बौद्धिक आतंकवाद | Akhand Gyan | Eternal Wisdom

बौद्धिक आतंकवाद

आज आतंकवाद से पूरा विश्व त्रस्त है। इसको जड़ से खत्म करने के लिए साम-दाम-दंड-भेद, सब नीतियों का प्रयोग किया जा रहा है। पर चिंता का विषय यह है कि जहाँ इस आतंकवाद से लड़ने के भरसक प्रयास किए जा रहे हैं, वहाँ दूसरी ओर इसका एक दूसरा घिनौना रूप फलता-फैलता जा रहा है। वह रूप जो हमारे देश की लकीरों पर नहीं, बल्कि हमारे देश की जड़ों, उसकी संस्कृति को विषाक्त कर रहा है। आतंकवाद के इस घिनौने रूप का नाम है- बौद्धिक आतंकवाद। आश्चर्य की बात तो यह है कि इसकी तरफ किसी का ध्यान भी नहीं जा रहा है। इसलिए इस लेख द्वारा हम अपने पाठकों को इस आतंकवाद की कुटिल चालों से अवगत कराना चाहते हैं।

बौद्धिक आतंकवाद की सबसे पहली कूटनीति है- भारतीयों की धार्मिक भावनाओं, उनके आराध्यों और ईष्ट पर लांछन लगाना। इस कुठाराघात के लिए निम्न पैंतरे अपनाए जाते हैं-

लेखनी से फैलाया जा रहा है बौद्धिक आतंकवाद!

कलम देश की बड़ी शक्ति है, भाव जगाने वाली,

दिल ही नहीं दिमागों में भी आग लगाने वाली।।

ये शब्द भारत के सुप्रसिद्ध कवि रामधारी सिंह दिनकर के हैं। इन शब्दों में निश्चित तौर पर कवि कलम की सृजनात्मक शक्ति को बयां कर रहे हैं। पर बौद्धिक आतंकवादी तो इसी कलम को अपना सबसे बड़ा हथियार बनाए बैठे हैं। ये शैतान कलम से भाव नहीं, अपितु भ्रम फैला रहे हैं।

रामायण पर कुठाराघात

रामायण- वह ग्रंथ है जिसे अपनी दादी-नानी से रात को कहानी की तरह सुनकर भारत का हर बच्चा बड़ा होता है। सदियों से भारत का आदर्श ग्रंथ है- रामायण। किंतु आज बौद्धिक आतंकवादियों ने हमारे इस ग्रंथ पर प्रहार कर इसका स्वरूप बिगाड़ दिया है। जानते हैं, रामायण का कौन सा बेहूदा रूप हमारे बच्चे पढ़ रहे हैं?

कुछ समय पूर्व तक दिल्ली विश्वविद्यालय के बी..पास कोर्स में ए.के. रामानुजन की लिखी एक किताब पढ़ाई जाती थी। उसका नाम था- '300 रामायण'। उस पुस्तक में वर्णित रामायण के एक प्रसंग को ज़रा पढ़िए। प्रसंग कहता है- 'संतान प्राप्त करने हेतु रावण और उसकी पत्नी मंदोदरी ने वन में कठोर तपस्या की। तपस्या से प्रसन्न हो उस दंपति को भगवान से आम का प्रसाद मिला। इस प्रसाद का सेवन मंदोदरी नहीं करती, बल्कि रावण कर लेता है जिससे वह गर्भवान हो जाता है। कुछ महीनों बाद रावण को एक छींक आती है और तब उसकी नासिका के रास्ते से सीता का जन्म होता है। याने सीता रावण की छींक से पैदा हुई थी।'

इस प्रसंग को पढ़कर तो कोई भी यह कह देगा कि भारत कितना वैज्ञानिक देश था। भारतीयों के पूर्वजों को यह तक नहीं पता था कि गर्भधारण के पीछे क्या विज्ञान होता है और प्रजनन की क्या प्रक्रिया होती है। कहने का अर्थ यह है कि '300 रामायण' में प्रोफेसर ए.के.रामानुजन अप्रत्यक्ष तरीके से भारतीय संस्कृति पर आक्षेप लगा रहे हैं। लेकिन जब भारतीय संस्कृति के संरक्षकों को इस प्रसंग के बारे में पता चला, तो उन्होंने इस मुद्दे को गंभीरता से लिया। शोध करने पर सामने आया कि रामानुजन ने एक कन्नड़ लोक कथा को श्रवण किया था। लोकगीत में रावण को 'गर्ववान' बोला गया था, जिन्हें इन रामानुजन महाशय ने 'गर्भवान' सुन लिया या सुनने का नाटक किया। फिर लोकगीत में बोला गया था- 'लंका में सीता क्षति-जन्य है माने लंका में सीता हानिकारक है।' लेकिन इसे रामानुजन ने बना दिया- 'लंका में सीता श्रुति-जन्य है माने लंका में सीता का जन्म छींक से हुआ है।'
अब बताइए क्या हमारे पवित्र ग्रंथों के साथ ऐसी ओछी छेड़छाड़ करना आपको मात्र भूल लगती है? नहीं, इसके पीछे गहरा षड्यंत्र है। किनका?...

सिर्फ इतना ही नहीं... कैसे श्रीमद्भगवद्गीता पर, भारत की सनातन गुरु शिष्य परंपरा पर, और मीडिया से फैलाया जा रहा है बौद्धिक आतंकवाद! पूर्ण रूप से जानने के लिए पढ़िए दिसंबर 2019 माह की हिन्दी अखण्ड ज्ञान मासिक पत्रिका।

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