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हजारों लेख, सैकड़ों दुःखभरी कहानियों, असंख्य दिल दहला देने वाली डॉक्युमेंट्री प्रसारित होने के बाद आज भी पंजाब और उसका पड़ोसी राज्य हरियाणा मे नशाखोरी का बढ़ना विवादास्पद और अस्पष्ट है। इसके लिए जवाबदेही खरीदारों को ज्यादा से ज्यादा विक्रेताओं को जाती है क्योंकि पंजाब और हरियाणा का हर नागरिक इस तथ्य से वाकिफ है कि नशा न केवल व्यसनी बल्कि पूरे परिवार और समाज को बड़े पैमाने पर प्रभावित करता है।

यदि आप आज स्कूलों में जाते हैं तो आधे से ज्यादा  बच्चे किसी प्रकार के नशीले पदार्थों के प्रयोग मे संलग्न है । यह न केवल दुखद है बल्कि भयभीत करने वाला भी है । आज अगर हम सोचते हैं कि पंजाब और हरियाणा की पुलिस, प्रशासन या सरकार कुछ करती है, तो यह समस्या समाप्त हो जाएगी, तो इस अनुमान की सटीकता पिछले कुछ दशकों में पहले से ही हरियाणा और पंजाब  के लोगों द्वारा देखी जा चुकी है ।

इसलिए आज यह आवश्यक है कि जो लोग नशे की समस्या से पीड़ित हैं, उनके साथ जो लोग इस समस्या से नहीं गए हैं, उन दोनों पर कार्य किया जाना चाहिए । यूं तो पंजाब मे हजारो सरकारी व गैर सरकारी नशा मुक्ति केंद्र चलाये जाते है जिनकी सफलता नाम मात्र की है ।

और वास्तविकता तो यह है इन केन्द्रो मे जाने के बाद व्यक्ति की एक नशे से आसक्ति तो छुट जाती है लेकिन दूसरे किसी और नशे की लत लग जाती है । इस कारण से, पंजाब में आज, खुले तौर पर कई सिंथेटिक दवाओं का निर्माण किया भी जाता है और प्रशासन की नाक के नीचे  बेचा भी जाता है।

यह सफलता केवल दो स्तरों पर लाई  जा सकती है। या तो सरकार की मंशा  निर्धारक और शुद्ध हो या लोग खुद जागरूक हैं। यदि सामाजिक दृष्टि से देखा जाए, तो दूसरे स्तर पर काम करना, जिसका अर्थ लोगों में जागरूकता पैदा करना है, बहुत फायदेमंद है क्योंकि इसके प्रभाव दीर्घकालिक और दूरगामी होते हैं।

इसलिए दूसरे स्तर को ज्यादा कारगर मानते हुए, सर्व श्री आशुतोष महाराज जी पिछले तीन  दशको से लगातार पंजाब  और हरियाणा  की धरती पर काम कर रहे है | जिसके परिणाम स्वरूप  लाखो  लोगों नशा-मुक्त हो चके है जिसमें महिलाएं, युवा, पुरुष, बच्चे सभी शामिल है ।

आज इन लोगों को बाहर से किसी दवाई या counselling की जरूरत नहीं पड़ती क्यूंकी महाराज श्री ने जो समाधान दिया है वह भीतरी व पूर्ण है । अल्बर्ट आइन्सटाइन अकसरा कहा करते थे की कोई भी समस्या consciousness के उस स्तर पर जाकर नहीं सुलझाई जा सकती जहां से वह समस्या उपजती है | उस समस्या को सुलझाने के लिए आपको एक स्तर ऊपर जाना होता है ।

ठीक ऐसी ही प्रक्रिया आशुतोष महाराज जी के कार्यो व नीतियो या समाधान मे दिखाई देती है । जहां यूएनओडीसी जैसी संस्थाएं नशाखोरी को एक मानसिक बीमारी घोषित करती है वहीं श्री आशुतोष महाराज कहते हैं कि नशीली दवाओं की लत की समस्या को न शरीर में दवाइयों के ढेर लगाकर, न कि घंटों तक काउंसलिंग करके, न ही एक जगह पर जबरन बाँधकर ठीक नहीं किया जा सकता है, इसके लिए आपको मानसिक स्तर से बढ़कर आत्मा के स्तर तक जाना होगा।

और आत्मा के स्तर पर जाने की प्रक्रिया को सीख कर न ही आज लाखो लोग नशा मुक्त हुए है बल्कि समाज को नशा मुक्त करने मे पूरी इमादारी से लगे है | संस्थान बच्चो के साथ भी नशे से संबंध मे अनेकों realistic approach को अपनाते हुए समझाता है जिसका असर बहुत अच्छा पड़ता है और दृढ़ता से से बच्चो को किसी भी परिसतिथी मे नशे को ना कहना आ जाता है । साथ ही वह लोग जो नशे की समस्या से जूझ रहे है उन्हे ब्रह्मज्ञान पर आधारित ध्यान थेरेपी से नशा मुक्त बनाया जा रहा है ।

इसके अंतर्गत पंजाब राज्य मे 12-15 executive points निर्धारित किए गए है जैसे फिल्लौर, अमृतसर, बटाला, फ़िरोज़पुर, होशियारपुर, मोगा, जालंधर, कपूरथला, मोगा, शहीद भगत सिंह नगर, कपूरथला, पठानकोट, अबोहर, मुक्तसर, मलोट, पटियाला, तरनतारन आदि जिनके आस पास के क्षेत्रो को कवर किया जाता है । जहां निम्नलिखित अनेकों गतिविधियां की जाती है जैसे की:

  1. प्रशिक्षकों का प्रशिक्षण (टीओटी) - सर्वेक्षण करने के लिए कार्यशालाएं
  2. चर्चा सत्र
  3. सर्वेक्षण के प्रारंभिक दस्तावेज और नमूनो का आंकलन
  4. समुदाय का डोर टू डोर सर्वे
  5. युवा बैठके
  6. लेन बैठक
  7. क्षेत्र का नियमित दौरा
  8. महिलाओं के साथ बैठके
  9. सामुदायिक सूचनाओं के साथ बैठकें
  10. सर्वेक्षण किए गए डेटा का विश्लेषण
  11. निर्धारित योजना में सर्वे विश्लेषण को शामिल करना
  12. कार्ययोजना तैयार करना
  13. मादक पदार्थों के सेवन और इसकी लत के मुद्दे पर स्वयंसेवकों का प्रशिक्षण
  14. जागरूकता उपकरण और आईईसी सामग्री का विकास।
  15. समुदाय में प्रारंभिक जन परिचयात्मक सत्र
  16. शिक्षण संस्थानों में जागरूकता कार्यशालाएं
  17. ड्रग उपयोगकर्ताओं के लिए समूह और व्यक्तिगत परामर्श सत्र
  18. समुदायों में जन जागरूकता कार्यक्रम
  19. मूहीम आंकलन
  20. रिपोर्ट लेखन

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