कुशल कार्य का रहस्य! | Akhand Gyan | Eternal Wisdom

कुशल कार्य का रहस्य!

श्री आशुतोष महाराज जी कहा करते हैं- 'समाज में अच्छी और प्रभावी योजनाओं की कमी नहीं है। अगर कमी है, तो श्रेष्ठ मानवों की जो उन योजनाओं को क्रियान्वित कर सकें।'


जब किसी इमारत का निर्माण होता है, तो यह सुनिश्चित किया जाता है कि उसमें लगने वाली एक-एक ईंट पक्की हो। अगर उसके निर्माण में कच्ची ईंटों का इस्तेमाल होगा, तो वह इमारत कभी भी गिर सकती है। इसी प्रकार समाज को श्रेष्ठ बनाने के लिए उसकी एक-एक ईकाई अर्थात मनुष्य को श्रेष्ठ बनाना होगा। तभी एक सुन्दर व श्रेष्ठ समाज का निर्माण संभव है। 
सब जानते हैं, श्रेष्ठ व्यक्ति अपने कार्य की गुणवत्ता से पहचाना जाता है। और कार्य की गुणवत्ता व्यक्ति की कार्य-कुशलता एवं कार्य-क्षमता पर आधारित होती है। अतः आवश्यकता है कि कार्य में गुणवत्ता लाने के लिए कार्यकर्ताओं में सुषुप्त आंतरिक गुणों को उजागर कर उन्हें कुशल व क्रियाशील बनाया जाए। आप क्या करते हैं, यह इतना महत्वपूर्ण नहीं है।महत्वपूर्ण है कि आप जो भी करते हैं, उसे कैसे करते हैं?


एक श्रेष्ठ और प्रभावी कार्य कैसे किया जाता है? इस विषय में छान्दोग्य उपनिषद् में एक सुंदर श्लोक आता है-


'यदेव विद्यया करोति श्रद्धयोपनिषद्


तदेव वीर्यवत्तरं भवति।'...


... उपरोक्त श्लोक के अनुसार किसी भी कार्य की कुशलता प्रायः तीन बातों पर निर्भर करती है। क्या हैं वो तीन बातें?  क्या हैं  कुशल कार्य का रहस्य! जानने के लिए पढ़िए सितम्बर, 2016 माह की हिन्दी अखण्ड ज्ञान मासिक पत्रिका।

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