जब भी किसी बात से मन घबराने लगता है, किसी दुर्घटना के घट जाने का डर हममें बैचेनी पैदा करने लगता है, मुश्किलें चारों ओर से हम पर अपना शिकंजा कस लेती हैं... तब मन के किसी कोने में , चाहे हल्की सी ही सही, पर यह आस होती है- 'भगवान सब ठीक करेंगे।' लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी- इस दुनिया में कुछ ऐसे भी लोग हैं, जिन्हें ऐसी घड़ियों में भगवान से ही डर लगता है। उनके अनुसार अगर जीवन में कुछ ठीक नहीं है, बिगड़ा है- तो उसके लिए भगवान ही ज़िम्मेदार हैं। ' ज़रूर भगवान ने ही कोप बरसाया है, तभी जीवन में विपदाओं का तूफान आया है।'- ऐसा उन सभी का मानना है, जो गॉड-फोबिया अर्थात् भगवान से डरने की बीमारी से पीड़ित होते हैं। सुनने में अजीब सी बात लगती है न! किंतु हकीकत है। ऐसे ही बहुत से डर हैं, जो कुछ लोगों के भीतर अध्यात्म को लेकर दिखते हैं। इस कारण से वे लोग ईश्वर से दूर ही रहना पसंद करते हैं। आइए उन्हीं में से कुछेक डरों पर नज़र डालते हैं-
बाथो फोबिया
यह नाम ग्रीक भाषा के 'बाथोस्' यानी गहराई और 'फोबोस' यानी डरसे निकला है। मनोवैज्ञानिकों ने शोधों के आधार पर पाया है कि कुछ लोगों को गहराई में (पानी या जमीन की) जाने से भय लगता है। ऐसे सभी लोग मनोविज्ञान की भाषा में बाथोफोबिया के शिकार कहलाते हैं। पर बहुत से तार्किक और बुद्धिजीवियों में यह समस्या ईश्वर के संबंध में भी देखी जा सकती है।
अभी हाल ही में न्यूयॉर्क सिटी कॉलेज में विज्ञान-सम्बन्धी एक कॉन्फ्रेंस आयोजित की गई। अचानक उस कॉन्फ्रेंस में हिस्सा लेने वालों में से एक विद्यार्थी उठा और उसने पैनेलिस्ट पर एक करारा सवाल दाग दिया- 'क्या ऐसा संभव है कि एक व्यक्ति वैज्ञानिक होने के बावज़ूद ईश्वर पर विश्वास रखता हो?'
पैनल में सभी नोबेल पुरस्कार विजेता बैठे थे। उनमें से रसायन शास्त्र में पुरस्कृत हर्बर्ट ए. हॉप्टमैन ने उत्तर देते हुए कहा- 'बिल्कुल नहीं! ऐसी दकियानूसी सत्ता में विश्वास रखना न सिर्फ वैज्ञानिक दृष्टिकोण से अर्थहीन है, बल्कि यह समस्त मानव समाज की बुद्धि, सूझ-बूझ का सत्यानाश करने जैसा है।'
यह कथन स्पष्ट करता है कि हर्बर्ट प्रश्न का उत्तर देने से पहले तथ्य की गहराई में नहीं उतरे। क्योंकि उन्हें भी शायद अध्यात्म को लेकर बाथोफोबिया था।ऊपरी सतह पर खड़े रहकर वे अध्यात्म-सागर से मोती नहीं चुन पाए। यहाँ तक कि प्रकृति में निहित महीन कारीगरी भी नहीं देख पाए।...
काईफो फोबिया
काईफो फोबिया यानी झुकने का डर (fear of stopping)। शारीरिक स्तर पर तो यह डर कुछ लोगों में पाया जाता है। किंतु मानसिक स्तर पर इसके मरीज़ काफी बड़ी तादाद में हैं। बेशक आप अपने ऊपर ही आज़मा कर देख लीजिए। जब किसी से बहस छिड़ती है, तो कितनी बार ऐसा होता है कि 'आप' झुक जाते हैं? तब क्या यह भय हावी नहीं रहता कि झुक गए तो हम हल्के पड़ जाएँगे। यही कारण है कि हम अड़े और अकड़े रहते हैं। चाहे बात को दाएँ-बाएँ घुमाते रहें, लेकिन हार नहीं मानते।
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क्या है काईफो फोबिया, पिस्तान्थ्रो फोबिया इल्यूथेरो फोबिया और क्या है उनसे छूटने का समाधान पूर्णतः जानने के लिए पढ़िए नवम्बर 2018 माह की हिन्दी अखण्ड ज्ञान मासिक पत्रिका।