इस माह अखण्ड ज्ञान पत्रिका आपके लिए भारत के क्रांतिकारी युवा संत स्वामी विवेकानंद जी के कुछ विशेष चित्र लेकर आई है। इनमें से अधिकतर चित्र मूल प्रतियाँ हैं, जो स्वामी जी के जीवन संघर्ष के विलक्षण पहलुओं को उजागर कर रही हैं। इन पहलुओं ने स्वामी विवेकानंद जी को आकार दिया; नरेन्द्र को विश्व-विजेता विवेकानंद बनाया।
यह मौलिक चित्र स्वामी श्री रामकृष्ण परमहंस जी का है, जो अपने शिष्यों के मध्य उपस्थित हैं। परमहंस जी भाव-समाधि की अवस्था में लीन दिखाई दे रहे हैं। यह अवस्था उनकी ब्रह्म-निष्ठता की परिचायक है। केवल ठाकुर श्री रामकृष्ण परमहंस जी के समान सद्गुरु ही ऐसा सामर्थ्य रखते हैं, जो एक जिज्ञासु युवा नरेन्द्र को आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक क्रांति के पुरोधा विवेकानंद में परिवर्तित कर दिखाते हैं। स्वामी विवेकानंद जी कहा करते थे- ' यदि मैंने कभी एक भी हितकारी वचन बोला या कर्म किया, तो उसके वास्तविक स्त्रोत मेरे ठाकुर, मेरे गुरुदेव ही हैं'।
इसलिए विवेकानंद बनने की ओर पहला चरण है- ' उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत'- उठो! जागो!... और एक पूर्ण महापुरुष को गुरुदेव के रूप में प्राप्त करो!
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यह तस्वीर भेलूपुर, वाराणसी में स्थित दुर्गा मंदिर की है।सन् 1888 के आसपास यहाँ एक ऐसी घटना घटी, जिसने स्वामी विवेकानंद जी को जीवन का एक महत्वपूर्ण पाठ पढ़ाया। स्वामी जी मंदिर के परिसर में थे,जब उन्हें बंदरों के झुंड ने घेर लिया। भय के मारे स्वामी जी भागने लगे। वानर और अधिक उद्दंड हो गए। इतने में एक संन्यासी ने ऊँची आवाज़ में पुकारते हुए स्वामी जी को हिदायत दी- ' अरे रुको! डरो नहीं! वानरों की आँखों में आँखें डाल कर स्थिर खड़े रहो। उनका सामना करो।' स्वामी जी ने हिदायत का पालन किया और पाया कि वानर भाग खड़े हुए।
अतः विवेकानंद बनने का... सूत्र है- हिम्मत! साहस! डटे रहने का जज्बा!...
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विवेकानंद बनने के अन्य विशेष सूत्रों को जानने के लिए पढ़िए अप्रैल'16 माह की हिन्दी अखण्ड ज्ञान मासिक पत्रिका।