दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा पर्यावरण संरक्षण हेतु चलाये गए संरक्षण प्रकल्प के अंतर्गत देश के विभिन्न स्थानों में 10 जुलाई से 10 अगस्त 2018 तक वन महोत्सव २०१८ मनाया गया। इस अभियान के तहत देशभर में स्थानीय प्रजातियों के औषधीय गुणों से संपन्न पौधे जैसे आंवला, नीम, तुलसी, एलो वेरा, अजवायन, पीपल आदि लगाये अथवा बाटे गए। साथ ही लोगो को बिगढ़ते प्राकृतिक संतुलन के सन्दर्भ व् उसके रक्षण हेतु वृक्षारोपण के महत्त्व के बारे में जागरूक भी किया गया।
मानव द्वारा पृथ्वी के अंधाधुंध दोहन की वजह से संपूर्ण पृथ्वी आज एक गहरे संकट में है। वनों की निरंतर कटाई बढते जलवायु परिवर्तन का एक प्रमुख कारण है, जिससे न ही पृथ्वी पर प्रदुषण बढ रहा है, बल्कि धरती पर कितनी ही प्राकृतिक आपदाएं भी आ रही है। साथ ही धरती से पशु-पक्षियों की विभिन्न प्रजातियाँ लुप्त हो रही है।
वृक्षारोपण प्राचीन भारतीय जीवनशैली का अभिन्न अंग रहा है। भारत में प्रकृति हमेशा से ही पूजनीय रही है, जिसकी वजह से भारतीय जीवन शैली भी सदा से ही प्रकृति के अनुकूल रही है। इसलिए हर कार्य को करने से पहले पर्यावरण को ध्यान में रखा जाता था। परन्तु आधुनिकता के इस दौर में मानव प्रकृति के अनुदानों को भूल गया है और उसके स्वार्थ ने उससे केवल और केवल उससे एक लालची उपभोगता बना दिया है, जिसका हर कर्म प्रकृति धोना से शुरू और ख़तम होता है। परिणाम स्वरुप आज हम उस कगार पर खड़े हैं जहाँ न पीने के लित्ये साफ़ जल है, न साँस लेने के लिए साफ़ हवा,अन तक की पृथ्वी का अस्तित्व ही संकट में है। यदि समय रहते कोई संरक्षण हेतु कदम नहीं उठाया गाया, तो मानव का भी इस धरती पर रहना मुश्किल हो जायेगा। इन सभी समस्याओं का एक मूल कारण है मानव और प्रकति का धूमिल होता हुआ सम्बन्ध। संसथान का संरक्षण प्रकल्प इसी धूमिल होते हुए सम्बन्ध को पुनर्स्थापित करने हेतु संकल्पित है।
संस्थान का संरक्षण प्रकल्प पिछले लगभग १ दशक से प्राकृतिक संरक्षण सम्बंधित जागरूकता में कार्यरत है। संरक्षण के अंतर्गत न ही लोगो को जागरूक किया जाता है, बल्कि उन्हें पौधारोपण, रैली अथवा अन्य कार्यक्रमों में शामिल कर प्रकृति को संरक्षित करने के लिए प्रेरित भी किया जाता है। इस साल भी वन महोत्सव अभियान के तहत हजारो लोगो को प्रेरित किया गया अथवा उन्हें पौधे बाटे गए ताकि वे उन्हें अपने घर पर लगाए और पर्यावरण संरक्षण में अपना योगदान दे।