पत्रकार ( अपने मित्र साहिल से)- उफ! पता नहीं आजकल लोगों को यह जल्दी की बीमारी क्यों लगती जा रही है?
साहिल- क्या हुआ भाई? जल्दबाज़ी से इतने परेशान क्यों हो? अरे! तेज़-रफ्तार वाली 21वीं शताब्दी के मॉडल हैं हम सब। हमें तो सबकुछ झटपट ही चाहिए होता है। खाना जल्दी, नौकरी जल्दी, कमाना जल्दी...
पत्रकार- साथ ही गुस्सा जल्दी, परेशान जल्दी, और तो और दुर्घटनाएँ जल्दी! पता है अभी-अभी कल के अखबार में एक बुरी खबर छापने के लिए देकर आ रहा हूँ।
साहिल- ऐसा क्या है उस खबर में?
पत्रकार- यही कि कल हाई-वे पर एक कार का बहुत बुरा ऐक्सिडेंट हो गया। कार में बैठे पति-पत्नी की उसी समय मृत्यु हो गई।...
जानते हो, ऐक्सिडेंट का क्या कारण था?
साहिल- कार चालक ने जल्दबाज़ी के कारण ओवर-टेक करने की कोशिश की होगी...
पत्रकार- हममम... सही समझे। इतने अधीर हो चुके हैं हम कि इंतज़ार नहीं कर सकते, भले ही जीवन खतरे में क्यों न डालना
पड़े। हमारी अधीरता की छोटी सी झलक देता हूँ-
1) रिसर्च बताती है कि आजकल हम-
● लगभग हर 36 मिनट में अपना फोन खोलकर ई-मेल देख रहे होते हैं।
● लगभग हर 39 मिनट में ट्विटर अकाउंट चैक करते हैं।
● लगभग हर 48 मिनट में फोन के मैसेज को चैक कर रहे होते हैं।
● लगभग हर 49.25 मिनट में मिस्ड कॉल देख रहे होते हैं।
● 18 से 24 साल के लोग लगभग हर 10 मिनट में कोई न कोई गैजेट देख रहे होते हैं।
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4) अधीरता इतनी बढ़ गई है कि आज मोबाइल पर लोग पासवर्ड की जगह फिंगर-प्रिंट (Biometric) रखते हैं क्योंकि पासवर्ड लिखने का समय और धैर्य नहीं है।
5) हम यदि भगवान से धैर्य की माँग करते हैं, तो वह भी अधीर होकर। कुछ यह कहते हुए- 'हे भगवान! मुझे जल्दी से धैर्य दे दो...'
सौ प्रतिशत सही है, पत्रकार द्वारा दिए गए ये तथ्य। आजकल अधीर होना मानो मॉडर्न होने का पैमाना बन गया है। पर अधीरता का एक घातक परिणाम तो पत्रकार ने अभी हमारे सामने रख ही दिया था। अन्य भी कई दुष्परिणाम होते हैं, धैर्य न रखने के।...
सब्र खोने से हम बहुत कुछ खो देते हैं।... पर वहीं सब्र रखने से हम बहुत कुछ पा लेते हैं। क्या खोया? क्या पाया? जानने के लिए पढ़िए नवम्बर'17 माह की हिन्दी अखण्ड ज्ञान मासिक पत्रिका।