एक बार गुरु और शिष्य प्रचार के लिए एक से दूसरे नगर की ओर जा रहे थे। राह में एक वन पड़ता था। गुरु-शिष्य उस वनमार्ग के मध्य में पहुँच चुके थे। किंतु अब सायंकाल हो गई थी। सो गुरु ने शिष्य को कहा- 'अब यहीं रुककर रात को ध्यान-साधना कर विश्राम करेंगे।'
रात्रि का पहला पहर बीत चुका था और शिष्य इस पहर में पहरा दे रहा था। तभी कहीं दूर से हवा की गति पर दौड़ता हुआ एक खूंखार लाल आँखों वाला राक्षस आया। इस दैत्य ने पूरे वेग से शिष्य पर कटु वचनों का वार किया। प्रतिक्रिया स्वरूप शिष्य ने भी पिशाच पर क्रोध करना प्रारम्भ किया। नतीजा यह निकला कि दोनों में वाक् युद्ध छिड़ गया। आखिरकार पिशाच क्रोध में पागल हो गया और उसने ऐसा प्रहार किया कि शिष्य वहीं बेहोश होकर गिर पड़ा।
कुछ समय बाद जब शिष्य ने अपनी आँखें खोलीं, तो अपने सिर को गुरु की गोद में पाया। उसने घबराते हुए गुरु से पूछा- 'गुरुवर! क्या आप पर भी लाल आँखों वाले दैत्य ने प्रहार किया?' गुरु ने 'हाँ' में सिर हिलाया। शिष्य व्याकुल हो गया- 'वह बहुत ही खूंखार राक्षस था। गुरुवर, आपको कहीं कोई चोट तो नहीं आयी न?' गुरु सहजता से बोले- 'नहीं पुत्र, वह मेरा कुछ नहीं बिगाड़ पाया। मैंने उस पिशाच को दुर्बल कर दिया था।'
शिष्य- किन्तु गुरुवर, मुझसे तो वह दुर्बल हो ही नहीं रहा था।
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गुरु- दरअसल, वह दैत्य और कोई नहीं बल्कि क्रोध का पिशाच था। इसलिए तुम्हारे क्रोध से वह और बलवान होता जा रहा था। परंतु जब वह मेरे समक्ष आया, तब मेरे शांत व्यवहार ने उसका बल क्षीण कर दिया और वह भाग गया।
पाठकगणों! बस यही रामबाण है क्रोध के पिशाच को खत्म करने का। अगर हम क्रोध की प्रतिक्रिया क्रोध से करने लग जाते हैं, तो वह आग में घी डालने जैसा है। इसलिए यदि कोई आप पर क्रोध में कटु शब्दों से प्रहार करता है, तो आप विवेक और संयम का परिचय दें। शांत होकर परिस्थिति का सामना करें। यह क्रोध के पिशाच को दुबला कर देगा। घर-परिवार-ऑफिस में क्लेश मिटाने का यह एक महत्वपूर्ण सूत्र है।
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