्या प्रेरणा लूँ? मैं ही क्यों, आज का युवा-वर्ग क्या प्रेरणा ले? नारी-वर्ग क्या उपदेश ले?
ये प्रश्न मेरे भीतर के तार्किक पत्रकार ने उठाए थे। पर मेरे भीतर एक संवेदनशील मित्र भी समाया हुआ था।... जिसे अपनी मित्रता पर विश्वास था... और जिसे विश्वास था अपने मित्र के चयन पर।

कैसे उसके मित्र ने उसकी दुविधा को हरा? पूर्णत: जानने के लिए पढ़िए अक्टूबर माह की हिन्दी अखण्ड ज्ञान मासिक पत्रिका...

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