जितना हम एक वस्तु या व्यक्ति के संपर्क में आते हैं, उतनी ही उसके प्रति हमारी वरीयता (Preference) विकसित होती है।मनोविज्ञान के इस सिद्धांत को 'मियर एक्सपोज़र इफेक्ट' या फॅमिलिएरिटी सिद्धांत कहा जाता है।
उदाहरण के तौर पर, मान लीजिए आप दो गाने सुनते हैं। पहले गाने को पहली बार सुना है और दूसरे गाने के शब्दों या धुन को पहले भी कई बार सुन चुके हैं। तो मियर एक्सपोज़र इफेक्ट के अनुसार दूसरा गाना आपके मन पर गहरा प्रभाव छोड़ेगा बजाय पहले गाने के।
इस इफेक्ट को साबित करने के लिए रोबर्ट जर्ज़ोक ने एक शोध किया। इसमें उन्होंने प्रतियोगियों को कुछ जटिल तस्वीरें दिखाईं। फिर उन सबसे पूछा कि क्या उनको तस्वीरें पसंद या समझ आईं? जिन प्रतियोगियों ने तस्वीरों को पहले भी कई बार देखा हुआ था, उनको तस्वीरें ज़्यादा पसंद और समझ आईं- उनके मुकाबले जिन्होंने तस्वीरों को पहली बार देखा था।
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इतना गहरा होता है, एक्सपोज़र इफेक्ट (वातावरण प्रभाव) का असर हमारी बुद्धि और मन पर। मैनजमेंट जगत के इस प्रभाव पर ही आधारित है, एटवरटाइज़मेंट (विज्ञापन) का बाज़ार। कम्पनियाँ अपने पदार्थों को विज्ञापन के माध्यम से बार-बार लोगों को दिखाती हैं ताकि उनके मन में उन पदार्थों के लिए रुचि बढ़ जाए।
चलिए अब इस सिद्धांत को ज़ीवन के गूढ़ पक्ष पर भी लगाते हैं। यदि आज के इंसान को संसार और अध्यात्म में से किसी एक का चयन करने को कहा जाए, तो वह किसे चुनेगा? सर्वे बताते हैं कि अधिकतर ने संसार का चयन किया। क्यों? अध्यात्म को प्राथमिकता न मिलने का कारण क्या है? क्या अध्यात्म में कुछ कमी है या अध्यात्म महत्वपूर्ण नहीं है? …
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