पितरों का कल्याण- पर कैसे? | Akhand Gyan | Eternal Wisdom

पितरों का कल्याण- पर कैसे?

सुबह 7 बजे...  'बेटे रोहन! जल्दी उठो, तैयार नहीं होना क्या? कल रात बताया तो था कि आज घर में पूजा होनी है। चलो, अब देर न करो! उठो जल्दी से!' ऐसा कहकर माँ रसोईघर में चली गयी। अभी दो मिनट भी नहीं बीते थे कि पिताजी ने भी आकर रोहन से बिस्तर छोड़ने और जल्दी उठकर तैयार होने को कहा। आखिरकार रोहन को उठना ही पड़ा।

 

पर यह क्या? घर में हर कोई बहुत व्यस्त था। माँ और दादी रसोई में खाना बना रही थीं। पिताजी सामान की टोकरियाँ उठाए हुए थे। दीदी पूजा का थाल सजा रही थीं।


'तू नहाने नहीं गया? जा, नहाकर आ और काम में हाथ बटा।'- रोहन की बड़ी बहन बोली।


जल्द ही रोहन तैयार होकर पिताजी के साथ मदद कराने लगा। पर उसकी जिज्ञासा भरी आँखें घर में सुबह से हो रही तैयारियों को देख रही थीं। वह दौड़-दौड़ कर काम तो करा रहा था। पर साथ ही, उस चौदह वर्षीय किशोर का तर्कशील दिमाग भी दौड़ रहा था। उसका मन अनेक सवालों से घिरता जा रहा था।


तभी घर की घंटी बजी और पंडितगणों का आगमन हुआ। घर में पूजा शुरु हुई, जिसे रोहन बड़ी बारीकी से देखने व समझने का प्रयास कर रहा था। सर्वप्रथम, गणेश जी की स्तुति कर पंडितों द्वारा गंगा-अवतरण की कथा सुनाई गई। फिर लोटे में जल, तिल, चावल, जौ डालकर रोहन के पिताजी ने दाहिने हाथ में दर्भा घास को लिया और तर्पण की विधि पूरी की। फिर उबले हुए चावल, जौ और काले तिल लेकर कुछ पिंड बनाए गए। पिण्डदान का अनुष्ठान पूर्ण किया गया। अब बारी थी, 'ब्रह्म-भोज' की। सो आए गए पंडितगणों को खीर, पूरी-छोले का भोज अर्पित किया गया। इसके पश्चात् दान-दक्षिणा प्राप्त कर पंडितों ने आशीर्वाद दिया और घर से वे सभी प्रस्थान कर गए।


सुबह 10 बजे... पिताजी किसी कार्य से बाहर चले गए। माँ और दादी भी घर का सामान लेने बाज़ार चली गईं और दीदी कॉलेज। असंख्य प्रश्नों की पोटली लिए बेचारे रोहन के पास इंतज़ार करने के अलावा और कोई चारा नहीं था।


... और ...कुछ घंटों के बाद, पिताजी अपने एक मित्र के संग घर पर लौटकर आए। आपको बता दें कि पिताजी के ये मित्र आध्यात्मिक स्तर पर जागृत थे और ज्ञान-साधना में संलग्न थे।


अभी पिताजी अपने मित्र के संग सोफे पर बैठे ही थे कि तभी...


रोहन- पिताजी! आज घर पर क्या था? सुबह यह पूजा क्यों हो रही थी? वह आप मटकी से पानी थाल पर क्यों डाल रहे थे? वो चावल की गोल-गोल गेंदे क्यों बनाई थीं? पंडित लोग घर पर क्यों आए थे? आपने उन्हें खाना क्यों खिलाया?
जिज्ञासु रोहन ने झट से प्रश्नों की झड़ी लगा दी। मानो आज सवालों की मूसलाधार बारिश हो गई हो।


रोहन- बताइए न?


पिताजी- बेटे, पिछले वर्ष आपके दादाजी का देहांत हो गया था। आज उनका 'श्राद्ध' है और उसी के निमित्त सुबह पूजा हुई थी। भारतीय संस्कृति में श्राद्ध करने की परम्परा है। इस सोलह दिनों के पर्व को महालया, पितृ-पक्ष, कनागत्त आदि नामों से भी जाना जाता है।


रोहन- पर दादाजी तो चले गए। तो फिर हम यह सब पूजा वगैरह क्यों कर रहे हैं।


...
... हम यह श्राद्ध-पूजा क्यों करते हैं?


...
... शास्त्रों के अनुसार 'श्राद्ध' असल में है क्या?

जानने के लिए पढ़िए सितम्बर'17 माह की हिन्दी अखण्ड ज्ञान मासिक पत्रिका।

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