अग्रत: चतुरो वेदा: पृष्ठत: सशरं धनु:।
इदं ब्राह्मं इदं क्षात्रं शापादपि शरादपि।।
भगवान परशुराम जी चारों वेदों के ज्ञाता और अपनी पीठ पर धनुष और बाण धारण करने वाले है, ब्राह्मण और क्षत्रिय मूल के भगवन श्राप या बाणों से दुष्टों का नाश करने वाले हैं।
भगवान परशुराम, श्री हरि विष्णु के अवतार हैं। परशुराम जयंती अक्षय तृतीया के दिन मनाई जाती है। इन्हें परशुराम के नाम से इसलिए जाना जाता है क्योंकि भगवान शिव ने इन्हें परशु नामक अस्त्र प्रदान किया था।
2 जून, 2019 को पंजाब के गुरदासपुर में श्री ब्राह्मण सभा द्वारा आयोजित भगवान श्री परशुराम जयंती की पूर्व संध्या पर दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान को आमंत्रित किया गया।
सर्व श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या व डीजेजेएस की प्रतिनिधि साध्वी सौम्या भारती जी ने इस अवसर पर भगवान परशुराम की महिमा को रखा। साध्वी जी ने अपने विचारों के माध्यम से बताया कि शस्त्रधारी व शास्त्रज्ञ भगवान् परशुराम जी असीम आध्यात्मिक ज्ञान के ज्ञाता व महान योद्धा थे। उन्होंने सदैव जरूरतमंद लोगों की सहायता की। उन्होंने अपना सारा ज्ञान व सम्पति ब्रह्मणों को सहज ही दान कर दि। भगवान परशुराम जी ने भीष्म, द्रोणाचार्य और कर्ण जैसे योद्धाओं को युद्ध का ज्ञान दिया। उन्होंने कर्ण को अत्यंत शक्तिशाली ब्रह्मास्त्र का संचालन सिखाया। वे इस तथ्य से परिचित थे कि भविष्य में कुरुक्षेत्र युद्ध में कर्ण अधर्मी दुर्योधन का सहयोगी होगा इसलिए उन्होंने कर्ण को यह श्राप दिया कि यह ज्ञान उसके लिए उपयोगी नहीं होगा। वे सदा धर्म के पक्षधर रहें।
साथ साध्वी जी ने पूर्ण सतगुरु की महिमा को प्रगट करते हुए समझाया कि आध्यात्मिक गुरु अपने शिष्य पर इतनी कृपा करते है कि शिष्य कभी भी उनके ऋण से मुक्त नहीं हो सकता। जो इस घट के भीतर भगवान को दिखा दें, वास्तव में वे स्वयं ही ईश्वर है जो इस मानव तन में प्रकट होते हैं। सतगुरु से श्रेष्ठ कोई सत्य नहीं, गुरु से बढ़कर कोई उच्च तपस्या नहीं और गुरु द्वारा प्रदान किए गए ज्ञान से बढ़कर कोई अन्य वस्तु नहीं है।
वह शिष्य भाग्यशाली जो सर्वोच्च भगवान के अमूल्य रत्नों से अपने जीवन को समृद्ध कर लेता है। उसका हृदय सदैव अपने सतगुरु के श्री चरणों में नमन करता है क्योंकि वह जानता है कि उसके सतगुरु की दया से ही उसने महान आध्यात्मिक निधि को पाया है, जिसका भुगतान नहीं किया जा सकता है।