श्रीमद् भागवत, भगवान श्री कृष्ण द्वारा सम्पूर्ण जगत को प्रदत्त एक अनमोल धरोहर है जिसमे ईश्वरीय सत्ता के दिव्य एवं गूढ़आध्यात्मिक रहस्यों को उद्घाटित किया गया है। अर्थपूर्ण एवं धर्मसंगत जीवन जीने के सूत्र भी भगवत गीता में प्रदान किये गए है। श्री कृष्ण की लीलाओं के पीछे निहित दिव्य संदेशों को जन-मानस तक पहुँचाने के उद्देश्य से गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी के दिव्य सानिध्य में दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा दिनांक 15 अक्टूबर से 21 अक्टूबर, 2019 तक बिहार के सीतामढ़ी में 7 दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा का आयोजन किया गया, जिसमें भारी संख्या में भक्त श्रद्धालुओं की उपस्थिति देखी गई। कथा व्यास साध्वी आस्था भारती जी ने विभिन्न दृष्टांतों के माध्यम से प्रभु श्री कृष्ण के जीवन दर्शन एवं उनमें निहित गूढ़ संदेशों को सांझा किया। साध्वी जी के ओजस्वी विचारों के साथ-साथ वेद मंत्रो के पवित्र उच्चारण एवं मधुर भजन संगीत ने सम्पूर्ण वातावरण में एक दिव्य स्पंदन का संचार किया। साध्वी जी ने बताया कि जगतगुरु कहलाने वाले प्रभु श्री कृष्ण एक महान संगीतज्ञ भी हैं। उनकी मुरली, प्रेम एवं अराधना का प्रतीक है। अपनी मुरली की मधुर एवं करुण तरानों से उन्होंने सदैव ही दिव्य एवं सकारात्मक ऊर्जा का संचार किया। जिस प्रकार श्री कृष्ण से उनकी बांसुरी को पृथक नहीं किया जा सकता ठीक उसी प्रकार की अपृथकता का सम्बन्ध आत्मा एवं परमात्मा के मध्य स्थित होता है। ब्रह्मज्ञान की पुरातन विद्या द्वारा ही केवल प्रभु श्री कृष्ण के वास्तविक स्वरुप एवं उनके संदेशों को अनुभव किया जा सकता है।
उन्होंने आगे समझाया कि हमें सदैव अपने प्रभु के श्री चरणों में उनकी मुरली की ही भांति बनने की प्रार्थना करनी चाहिए। प्रभु के प्रति पूर्ण समर्पण एवं विश्वास से ही हमारा मरुस्थल रुपी हृदय भी मधुबन बन जाता है। भगवान कृष्ण हमारे भीतर की सभी दुर्भावनाओं, दुःख, क्रोध, ईर्ष्या, द्वेष का अंत करते हैं और जीवन जीने के सही मार्ग की ओर प्रशस्त करते हैं किन्तु यह केवल ब्रह्मज्ञान के माध्यम से ही संभव है, तभी श्रेष्ठ मानव एवं श्रेष्ठ समाज की कल्पना सार्थक हो सकती है। ब्रह्मज्ञान के महत्त्व को समझाते हुए साध्वी जी ने बताया कि द्वापर युग में स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने इस ब्रह्मज्ञान को गोप-गोपियों को प्रदान किया था। कुरुक्षेत्र के मैदान में अस्त्र-शस्त्र का त्याग कर चुके अर्जुन को भी श्री कृष्ण ने ब्रह्मज्ञान प्रदान कर उसका मोह भंग कर उसका विवेक जाग्रत किया था।
साध्वी जी ने समझाया कि ब्रह्मज्ञान के द्वारा ही जीवन में वास्तविक भक्ति का आरम्भ होता है एवं मनुष्य आत्म उन्नति की ओर अग्रसर होता है। वर्तमान समय में गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी जन- मानस को ब्रह्मज्ञान की इसी अमूल्य निधि से लाभान्वित कर रहे हैं। ब्रह्मज्ञान द्वारा ही मानव हृदय का रूपांतरण संभव है। ब्रह्मज्ञान प्राप्त करने के उपरांत जब मनुष्य ध्यान-साधना की गहराइयों में उतरता है तब उसके मन से भय, निराशा, क्रोध, ईर्ष्या, द्वेष जैसे विकारों का अंत होता चला जाता है और मनुष्य श्रेष्ठता की ओर अग्रसर होता है। सम्पूर्ण कार्यक्रम के अंतर्गत भक्त श्रद्धालुगण प्रभु श्री कृष्ण एवं ब्रह्मज्ञान की दिव्य महिमा के गुणगान से अछूते नहीं रहे एवं सभी ने इसका पूर्ण आनंद उठाया।