
सत्गुरु दीक्षा में क्या देते हैं?
यह बात हमने बहुत बार सुनी है- "गुरु बिना ज्ञान नहीं हो सकता।" संत कबीर दास जी भी कहते हैं-
गुरु बिन ज्ञान न उपजै, गुरु बिन मिलै न मोष।
गुरु बिन लखै न सत्य को, गुरु बिन मैटैं न दोष।।
परन्तु बात यहीं पर खत्म नहीं होती। इसके साथ यह जानना भी बहुत ज़रूरी है कि सत्गुरु ज्ञान- दीक्षा में देते क्या हैं? क्या शास्त्र-ग्रंथों का पठन-पाठन ज्ञान है? क्या माला-मंत्र मिल जाने को दीक्षा कहते हैं? क्या ज्ञान दीक्षा का मतलब ऋद्धि- सिद्धि प्राप्त कर लेना है? क्या ज्ञान हठयोग की क्रियाएं सीख लेना है? या फिर आंखें बंद कर के, कल्पना के जगत में उड़ान भरना ज्ञान- ध्यान होता है?
गीता में भगवन श्री कृष्णा ज्ञान से जुडी इन साडी परिभाषाओं का खंडन करते हुए स्पष्ट कहते हैं:-
अध्यात्म ज्ञान नित्यत्वं ... ।
... यदतोन्यथा ।।
अर्थात अंतर्घट में ईश्वर के तत्त्व का दर्शन कर लेना ही अध्यात्म ज्ञान है। इसके अतिरिक्त अन्य 'सब कुछ' अज्ञान है।
अतः ज्ञान न तो ग्रंथों का शाब्दिक रटन-पाठन है? न ऋद्धि- सिद्धि है, न हठयोग है और न ही कल्पना की उड़ान है। पूर्ण सद्गुरु द्वारा मिलने वाला ब्रह्मज्ञान इन सबसे बहुत परे है और ऊँचा भी. कैसे? प्रस्तुत तथ्य एवं इतिहास के पन्नों पर दर्ज घटनाएँ इस बात का स्पष्ट प्रमाण है।
ब्रह्मज्ञान शाब्दिक ज्ञान नहीं, उससे बहुत श्रेष्ठ है!
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बोधिधर्मा के शिष्य 'शेन हुआ' ने भी ऐसा ही सम्बोधन देते हुए कहा- 'समस्त धार्मिक ग्रंथ दीये के चित्र के समान हैं। ये ग्रंथ हमें भरपूर मात्रा में यह जानकारी तो अवश्य देते हैं कि दीया कैसे बनता है। हम इस जानकारी को चाहे सारी उम्र रटते रहें, इन चित्रों को देखते रहें। इन सबको आदरपूर्वक
अपने हृदय से लगाकर रख लें... परन्तु इससे बूंद जितना लाभ भी नहीं मिलेगा। दीये के चित्र से हमें रोशनी की एक किरण भी नसीब नहीं होगी। हमारे भीतर की छटपटाहट ज्यों की त्यों बनी रहेगी। ...
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सभी तथ्यों एवं इतिहास के पन्नों पर दर्ज घटनाओं के स्पष्ट प्रमाण को पूर्णतः जानने के लिए पढ़िए नवंबर'19 माह की हिन्दी अखण्ड ज्ञान मासिक पत्रिका।