अक्सर जीवन में हम, कभी खत्म न होने वाली लालसा एवं तृष्णा के पीछे भागते भागते अपने जीवन के वास्तविक लक्ष्य को ही भूल जाते हैं। लक्ष्य- आध्यात्मिक उन्नति का। आत्म जाग्रति के पश्चात ही मनुष्य आध्यात्मिक उन्नति की ओर अग्रसर होता है और इसके लिए आवश्यकता है दृढ संकल्प शक्ति एवं अथक प्रयास की। आज हम भक्ति के इस मार्ग से विलग अपनी समस्याओं के ताने बाने में उलझे रहते हैं। स्वामी विवेकानन्द ने बहुत सुन्दर कहा है कि - इंसान जैसे सोचता है वह वैसा ही बन जाता है। अतः हमें अपने विचारों को लेकर एकदम सतर्क रहना चाहिए। हमारे विचार असीमित होते हैं , एक पल में ही योजन दूरी तय कर लेते हैं। केवल एक सकारात्मक एवं नियंत्रित मस्तिष्क ही वास्तविक लक्ष्य को पूरा करने में सहायक होता है।
वैदिक काल में संगीत, ईश्वर पिपासुओं को अपने ध्येय ईश्वर से जोड़ने में एक सेतु का काम करता था। ईश्वर प्रेम में छलकी अश्रुधारा हमारे सभी पापों को धोने का सामर्थ्य रखती है। बड़े से बड़े पर्वतों को हिलाने का सामर्थ्य रखती है। भक्ति की इसी अविरल धारा में सबको सराबोर करने के पावन उद्देश्य से डीजेजेएस ने 12 जुलाई को पटियाला-पंजाब में भजन संध्या कार्यक्रम का आयोजन किया। गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी ने सदैव ईश्वरीय प्रेम में तप्त हृदयों की पिपासा को शांत करने लिए संगीत के महत्त्व पर ज़ोर दिया है। इस कार्यक्रम में साध्वी रूपेश्वरी भारती जी ने बताया कि भटकते हुए जीव को सही मार्ग में लाने एवं जीवन के वास्तविक लक्ष्य को प्राप्त करने का एकमात्र साधन ब्रह्मज्ञान है। केवल ब्रह्मज्ञान ज्ञान के द्वारा ही हम आध्यात्मिक उन्नति की ओर अग्रसर होते हुए जीवन में परमानंद की प्राप्ति कर सकते हैं।
भक्तिमयी मधुर तरानों ने प्रत्येक हृदय को झंकृत कर डाला। भजनों की अनुपम श्रृंखला के प्रवाह में सभी जन स्वयं को भूल, ईश्वरीय प्रेम में डूब गए। वहीं दूसरी ओर, आत्म जागृत सेवादारों की निस्वार्थ एवं भाईचारे की भावना ने एक सकारात्मक शक्ति का संचार किया। कहा भी गया है कि एक आत्म जाग्रत व्यक्ति अनेकों को जाग्रत कर सकता है।