'तुम्हें स्मरण होगा कृष्णे कि विहार के समय एक बार तुमने मुझसे कहा था कि वह लोग कितने सौभाग्यशाली होंगे, जिन्होंने कान्हा को अपनी गोद में खिलाया होगा। वे गोपियाँ, जो कन्हैया को सताती थीं, और कन्हैया उनको। तो मैं तुम्हें कृष्णलीला सुनाने के लिए तारा मइया को लाया हूँ। ये नंद बाबा के यहाँ यशोदा माता की सहायिका थीं। अब वृद्धा होने के कारण ये अपने परिवार में लौट आई हैं और विश्राम का जीवन व्यतीत कर रही हैं। इन्होंने हमारे बाँके-बिहारी को गोद में खिलाया, उनको नहलाया-धुलाया है। चंचल होने पर उनका कान पकड़कर उन्हें दंडित भी किया है। तगड़ी न बंधवाने पर उनको अनेक गोप-बालाओं की सहायता से दबोच कर तगड़ी बाँधी है। घर में उपद्रव मचाने पर कान्हा को पकड़ने दौड़ी हैं और फिर थक-हारकर सहायता के लिए यशोदा मइया के पास गई हैं। इनके पास हमारे लीलाधर की क्रीड़ाओं की ऐसी गठरी है कि उसे सुनने के लिए सात जन्म भी कम हैं।' भीम उत्साह से बोले।
'ओह आर्य! आपकी बुद्धिमता पर मैं बलिहारी जाऊँ। आपने तो मुझे वह लाकर दिया है, जो मैं स्वप्न में सोचा करती थी।' द्रौपदी का स्वर वायु में लहराते किसी आँचल के समान आनंदित था।
'मइया, हमने श्रीकृष्ण की बाल-लीलाओं के अनेक चमत्कारिक प्रसंग सुने हैं। इस संबंध में आपका क्या अभिमत है? मेरे कहने का अभिप्राय यह कदापि नहीं है कि हम उन्हें अविश्वसनीय मानते हैं। आप उन सब बातों की साक्षी रही हैं, इसलिए आपकी भावनाएँ जानना चाह रहे हैं।' नकुल ने जिज्ञासा की।
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यह जिज्ञासा आप सब की भी होगी। इस जिज्ञासा को पूर्ण करने के लिए पढ़िए आगामी अगस्त माह'2020 की हिन्दी अखण्ड ज्ञान मासिक पत्रिका।