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संस्कारशाला— दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की समग्र शिक्षा पहल मंथन सम्पूर्ण विकास केंद्र के अंतर्गत 4 से 12 वर्ष के बच्चों हेतु आयोजित होने वाली मासिक कार्यशालाओं की एक विशिष्ट शृंखला है। यह केवल एक शिक्षण मंच नहीं, अपितु एक ऐसा संस्कार–केंद्र है जहाँ नन्हे मनों में आरंभ से ही उच्च नैतिक मूल्यों को रोपा जा रहा है ताकि वे सदैव अपने सनातन मूल्यों की जड़ों से जुड़े रहें। बच्चों के चरित्र में नैतिकता, विवेक और जीवन–कौशल का बीजारोपण कर, यह पहल उन्हें जिम्मेदार और संवेदनशील नागरिक बनाने का सशक्त माध्यम है।

Asteya Sanskarshala- Shaping Honest Hearts through Mindful Choices| July, 2025

इस माह की संस्करशाला अस्तेय संस्कारशाला – चतुर्थ धर्मलक्षणम् पर आधारित रही। ‘अस्तेय’ अर्थात् जो हमारा नहीं, उसे ग्रहण न करना। मात्र चोरी न करने का भाव ही नहीं, अपितु दूसरों के विचार, समय और प्रकृति के उपहारों का भी सम्मान करना। रोचक और अनुभवजन्य सत्रों के माध्यम से बच्चों को ईमानदारी, न्यायप्रियता व सजगता  का अभ्यास कराया गया, जिससे उनके जीवन की नींव उत्तरदायित्व और विवेक से सुदृढ़ हो सके।

जुलाई 2025 में, देश–विदेश स्थित DJJS शाखाओं एवं विभिन्न विद्यालयों में कुल 55 संस्कारशालाएँ आयोजित की गईं, जिनसे लगभग 2566 बच्चों ने लाभ उठाया।

Asteya Sanskarshala- Shaping Honest Hearts through Mindful Choices| July, 2025
  • दिल्ली : सरवोदय कन्या विद्यालय, क़ुतुबगढ़
     
  • हरियाणा : सरन, फरीदाबाद का प्राथमिक राजकीय विद्यालय
     

अस्तेय संस्कारशाला का संचालन मंथन के कार्यकर्ताओं द्वारा किया गया। कार्यशालाओं में बच्चों को सहज, दैनिक जीवन की परिस्थितियों से जोड़ते हुए समझाया गया कि किसी वस्तु को छुपाना, किसी और की रचना या परिश्रम को अपना बताना, अथवा कार्यों में लापरवाही कर स्वयं और दूसरों का समय व्यर्थ करना भी अस्तेय का सूक्ष्म रूप है।  बच्चों को सिखाया गया कि किसी के विचार, लेखन या रचना का उपयोग करते समय उचित श्रेय देना, सत्यनिष्ठा और पारदर्शिता का परिचायक है। पर्यावरणीय दृष्टिकोण से भी समझाया गया कि प्रकृति के संसाधनों का दुरुपयोग करना भी चोरी का ही एक स्वरूप है।

कहानियों, सामूहिक चर्चाओं और “Make a Story” जैसी सृजनात्मक गतिविधियों ने बच्चों को इन प्रसंगों पर सोचने और आत्ममंथन करने का अवसर दिया। सत्रों में व्यावहारिक उपाय भी सांझा किए गए—कैसे सजगता, नैतिक आदतों और ईश्वर, माता–पिता तथा गुरु के मार्गदर्शन द्वारा ‘अस्तेय’ को जीवन में आत्मसात किया जा सकता है। इस प्रकार बच्चों ने जाना कि भौतिक, बौद्धिक, कालगत और पर्यावरणीय—हर स्तर पर अस्तेय का पालन स्वयं का और समस्त जगत का सम्मान करना है।

अंत में, शांति–मंत्र और सामूहिक प्रार्थनाओं के साथ कार्यशालाएँ पूर्ण हुईं। सभी ने विनम्र भाव से दिव्या गुरु श्री आशुतोष महाराज जी के चरणों में वंदन अर्पित किया।

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