संस्कृत भाषा में दो मुख्य बिंदु होते हैं- विसर्ग (:) और अनुस्वार ( म्)! संस्कृत के अधिकांश पुल्लिंग शब्द विसर्गान्त होते हैं, जैसे कि- छात्रः, आदित्यः, बालः, नरः, वृक्षः, भास्करः, देवः इत्यादि। आप एक बार मुख से इन शब्दों का उच्चारण करके देखिए। आप जान जाएँगे, इन शब्दों की खासियत यह है कि इनके पीछे विसर्ग लगने से इनके उच्चारण के दौरान श्वांस बाहर आता है। तो जितनी बार विसर्ग वाले शब्द का उच्चारण होता है, उतनी ही बार स्वतः सहज रूप से कपालभाति प्राणायाम होता जाता है। अनायास ही उससे मिलने वाले लाभ भी प्राप्त हो जाते हैं।
संस्कृत के अधिकांश वाक्यों में अनुस्वार और विसर्ग, दोनों ही प्रयोग होते हैं। जैसे कि ये साधारण से वाक्य ही देखिए-
बालकः पुस्तकम् पठति।- बालक पुस्तक पढ़ता है।
मम विद्यालये अति सुन्दरम् उद्यानम् अस्ति।- मेरे विद्यालय में अत्यंत सुन्दर उद्यान है।
इन वाक्यों के उच्चारण में कपालभाति और भ्रामरी- दोनों ही प्राणायाम अनायास ही हो रहे हैं। यदि संस्कृत आम बोलचाल की भाषा बन जाए, तो फिर बातचीत करते हुए प्राणायाम स्वतः ही होते रहेंगे और स्वास्थ्य लाभ भी मिलते रहेंगे। अतः संस्कृत बोलिए और प्राणायाम के लाभ पाइए।
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