हमारे ग्रंथो की अत्याधुनिक एवं वैज्ञानिक ज्ञान के द्वारा नशे को इस प्रकार परिभाषित किया गया “न शम शांतिर्मया इति नशा” अर्थात जिसमे एक पल की भी शांति न हो वही नशा है। इसी अक्षुण्ण ज्ञान को जन मानस के बीच ले जाने हेतु दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान के सामाजिक विकल्प “बोध” के अंतर्गत हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी भारत देश के 11 से भी आधिक राज्यों मे “नशा मुक्त शिवरात्रि” नामक मूहीम चलाई गई।
महाशिवरात्री, भारतीय विधा का ऐसा त्योहार है जिसे भगवान शिव की स्तुति हेतु भारत के हर एक कोने मे मनाया जाता है। पूरे साल मे आने वाली 12 शिवरात्रियों मे से कृष्ण पक्ष के फाल्गुन(माघ) माह की 14वीं रात को पड़ने वाली शिवरात्रि सबसे मुख्य मानी जाती है क्यूंकी इस रात मे सूर्य एवं चंद्रमा दोनों का अंधकार मे विलय हो जाना जीव एवं आत्मा और आत्मा एवं परमात्मा का विलय माना जाता है।
भगवान शिव एक विलसखान देव माने जाते है जो की जन्म मृत्यु से परे है, जो कभी अवतार नहीं लेते, जो प्रसन्न हो जाने पर शिग्रह ही वरदान दे देते है। उनके ज़्यादातर स्वरूप मे वह किसी अनय क्रिया कलाप मे व्यस्त न हो केवल आँखें बंद कर ध्यान मे लीन नज़र आते है। भगवान शिव का यह स्वरूप प्रतीकात्मक है एवं भौतिक और सूक्ष्म स्तर पर अवलोकन, चिंतन, विचारणीयता के लिए प्रेरित करता है। और महाशिवरात्री का यह पर्व इसी अवलोकन, चिंतन एवं विचार करने के लिए एक अवसर है।
लेकिन आज इस अवसर को मनुष्य ने इतना दूषित कर दिया है की इस पवित्रता से भरे त्योहार ने अपनी अध्यात्मिकता एवं प्रेरणा को खो दिया है। आज, हर शिवरात्रि पर भगवान शिव को मानने वाले तथाकथित लोग न ही अभद्र गानो, अश्लील शब्दों पर बेतहाशा थिरकते हुए नज़र आते है बल्कि भगवान शिव के नाम पर शराब, भांग, चरस, गाँजा, हुक्का एवं अन्य नशीले पदार्थो का सेवन भी करते हुए दिखाई देते है। जब ऐसे लोगों से पूछा जाता है की इन पदार्थो के सेवन से शिव की पूजा का क्या संबंध है तो वह कह देते है “भगवान शिव भी तो नशा करते थे”। ऐसा परिपक्व उत्तर व अभद्र विचार उसी का हो सकता है जिसने भगवान शिव की गहराई को नहीं जाना है और उनके बाहरी स्वरूप को आधा अधूरा समझते हुए अपने लाभ के लिए अपनाया है। क्यूंकी यदि हम भगवान शिव को देखते हुए भाग पी रहे है तो क्या हम उनही की तरह विश का पान क्यू नहीं करते। क्यूँ हम उनही की तरह साँप को गले मे नहीं डाल लेते।
ऐसे अनेकों प्रश्नो को उठाना और जन समाज से पूछा जाना अत्यंत आवश्यक हो जाता है जब समाज अनेकों महान विभूतियों के कार्यो की गहराई को न जानते हुए बाहरी रूप से बहुत सी विकृतियाँ और भ्रांतियाँ शुरू कर देते है।
इनहि मुद्दों को लेते हुए न ही केवल भक्तो बल्कि जन मानस के बीच जाकर बोध- नशा उन्मूलन कार्यक्रम, प्रकल्प, दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान, महाशिवरात्री के पीछे छिपे अनेकों रहस्यो, प्रतीको और महत्वों को सामने रखा। इस कार्य हेतु नृत्य नाटिका, रैली, विवेचना, प्रदर्शनी, प्रतियोगिताएं, चर्चा, सम्मलेन, प्रदर्शनी, व्याख्यान, जानकारी काउंटर, संकल्प, प्रश्नोत्तरी, हस्ताक्षर अभियान एवं कार्यशालों जैसे अनेकों माध्यमों का प्रयोग करते हुए स्कूलो, कार्यालयो, मंदिरो, मॉल, पार्क्स आदि मे कार्यक्रम किए गए।
हर वर्ष , दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की युवा टुकड़ी सर्व श्री आशुतोष महाराज जी के दिशा निर्देशन मे भारत देश के अधिकतर राज्यो के कोने कोने मे जाकर जाग्रति का बिगुल बजाता है , ऐसे ही इस वर्ष बोध के अंतर्गत अनेकों प्रकार के कार्यक्रमों को आयोजित कर रहा है। यदि आप भी इन कार्यक्रमों मे भाग लेने चाहते है तो आप हमसे इन माध्यमों से जुड़ सकते है।
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