तसल्ली से तराशा है गुरुदेव ने! | Akhand Gyan | Eternal Wisdom

तसल्ली से तराशा है गुरुदेव ने!

अध्यात्म की डगर, एक ऐसी डगर है जिस पर गुरु के बिना चल पाना असम्भव है। इस सफर का आरम्भ भी गुरु से है और अंत भी। सृष्टि ने आदिकाल से न इसमें कोई परिवर्तन हुआ है और न ही होने की संभावना है। बल्कि सांसारिकता के रास्ते पर भी यही पाया गया कि जब भी कोई व्यक्ति पूरी तबियत से गढ़ा गया, तो वह गुरु के हाथों ही गढ़ा गया! जब-जब भी किसी का सफल निर्माण हुआ, तो एक गुरु के सान्निध्य मेंही हुआ। जिस तरह कोई भी कुम्भ, कुम्हार के बिना नहीं गढ़ा जा सकता; कोई भी मूर्ति, मूर्तिकार के बिना अपने अस्तित्व को नहीं पाती; कोई भी चित्र, चित्रकार के बिना सजीव नहीं होता; कोई भी संगीत, संगीतकार के बिना झंकृत नहीं होता; कोई भी कविता , कवि के बिना अर्थ नहीं पाती... ठीक उसी तरह कोई भी शिष्य, चाहे आध्यात्मिक क्षेत्र का हो या सांसारिक-उसे उसके लक्ष्य, उसकी मज़िल तक पहुँचाती है केवल गुरु सत्ता!

पाठकगणों! आज हम सांसारिक क्षेत्र से कुछ ऐसे ही रत्न चुनकर लाए हैं, जो आपके समक्ष गुरु की महत्ता को, उनकी गुरुता को प्रकट करेंगे ताकि हमारा शीश अनन्य भावों से गुरु-सत्ता के चरणों में झुक जाए।

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'उस्ताद ज़ाकिर हुसैन' को कौन नहीं जानता! संगीत की दुनिया का वह नाम, जिसने पूरी दुनिया को अपने तबले की ताल का दीवाना बना दिया। अपने हुनर से इन्होंने भारतीय शास्त्रीय संगीत को वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाई। भारत सरकार द्वारा इन्हें पद्म भूषण और पद्म श्री से सम्मानित किया गया। ये ऐसे भारतीय हैं, जिन्हें 2 बार संगीत के प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार- 'ग्रैमी अवार्ड' से सम्मानित किया गयाहै।
लेकिन क्या कभी आपने जानने का प्रयास किया कि ज़ाकिर हुसैन ने तबला बजाने का यह हुनर, यह जादू, यह गुण कहाँ से पाया? अपने पिता एवं गुरु 'उस्ताद अल्लाह रक्खा खाँ' से! ज़ाकिर हुसैन को मात्र 3 साल की उम्र से ही उन्होंने तबला सिखाना प्रारम्भ कर दिया था। गुरु ने तसल्ली से अपना समय व अनुभव ज़ाकिर को दिया। ज़ाकिर भी दिन-रात अपनी नन्ही अँगुलियों से तबले पर थाप देते और गुरु द्वारा बताए तरीके का अच्छे से अभ्यास करते। कुछ ही समय में गुरु की सारी दौलत ज़ाकिर ने हस्तगत कर ली। तब प्रसन्न होकर गुरु ने कहा- 'मैं चाहता हूँ कि तुम विश्व के बेहतरीन तबलावादक बनो। उन बुलंदियों को छुओ, जहाँ अभी तक कोई नहीं पहुँच पाया।...

गुरु के शब्द कैसे सच में कार्यान्वित हुए? सचिन तेंदुलकर और ब्रूस ली ने जो भी पाया, गुरु से पाया। कैसे? जानने के लिए पढ़िए जुलाई'16 माह की हिन्दी अखण्ड ज्ञान मासिक पत्रिका।

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