अमृतसर, पंजाब में 30 अक्टूबर, 2018 को एक सुखद एंव भव्य माता की चौकी का आयोजन किया गया। चौकी में वक्ता के रुप में गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी भावअर्चना भारती जी रही। यह शाम भक्तिमय भजनों की मधुर आवाज के साथ माँ की शक्ति के वास्तविक स्त्रोत की प्रकृति पर चर्चा से परिपूर्ण थी। साध्वी जी ने कहा कि यह शाम उन सभी के लिए एक यादगार है जो खुशी के स्त्रोत की तलाश कर रहे हैं। हम सभी हमारे चारों ओर देख सकते हैं कि भौतिकवादी उपलब्धियों के बावजूद भी हम आंतरिक संतुष्टि को प्राप्त नहीं कर पाये हैं। शांति अभी भी अदृश्य है। हम हर नई उभरती हुई तकनीक के साथ बहुत जल्दी ऊब जाते हैं। इसलिए, निरंतर बेचैनी महसूस होती है। ऐसी स्थिति में, माता की चौकी एक ऐसा कार्यक्रम है जिसमें हम सभी साथ मिलकर एक स्थायी समाधान की तलाश करने पर विचार कर सकते है। इस संबंध में, माँ हमारा पथ प्रदर्शन करती है। प्राचीन भारतीय पवित्र पौराणिक कथाओं में माता का चित्रण इस तथ्य को व्यक्त करता है कि किसी भी प्रकार की उतार-चढ़ाव की परिस्थितियों में मन की शांत स्थिति के साथ बाधाओं को संभालना संभव है।
भारतीय पौराणिक कथाओं में इस बात का चित्रण है कि राक्षस महिषासुर भगवान ब्रह्मा से वरदान प्राप्त करने पर सम्पूर्ण ब्रह्मांड में आतंक फैला कर रख देता है। जब सभी देवतागण राक्षस महिषासुर से लड़ने में सफल नहीं हो पाते तो वे माँ दुर्गा का आह्वान करते हैं। माँ राक्षस का वध कर देती है और सम्पूर्ण ब्रह्मांड में शांति स्थापित हो जाती है। माँ किसका प्रतिनिधित्व करती हैं ? माँ एक सुप्रा चेतना है, एक सार्वभौमिक ऊर्जा जो हम सभी के भीतर है, लेकिन चूंकि हम अपना ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते इसलिये यह उर्जा निष्क्रिय रहती है। माँ के प्रतिष्ठित स्वरुप में एक सिर है लेकिन कई भुजाएं हैं। यह इस बात का संकेत है कि असीमित शक्ति की उपस्थिति के बाद भी मानसिक फोकस संभव है। यह प्रतीकात्मक प्रतिनिधित्व हमें सिखाता है कि हम भी इस तरह के फोकस को प्राप्त कर सकते हैं और बिना शांति को खोए उत्साह से इस दुनिया में अपने सभी कार्यों को पूरा कर सकते हैं।
हम मनुष्य भी आंतरिक जागरण की प्राचीन भारतीय तकनीक ब्राह्मज्ञान के माध्यम से अर्न्तज्ञान की ऐसी स्थिति को प्राप्त कर सकते हैं। इस तकनीक में किसी भी मानवीय शक्ति के प्रकटीकरण की क्षमता है। हालांकि, एक तत्वेता पूर्ण आध्यात्मिक गुरु की कृपा के बिना, जिन्होंने स्वयं इस दिव्यता का अपने भीतर दर्शन किया है, आंतरिक शांति की ऐसी स्थिति की प्राप्ति संभव नहीं है। अत: इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए, यह महत्वपूर्ण है कि हम हमारी आध्यात्मिक यात्रा का प्रारम्भ एक ऐसे पूर्ण गुरु की तलाश से करें जो हमारे भीतर के अंधेरे को हटाकर हमारे भीतर आध्यात्मिक प्रकाश को प्रकट करने में समर्थ हो। एक प्रकाश जिसका अनुसरण करके हम भी माँ की भांति अपने सभी कार्यों में केंद्रित हो सकें। जिज्ञासु साधक अपनी आध्यात्मिक यात्रा दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान से शुरू कर सकते हैं, जहाँ सर्व श्री आशुतोष महाराज जी की यह परम पावन कृपा किसी व्यक्ति विशेष पर न हो कर सब पर बरस रही हैं।
