भारत के पारंपरिक पर्व वन महोत्सव में निहित पर्यावरण संरक्षण के उदेश्य को आगे बढ़ाते हुए, दिव्य गुरु श्री आशुतोष महाराज जी द्वारा संस्थापित एवं संचालित दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान ने पारिस्थितिकी तंत्र [Ecosystem] के स्वास्थ्य को बहाल करने हेतु दुनिया की सबसे अच्छी प्रकृति-निर्मित तकनीक यानी वृक्षारोपण करने का बीड़ा उठाया। इसी के चलते गुरु पूर्णिमा के पवन अवसर पर संस्थान ने अपने पर्यावरण संरक्षण प्रकल्प - संरक्षण के अंतर्गत अपने वार्षिक अखिल भारतीय अभियान- हरित मुहिम [The Green Drive] का आरंभ किया|
इस अभियान का उद्देश्य जनसामान्य को वृक्षारोपण के महत्व से अवगत करवाना और शहरी परिदृश्य में हरित क्षेत्रों को बनाये रखने व उनका निर्माण करने हेतु प्रोत्साहित करना है| इसके अंतर्गत डी.जे.जे.एस. ने वर्षा ऋतु के दौरान [जुलाई से सितंबर माह तक] अपने अखिल भारतीय शाखाओं के नेटवर्क के माध्यम से देश भर में हजारों औषधीय और वायु शुद्ध करने वाले स्थानीय किस्मों के पौधों का रोपण और वितरण किया। उत्तर प्रदेश के अलीगढ़, बरैली, गोरखपुर, मेरठ और आग्रा; गुजरात के अहमदाबाद और वडोदरा; महाराष्ट्र के चाकण और नागपूर; हरियाणा के सिरसा, पंजाब के भटिंडा, पटियाला और नूरमहल; उत्तराखंड के पिथौरागढ़; तमिल नाडु के चेन्नई और राजस्थान के जोधपुर में स्थित संस्थान की शाखाओं ने अपने क्षेत्र मे विविध पौधा वितरण बूथस लगा लोगों को वृक्षारोपण हेतु जागरूक किया और पौधे वितरित किए|
जैसे मनुष्यों के लिए फेफड़े हैं, वैसे ही हमारे ग्रह पृथ्वी के लिए वन हैं। वनों को 'पृथ्वी के फेफड़े' कहा जाता है, क्योंकि वे ऐसे प्रकृति निर्मित कारखाने हैं जो कार्बन डाइऑक्साइड का उपभोग करते हैं और बदले में ऑक्सीजन देते हैं। हालांकि, आज तेज़ी से बदलते भूमि उपयोग पैटर्न के कारण वन खतरे में हैं| शोध पत्रों के माध्यम से पता चलता है कि हर दिन फुटबॉल के मैदान के आकार के बराबर उष्णकटिबंधीय जंगलों के क्षेत्र को काट दिया जाता है| इस नुकसान के परिणाम आज हम जलवायु परिवर्तन व विलुप्त होती वन्य प्रजातियों के रूप में देख रहे हैं| शहरी वातावरण में बढ़ते वाहन प्रदूषण के कारण प्रभाव अधिक गंभीर हो जाता है।
आज, पृथ्वी के स्वास्थ्य को बहाल करना एक तत्काल आवश्यकता बन गई है। वृक्षारोपण ग्रह के स्वास्थ्य को बहाल करने के लिए सबसे अच्छी प्रकृति द्वारा दी गई तकनीक है। हालांकि, वृक्षारोपण केवल मिट्टी में एक पौधा बोना ही नहीं है, बल्कि इसके भीतर गहरा पारिस्थितिकी तंत्र विज्ञान निहित है। जिस तरह की किस्में चुनी गई हैं, समय, स्थान और जिस तरह से उन्हें लगाया जाता है, यह सब वृक्षारोपण के दौरान ध्यान में रखने के लिए सबसे महत्वपूर्ण बातें हैं। इसके अलावा, पौधे की देखभाल के बाद मिट्टी को समृद्ध करना पौधे की वृद्धि और स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए समान रूप से महत्वपूर्ण है।
भारतीय पारंपरिक वृक्ष उत्सव - वन महोत्सव ने इस विज्ञान को सदियों से जीवित रखा है, परन्तु आज जैसे-जैसे आधुनिक पीढ़ियाँ भारतीय संस्कृति से दूर होरही हैं, वृक्षारोपण और पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य के प्रबंधन का यह गहरा विज्ञान भी धीरे-धीरे लुप्त हो रहा है।
उपर्युक्त बातों को ध्यान में रखते हुए, डी.जे.जे.एस. ने अपने पर्यावरण संरक्षण प्रकल्प- संरक्षण के अंतर्गत लगभग एक दशक पूर्व जुलाई-सितंबर के महीनों के दौरान प्रतिवर्ष भारतीय वृक्षारोपण उत्सव- वन महोत्सव मनाना शुरू किया। उत्सव को गुरु पूर्णिमा के साथ जोड़ते हुए, डी.जे.जे.एस. पारिस्थितिकी तंत्र को बहाल करने के साथ-साथ मानव-प्रकृति संबंध को मज़बूत करने के लिए विविध जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करता है। अब तक संरक्षण ने हजारों पौधा वितरण और जागरूकता गतिविधियां आयोजित की हैं और पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र, दिल्ली एन.सी.आर., मध्य प्रदेश, उड़ीसा, जम्मू और कश्मीर, बिहार, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक आदि के विभिन्न हिस्सों में सैकड़ों हजारों पौधों का वितरण किया है। सार्थक रूप से वृक्षारोपण करने के लिए, डी.जे.जे.एस. संरक्षण कार्पोरेट्स, आवासीय कल्याण संघों, स्कूलों और रेलवे स्टेशनों के साथ साझेदारी करने के लिए प्रयासरत रहता है|