मनोविज्ञान में अध्यात्म के रत्न | Akhand Gyan | Eternal Wisdom

मनोविज्ञान में अध्यात्म के रत्न

'मानवीय मनोवृत्ति' सदा से ही शोध का विषय रही है। यही कारण है कि माओविग्यान के क्षेत्र में अनुसंधानों का सिलसिला चलता रहता है। इस बार अखण्ड ज्ञान के इस मंच पर भी ऐसे ही मनोवैज्ञानिक शोधों को हम गहराई से जानेंगे। कहने को तो ये प्रयोग मनुष्य के मानस को जाँचने-परखने के लिए हुए। किंतु यदि इन्हें आध्यात्मिक आईने से देखा जाए, तो ये समाज के लिए 'आत्मज्ञान' जैसी अमूल्य प्रेरणाएँ समेटे हुए हैं। तो आइए, इन आधुनिक प्रयोगों को विस्तार से जानते हैं तथा इनसे सुगंधित जीवन-पुष्प चुनते हैं।

मानव! मत बन वानर!

पाँच वानरों का प्रयोग

वानरों के इस प्रयोग की चर्चा सन 1996 से हो रही है। इसे सबसे पहले गैरी हैमल और सी. के. प्रहलाद द्वारा लिखित पुस्तक 'Competing For the Future' में दर्ज़ पाया गया। हालांकि वास्तविकता में इस प्रयोग के होने का कहीं कोई विवरण नहीं मिलता। पर फिर भी मनोविज्ञान के क्षेत्र में इसे मानवीय मानसिकता को समझने में काफी कारगर पाया गया। यह प्रयोग कुछ इस प्रकार है-

1. कुछ वैज्ञानिकों ने पाँच वानरों को एक पिंजरे में बंद कर दिया। पिंजरे के बीचोबीच एक सीढ़ी रखी गई तथा सीढ़ी के ऊपर केले का गुच्छा लटका दिया गया।

2. बन्दर केलों से दूर रहें!... हो ही नहीं सकता। तुरंत उनमें से एक बंदर केले लेने हेतु सीढ़ी पर चढ़ने लगा।  पर तभी... बाकी के चारों बंदर पर ठंडे पानी की बौछारें डाली गईं। और यह प्रक्रिया हर बार दोहराई जाती। ...

3. शीघ्र ही बंदरों ने इस प्रक्रिया को भाँप लिया। अतः अब जैसे ही उनका कोई साथी बंदर सीढ़ी अपर चढ़ने लगता, तो बाकी के बंदर उसे नीचे खींच लेते ताकि उन्हें पानी की बौछारें न झेलनी पड़ें।

4. कुछ समय के उपरांत किसी वानर ने पुनः केलों को पाने का प्रयास नहीं किया। सभी मात्र केलों को देखकर ही संतुष्ट रहने लगे।

5. अब वैज्ञानिकों ने उन पाँचों में से एक बंदर को पिंजरे से बाहर निकल लिया। उसके स्थान पर किसी दुसरे बंदर को अंदर भेज दिया। चूँकि यह नया बंदर पूर्व घटी घटना से अनभिज्ञ था, इसलिए उसने अपने स्वाभावानुसार केले लेने के लिए शीघ्रता से सीढ़ी पर चढ़ाई शुरू कर दी।

6. मज़े की बात यह है कि अबकि बार बाकी बंदरों पर पानी की बौछारें नहीं डाली गईं। पर फिर भी नए वानरों के हर प्रयास पर अन्य बंदरों ने उसे नीचे की और खींचा। ...

7. प्रयोग के अगले दौर में वैज्ञानिकों ने एक और पुराने बंदर को नवीन बंदर में बदल दिया। उसके साथ भी यही घटना घटी। ...

8. इस प्रकार एक-एक करके हर पुराने बंदर (जो कि प्रयोग की शुरुआत में था और जिसने ठंडे पानी की बौछारें सही थीं ) को नए वानर से बदल दिया गया। अतः अब पिंजरे में पाँच नवीन वानर थे, जिन्होंने कभी ठंडे पानी की बौछारें नहीं सही थीं। पर उनमें से कोई भी केलों को लेने का प्रयास नहीं कर रहा था।

9. यदि हम इन वानरों से पूछ पाते कि उन्होंने अपने हर उस साथी पर वार क्यों किया, जिसने सीढ़ी पर चढ़कर केलों को पाने का प्रयास किया, तो संभवतः उनका यहीं जवाब होता- 'हमें नहीं पता। यहाँ इसी प्रकार से होता आ रहा है।'

निष्कर्ष- नवीन वानरों ने बिना कारण जाने पुराने वानरों की क्रियाओं को अपने व्यवहार में ढाल लिया।

पर ... क्या मानव नकल करने वाला बंदर है? क्या है इसकी आध्यात्मिक विवेचना?

अन्य मनोवैज्ञानिक शोध से भी प्रेरणा लेने के लिए पूर्णतः पढ़िए जनवरी'18 की हिन्दी अखण्ड ज्ञान मासिक पत्रिका!

Need to read such articles? Subscribe Today