सोचो, कैसा होता अगर हम आज स्कूल में दाखिला लेते और कल ही डॉक्टर या इंजीनियर बन जाते! आज बीज बोते और कल ही खेतों में बड़ी-बड़ी फसल लहलहाने लगती। घर से निकलते और निकलते ही ऑफिस पहुँच जाते... रास्ते में कोई लाल बत्ती न होती! सचमुच, तब ज़िन्दगी कितनी सुपरफास्ट होती!
पर हकीकत में ऐसा नहीं होता! धैर्य, सब्र इंतज़ार- ये ज़िन्दगी के अटूट हिस्से हैं। आप चाहें तो भी इन शब्दों को अपने जीवन के शब्दकोश से हटा या मिटा नहीं सकते। मज़िल की ओर बढ़ेंगे, तो रास्ते में लाल बत्तियाँ तो आएँगी ही और हमें उन पर रुकना भी पड़ेगा। ठहरेंगे नहीं, हरी बत्ती होने तक का सब्र नहीं रखेंगे, तो फिर दुर्घटना के अंजाम को भी भुगतना पड़ेगा।
पर हाँ, रुकने-रुकने में फर्क है। जीवन में ठहरने का मतलब हाथ पर हाथ रख कर बैठ जाना नहीं है। धैर्य न तो निष्क्रियता का पर्याय है, न ही निखट्टूपन का! धैर्य का अर्थ है, एक ऐसा इंतज़ार जिसके साथी हैं- परिश्रम, सकारात्मक उर्जा, अटूट विश्वास, प्रेम, दृढ़ संकल्प!
भक्ति पथ पर भी हमारा ऐसा धैर्य बना रहे- इसके लिए आइए कुछ प्रेरणा-पुष्प चुनते हैं।
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हेरोल्ड विल्के- अमरीका के जाने-माने लेखक एवं वक्ता। इनकी चुनिन्दा विशेषताओं की सूची बनाई जाए, तो उसकी छोटी-सी झलक कुछ ऐसी दिखेगी- कार चलाना, किताबें लिखना, आटोग्राफ देना, अपना चश्मा पहनना और उतारना इत्यादि। हम जानते हैं, इन विशेषताओं को पढ़कर आपके मन से एक आवाज़ आई होगी- 'इनमें विशेष क्या है?' नि:सन्देह विशेष है, क्योंकि हेरोल्ड यह सब हाथों से नहीं, पैरों से करते थे। कारण कि हेरोल्ड की जन्म से ही दोनों बाजू नहीं थीं। एक बार एक टी.वी. शो में
हेरोल्ड से प्रश्न किया गया- 'आपने बिना हाथों के ये सब कार्य करने की कला कैसे सीखी?' तब हेरोल्ड ने अपने बचपन की एक घटना सांझी की, जिसे आज कारपोरेट जगत में अक्सर अद्भुत उदाहरण के रुप में बताया जाता है। वह घटना इस प्रकार थी-
गर्मी के दिन थे। 2-3 साल का हेरोल्ड अपने कमरे में ज़मीन पर बैठा था। गर्मी के मारे बेचैन था। इसलिए अपनी टी-शर्ट उतारना चाहता था। ... हेरोल्ड के लिए उस समय अपनी टी-शर्ट उतारना ही ऐसा था, जैसे कोई युद्ध लड़ना। क्योंकि एक तो वह नन्हा बालक था और दूसरा उसके दोनों हाथ भी नहीं थे।
हेरोल्ड की माँ सामने खड़ी थीं... एकटक सबकुछ देख रही थीं। फिर भी मदद के लिए आगे नहीं आ रही थीं।...
हेरोल्ड विल्के ने अपने इंटरव्यू में कहा- 'आज जब मैं उन घड़ियों को याद करता हूँ, तो समझ सकता हूँ कि कैसे मेरी माँ की बाजू का कण-कण मेरी मदद करने के लिए उतावला रहा होगा। ... यदि उस दिन उन्होंने धैर्य न रखा होता और टी-शर्ट उतारने में मेरा सहयोग कर दिया होता, तो आज मैं दुनिया के सामने एक सफल व्यक्ति के रूप में कभी नहीं खड़ा हो पाता!'
... हमने देखा कैसे परिस्थितियों से संघर्ष करने की शक्ति में धैर्य रखना कितना लाभदायक है...
ऐसे ही कैसे धैर्य पथ पर स्वयं को टिकाने के लिए, लक्ष्य को पाने में एक जादुई कारीगर हैं... जानने के लिए पढ़िए फरवरी'16 की हिंदी अखण्ड ज्ञान मासिक पत्रिका।